Save River: नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा, झारखंड में इस तरह जलस्रोत को नुकसान पहुंचा रहा इंसान

Save River: शहरीकरण और औद्योगीकरण ने नदियों को सबसे ज्यादा नुकसान पुहंचाया है. एक ओर निहित स्वार्थ के लिए सरकार और आम लोग दोनों मिलकर नदियों का दोहन कर रहे हैं, तो दूसरी ओर राज्य सरकार नों उसके प्रबंधन की कोई उचित व्यवस्था नहीं की है.

By Mithilesh Jha | September 28, 2022 5:07 PM
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Save River: भारत में नदियों की पूजा की जाती है. पूजा-पाठ में नदियों के जल की अहम भूमिका होती है. सभी धर्मों में नदी की महत्ता बतायी गयी है. पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने के लिए नदी जरूरी हैं. लेकिन, अपनी सुख-सुविधाओं के लिए, पैसे कमाने की लालच में कुछ लोग नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं. इस प्राकृतिक संपदा के अस्तित्व को जाने-अनजाने मिटाने पर तुले हैं.

नदियों को तरह-तरह से पहुंचा रहे नुकसान

नदियों को तरह-तरह से नुकसान पहुंचाया जा रहा है. देश की कई नदियों की स्थिति अब चिंताजनक हो गयी है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है. शहरीकरण और औद्योगीकरण ने नदियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. एक ओर नदियों का अत्यधिक दोहन हो रहा है, तो दूसरी ओर राज्य सरकारों ने नदियों के प्रबंधन की कोई उचित व्यवस्था नहीं की है.

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कचरों से प्रदूषित हो रहा नदी का पानी

शहर का कचरा ठोस हो या तरल, नदियों में ही प्रवाहित कर दिया जाता है. इसकी वजह से नदियों की दशा इतनी बुरी हो गयी है, उसका जल इस कदर प्रदूषित हो गया है कि अब हम नदी के पानी का इस्तेमाल तक करने से कतराने लगे हैं. प्लास्टिक और टेनरी (चमड़ा शोधन फैक्ट्री) उद्योग ने नदियों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है.


पानी में उत्पन्न होते हैं कई तरह के कीटाणु

पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ देबू मुखर्जी कहते हैं कि औद्योगिक कचरा, निगम की गंदगी, टेनरी के अपशिष्ट को नदियों में छोड़ दिया जाता है. नदी किनारे श्मशान हैं. यहां शव को आधा जलाकर नदी में फेंक दिया जाता है. मवेशियों और अन्य जानवरों के शवों को नदी में फेंक दिया जाता है, जिसकी वजह से कई तरह के कीटाणु उत्पन्न होते हैं. चूंकि नदियों से पेयजल की आपूर्ति की जाती है, ये कीटाणु हमारे घर, रसोई और उसके बाद भोजन तक पहुंच जाते हैं. हमारे खाद्य पदार्थ तक पहुंचे इन कीटाणुओं की वजह से शहरों में तरह-तरह की बीमारियां फैल जाती हैं.

पानी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण हो जाते हैं खत्म

डॉ देबू मुखर्जी ने बताया कि औद्योगिक कचरे से ऐसी चीजें तैयार हो जाती हैं, जो जलस्रोत को बुरी तरह से प्रभावित करती हैं. उन्होंने प्रदूषित जल की पहचान के तरीके भी बताये. कहा कि अगर पानी में जलकुंभी दिख जाये, तो समझ लीजिए कि पानी प्रदूषित हो चुका है. उन्होंने कहा कि स्लवानिया, अजोला, वाटर वीड्स, जू प्लांक्टोंस, फाइटो प्लांकटोंस पानी में मौजूद होते हैं. अगर इनकी मात्रा बढ़ जाये, तो पानी दूषित होने लगता है. पानी से दुर्गंध आने लगता है. पानी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण खत्म हो जाते हैं.

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दूषित पानी से बढ़ जाती है महामारी की आशंका

डॉ मुखर्जी कहते हैं कि पानी में मौजूद बैक्टीरियंस, फोटोजोअंस अगर इंसान के शरीर में आ जाये, तो महामारी फैल सकती है. कॉलरा, डायरिया, टायफॉयड और डिसेंट्री जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है. उन्होंने कहा कि प्रदूषित पानी से जानलेवा बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है. इतना ही नहीं, जलस्रोतों में फेंके जाने वाले ऑर्गेनिक और इन-ऑर्गेनिक कचरे की वजह से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है.

नदियों पर बढ़ता है स्ट्रेस, तैयार होती है बुरी परिस्थितियां

डॉ मुखर्जी ने बताया कि शीशा, आर्सेनिक, मर्करी, कॉपर को हेवी मेटल कहा जाता है. नदियों या अन्य जलस्रोतों में जब इन्हें डाला जाता है, तो इसकी वजह से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है. जलस्रोत का स्ट्रेस बढ़ जाता है. इसकी वजह से कई बुरी परिस्थितयां तैयार हो जाती हैं. इसकी वजह से पानी तो दूषित होता ही है, पर्यावरण को भी कई तरह से नुकसान पहुंचता है.

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