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संत मरिया महागिरजाघर में पहले आदिवासी बिशप और आर्चबिशप की हैं कब्रें, पढ़ें खास रिपोर्ट

रांची में रोमन कैथोलिक मिशनरी की गतिविधियां 1875 के आसपास शुरू होने लगी थीं. पहली बार बेल्जियम के फादर ऑगस्ट स्टॉकमैन जनवरी 1875 में रांची जिला आये थे. इसके बाद डोरंडा सैनिक छावनी में पादरी के रूप में 1877 में कई और बेल्जियन मिशनरी आये.

रांची, मनोज लकड़ा : संत मरिया महागिरजाघर, पुरुलिया रोड में तीन धर्माध्यक्ष बिशप लुईस वान हुक, बिशप निकोलस कुजूर और आर्चबिशप पीयूष केरकेट्टा के पार्थिव शरीर दफन हैं. दूसरे बिशप ऑस्कर सेवरिन का पार्थिव शरीर छत्तीसगढ़ के कैथेड्रल में दफनाया गया है, जहां वे रांची के बाद बिशप बने. चौथे आर्चबिशप कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो का यहां 11 अक्तूबर को दफन संस्कार किया जायेगा. रांची में रोमन कैथोलिक मिशनरी की गतिविधियां 1875 के आसपास शुरू होने लगी थीं. पहली बार बेल्जियम के फादर ऑगस्ट स्टॉकमैन जनवरी 1875 में रांची जिला आये थे. इसके बाद डोरंडा सैनिक छावनी में पादरी के रूप में 1877 में कई और बेल्जियन मिशनरी आये.

मसीही विश्वासियों के जीवन के उत्थान में सबका रहा है योगदान

शिक्षा व व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया

डायसिस के पहले धर्माध्यक्ष, लुईस वान हुक का जन्म 17 अप्रैल, 1870 को बेल्जियम के एंटवर्प में हुआ था. 1907 में उन्हें कुरडेग में पहले सहायक पल्ली पुरोहित, फिर पल्ली पुरोहित बनाया गया. 1909 से 1919 तक वे स्कूलों के डायसिसन इंस्पेक्टर रहे. उन्होंने मिशन के शैक्षिक नेटवर्क के केंद्र के रूप में संत जॉन, रांची के विकास के लिए बहुत कुछ किया. उन्हें 20 जुलाई 1920 को पटना का पहला बिशप बनाया गया. छह मार्च, 1921 को रांची में उनका बिशप अभिषेक हुआ था. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सेक्रेड हार्ट धर्मबहनों के कांग्रीगेशन (मंडली) की स्थापना की थी. जब 25 मई, 1927 को रांची को डायसिस बनाया गया, तब उन्हें इसका पहला बिशप बनाया गया. 30 जून, 1928 को उनका अभिषेक हुआ. उन्होंने इस नये डायसिस के लिए सामान्य शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में काफी काम किया. कई पेरिश भी बनाये. 30 अप्रैल, 1933 को 63 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गयी.

बिशप ऑस्कर सेवरिन : कुनकुरी कैथेड्रल, छत्तीसगढ़ में है बिशप का पार्थिव शरीर

डायसिस के दूसरे बिशप ऑस्कर सेवरिन का जन्म 22 नवंबर, 1884 को बेल्जियम में हुआ था. वे एक जुलाई, 1919 को मसीही पुरोहित बने थे. वे 1932 तक दो वर्ष के लिए संत जॉन में नियुक्त रहे. 1924 से 1934 तक चर्च के विद्यालयों के निरीक्षक भी थे. कुछ वर्षों तक चर्च की पत्रिका ”निष्कलंक” मासिक का संपादन भी किया. 25 जुलाई, 1934 को उन्हें रांची का बिशप नियुक्त किया गया. इसके बाद 13 दिसंबर, 1951 को उन्हें रायगढ़-अंबिकापुर के नवगठित डायसिस में स्थानांतरित कर दिया गया और रांची को उसके पहले आदिवासी बिशप निकोलस कुजूर की जिम्मेवारी में दिया गया. 30 अप्रैल, 1975 को बिशप ऑस्कर सेवरिन की मृत्यु हुई. उन्हें कुनकुरी, छत्तीसगढ़ कैथेड्रल में दफनाया गया है.

