आरयू के वीसी रमेश पांडेय ने नयी किताब ‘आंगन की गोरैया’ का किया विमोचन
कवयित्री मुक्ति शाहदेव का नया कविता संग्रह 'आंगन की गोरैया' का शनिवार को झारखंड की राजधानी रांची स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में किया गया.
रांची : रांची विश्वविद्यालय के कुलपति रमेश पांडेय ने शनिवार को प्रभात प्रकाशन की ओर से प्रकाशित नयी किताब ‘आंगन की गोरैया’ का लोकार्पण किया. कवयित्री मुक्ति शाहदेव की इस किताब के विमोचन के मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार अशोक प्रियदर्शी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को डॉ माया प्रसाद ने इस नयी किताब से अवगत कराया. मंच का संचालन कुमार बृजेंद्र ने किया.
झारखंड की राजधानी रांची के केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और रांची विश्वविद्यालय के कुलपति रमेश पांडेय ने कवयित्री मुक्ति शाहदेव को नयी पुस्तक के लिए बधाई दी. इस मौके पर उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. उन्होंने कहा कि हंसना बहुत जरूरी है, इसलिए आप लोग इसका आनंद लें और मुझे अपने दिल में रखते हुए आमंत्रित करते रहें.
इस मौके पर पुस्तक की रचयिता मुक्ति शाहदेव ने कहा कि जीवन की कठिन या क्रूरतम सच्चाइयां हमें तोड़ती-मरोड़ती हैं और इतना ही नहीं, ये बदल भी देती हैं. बाहर की दुनिया में हम सामान्य बने रहकर चलते रहते हैं. उन्होंने कहा कि आज सोचती हूं, तो ठीक इसी टूटन के समानांतर जीवन की ये सच्चाइयां हमें बहुत की पुख्ता डोर से बांधती, जोड़ती और बनाती भी रहती हैं, एकदम परिपक्व. उन्होंने कहा कि अचानक ऐसी ही परिस्थतियों के बीच मैंने खुद को लापरवाही की दुनिया से अलग जिम्मेदारी से भरपूर सख्त जमीन पर खड़ा पाया. बाहर की यात्रा नि:संदेह बहुत कठिन थी, लेकिन भीतर जो यात्रा चल रही थी, वह बहुत की सुकून देने वाली थी.
शाहदेव ने कहा कि मनचाहे रंगों से सजाकर मैंने उस भीतरी यात्रा को भरपूर जीता, किशोरवस्था में ही सीख लिया था, जो आज भी कायम है. उन्होंने कहा कि जब भी बाहर की ऊबड़-खाबड़ परिस्थितियों से बदम लड़खड़ाते, अंदर स्वत: प्रवाहमान शब्द मेरी गलबहियां थामे रहते.
इस मौके पर कामेश्वर प्रसाद निरंकुश ने कहा कि कवयित्री मुझे गोरैया की तरह लगती हैं. कविता सिर्फ शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि शाश्वत अनुभूति है. वहीं, रश्मि शर्मा ने मुक्ति शाहदेव की कविता की नसीहतें पढ़ीं. उन्होंने कहा, ‘मैं छोड़ आयी थी वह आंगन, जिसे अब तक के अपना समझती थी. साथ हैं सिर्फ तुम्हारी नसीहतें.’
नयी किताब ‘आंगन की गोरैया’ पर चर्चा करते हुए डॉ माया प्रसाद ने कहा कि मुक्ति मेरी प्रिय छात्रा है. वह काफी पहले से छात्र जीवन से कविता गढ़ती है. लेखक की सामाजिक जिम्मेदारी बढ़ गयी है. इसलिए समाज को दरकिनार करके लेखक कभी अपनी रचना को स्थायित्व नहीं दे पाता. डॉ प्रसाद ने कहा कि मां, माटी और मानस से प्रेम करने वाली कवयित्री है मुक्ति शाहदेव. मुक्ति की कविता में गांव है, मां का आंचल है, तुलसी का पौधा है, गोबर से लीपा हुआ आंगन है और उसमें फुदकती गोरैया है. रिश्तों का अद्भुत चित्रण है.
उन्होंने कहा कि रिश्तों के टूटने का दर्द इस कविता संग्रह में प्रमुखता से दिखता है. इसमें प्रेम की कविताएं भी मौजूद हैं. ‘बहादुर छौआ’ कविता की डॉ माया प्रसाद ने तारीफ की. उन्होंने कहा कि मुक्ति की भाषा बहुत ही सशक्त है. झारखंड पर भी लिखना जरूरी है. ‘मैं पुटूस हूं’ कविता को साहित्यकार विक्रमादित्य ने कविता संग्रह की श्रेष्ठ कविता बताया. उन्होंने कहा कि खुद से उलझना और उसे शब्दों में व्यक्त करना ही कविता है.