रांची़ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने कहा है कि संस्कृत में ही भारतीय संस्कृति निहित है. रोजगार के प्रायः वे सभी अवसर संस्कृत के छात्र को उपलब्ध हैं, जो किसी अन्य विषय के छात्र को है. डॉ द्विवेदी विवि में नयी शिक्षा नीति में संस्कृत विषय की उपयोगिता पर विचार व्यक्त कर रहे थे. डॉ द्विवेदी ने कहा है कि संस्कृत की डिग्री हासिल कर विद्यार्थी प्रशासनिक सेवा, सहायक प्रोफेसर, विद्यालयों में शिक्षक, अनुसंधान सहायक, पत्रकार, प्रवाचक, भारतीय सेना में धर्मगुरु, अनुवादक, लेखक, योग शिक्षक, लिपिक और सहायक, वास्तुविद, ज्योतिष और पुरोहित, आयुर्वेदीय चिकित्सक, व्यापार जैसे रोजगार प्राप्त कर सकते हैं.
95 प्रतिशत से अधिक संस्कृत में उपलब्ध हैं प्राचीन पांडुलिपि
उन्होंने कहा कि प्राचीन इतिहास के क्षेत्र में शोध करने के लिए संस्कृतज्ञों की सहायता अपेक्षित है. प्राचीन पांडुलिपियों को लेकर भी बहुत से कार्य हो रहे हैं. लेकिन इन पांडुलिपियों में 95 प्रतिशत से अधिक संस्कृत में उपलब्ध हैं. इसके लिए बड़ी संख्या में संस्कृतज्ञों की आवश्यकता है. पत्रकारिता के क्षेत्र में भी संस्कृत के जानकारों को प्राथमिकता दी जाती है. संस्कृत समाचार वाचकों के लिए भी संस्कृत का ज्ञान अपेक्षित है. कथा प्रवाचक बनने के लिए भी प्रासंगिक संस्कृत साहित्य का अनुशीलन अपेक्षित है. डॉ द्विवेदी ने कहा कि एक सफल समाजशास्त्री एवं दार्शनिक बनने के लिए संस्कृत का अध्ययन आवश्यक है. इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा के अध्ययन पर विशेष बल दिया गया है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है