आर्चबिशप निकोलस कुजूर देश के पहले आदिवासी बिशप और आर्चबिशप बने

डायसिस के तीसरे धर्माध्यक्ष आर्चबिशप निकोलस कुजूर का जन्म सात सितंबर, 1898 को रेंगारीह के बांदीपहाड़ में हुआ था. 24 अगस्त, 1930 को बिशप वान हुक ने लुवेन, बेल्जियम में उनका पुरोहिताभिषेक किया था. रांची लौटने पर संत अलबर्ट मेजर सेमिनरी रांची में धर्मशास्त्र और कैनन लॉ के व्याख्याता नियुक्त हुए. कुछ वर्षों बाद उन्हें मनरेसा हाउस का रेक्टर और संत जॉन का प्रधानाध्यापक बनाया गया. संत जेवियर्स कॉलेज को वर्ष 1944 में अपने शुरुआती दिनों में उनका ही आश्रय और संरक्षण मिला था. 1948 में वे बिशप ऑस्कर सेवरिन के विकर जेनरल बने. नौ मार्च 1952 को उन्हें रांची का बिशप नियुक्त किया गया था. वे भारत के पहले आदिवासी बिशप/आर्चबिशप बने.

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आर्चबिशप पीयूष केरकेट्टा : द्वितीय वेटिकन परिषद (1962-1965) के सत्रों में भाग लिया

डायसिस के चौथे धर्माध्यक्ष आर्चबिशप पीयूष केरकेट्टा का जन्म तीन मार्च 1910 को बीरू, सिमडेगा में हुआ था. कर्सियोंग में चार साल की थियोलॉजी की पढ़ाई के बाद 21 नवंबर, 1943 को उनका पुरोहिताभिषेक हुआ. संत अलबर्ट मेजर सेमिनरी, रांची में दर्शनशास्त्र के व्याख्याता नियुक्त हुए. 1947 से 1954 तक वे संत जॉन रांची और संत इग्नासियुस गुमला के प्रधानाध्यापक रहे. जनवरी 1955 में उन्हें आर्चबिशप निकोलस कुजूर का विकर जेनरल बनाया गया. आर्चबिशप के निधन के बाद उन्हें 28 जुलाई, 1960 को विकर कैपिटुलर चुना गया. उन्हें आठ मार्च, 1961 को रांची का आर्चबिशप नियुक्त किया गया. उन्होंने द्वितीय वेटिकन परिषद (1962-1965) के सभी चार सत्रों में भाग लिया था.

‘छोटानागपुर के प्ररित” फादर कांस्टेंट लीवंस

संत मरिया महागिरजाघर में ”छोटानागपुर के प्ररित” कहे जाने वाले फादर कांस्टेंट लीवंस का स्मृति शेष भी है. उनका पार्थिव अवशेष बेल्जियम से लाकर संत मरिया महागिरजाघर में दफनाया गया है. 1885 में फादर कांस्टेंट लीवंस को इस क्षेत्र में भेजा गया. यहां के लोगों के साथ कुछ महीनों के प्रारंभिक संपर्क और मुंडा लोगों की भाषा और रीति-रिवाजों के अध्ययन के बाद वे तोरपा में रहने लगे. बाद में उनकी मृत्यु सात नवंबर 1893 को बेल्जियम में हुई थी.

पार्थिव शरीर यात्रा के दौरान किया गया शहर की ट्रैफिक में बदलाव

तेलेस्फोर पी टोप्पो की पार्थिव शरीर यात्रा के दौरान कुछ जगहों पर कई जगहों पर रूट डायवर्ट किया गया था. शव यात्रा में हजारों की संख्या में लोग दो पहिया व चार पहिया में सवार काे को शव वाहन के पीछे चल रहे थे. मेन रोड में सुजाता चौक के बाद आ रहे वाहनों को एकरा मसजिद के पास से कर्बला चौक की ओर डायवर्ट किया गया था. वहीं ओवरब्रिज से मेन रोड आने वाले वाहनों को क्लब रोड की ओर डायवर्ट कर दिया गया था. शव यात्रा के लिए सुरक्षा व ट्रैफिक की चाक-चौबंद व्यवस्था की गयी थी. मेन रोड में हर कटिंग पर ट्रैफिक पुलिस की तैनाती की गयी थी. शव यात्रा के आगे डीएसपी जीतवाहन उरांव, चुटिया ट्रैफिक थाना प्रभारी इश्तेयाक अहसन, लोअर बाजार, हिंदपीढ़ी थाना की गश्ती दल चल रहे थे.

मिशनरी के कई स्कूल आज बंद रहेंगे

कार्डिनल टेलीस्फोर पी टोप्पो का अंतिम संस्कार बुधवार को होगा. इसको लेकर राजधानी के कई मिशनरी स्कूल बंद रहेंगे. इसमें संत थॉमस स्कूल, सेक्रेट हर्ट स्कूल, संत जेवियर्स सकूल, बिशप स्कूल, संत जॉन, उर्सुलाइन कॉन्वेंट, संत अलोइस, संत फ्रांसिस स्कूल (बनहौरा) सहित अन्य शामिल हैं.

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