एसएआर कोर्ट के दस्तावेज से छेड़छाड़ जारी होते रहे फर्जी आदेश, होगी जांच
झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने मंगलवार को एसएआर कोर्ट के दस्तावेज व रिकॉर्ड में छेड़छाड़ करने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की
रांची : झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने मंगलवार को एसएआर कोर्ट के दस्तावेज व रिकॉर्ड में छेड़छाड़ करने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने डीजीपी को प्राथमिकी दर्ज कर रांची के अनुसूचित क्षेत्र विनियमन (एसएआर) अदालत के दस्तावेजों व रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की जांच कराने का आदेश दिया. अदालत ने कहा कि एसएआर कोर्ट के रिकॉर्ड में छेड़छाड़ एक गंभीर मामला है.
इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजेंद्र कृष्ण व अधिवक्ता अमित सिन्हा ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पक्ष रखते हुए अदालत को बताया कि एसएआर कोर्ट के रिकॉर्ड में छेड़छाड़ के मामले में तत्काल जांच होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि प्रार्थी मतियस विजय टोप्पो एसएआर कोर्ट रांची के पूर्व पीठासीन पदाधिकारी हैं. उन पर लगभग 300 मामलों को निबटाने का आरोप लगाया गया है.
वह मामले में विभागीय जांच का सामना कर रहे हैं. उन्हें विभागीय जांच में अपने बचाव के लिए एसएआर कोर्ट के दस्तावेजों व रिकॉर्ड का निरीक्षण करने की अनुमति दी गयी थी. निरीक्षण के दौरान उन्होंने महसूस किया कि 70 रिकॉर्ड में कोर्ट अफसर के हस्ताक्षर जाली हैं और उनके द्वारा हस्ताक्षरित नहीं हैं.
मामलों के कुछ दस्तावेज व रिकॉर्ड भी आपस में जुड़े हुए या गायब पाये गये. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी एमवी टोप्पो ने क्रिमिनल याचिका दायर कर उनके फर्जी हस्ताक्षर से पारित मामलों की जांच की मांग की थी. उन्होंने विभागीय जांच के दौरान इस मामले को उठाया था. उपायुक्त से भी शिकायत की, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया.
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एसएआर कोर्ट के पूर्व पीठासीन पदाधिकारी पर 300 मामले निबटाने का लगा है आरोप
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मामलों के कुछ दस्तावेज व रिकॉर्ड भी गायब पाये गये, फर्जी आदेश पर किया गया आदिवासी जमीन पर कब्जा
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आरोपी अफसर का दावा, 70 मामलों में जाली हस्ताक्षर से पास किये गये हैं आदेश
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झारखंड हाइकोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई मामले की सुनवाई
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अदालत ने कहा : एसएआर कोर्ट के रिकॉर्ड में छेड़छाड़ एक गंभीर मामला
एसएआर कोर्ट का क्या रहा है विवाद : सीएनटी एक्ट के तहत स्थापित अनुसूचित क्षेत्र विनियमन (एसएआर) अदालत के पीठासीन अधिकारियों द्वारा जमीन वापसी के मामलों में पारित आदेशों को लेकर समय-समय पर विवाद होता रहा है. मुआवजा के नाम पर आदिवासी जमीन की बंदरबांट का आरोप लगा. खाली जमीन का भी मुआवजा भुगतान करा कर गैर आदिवासी के पक्ष में आदेश पारित कर दिया गया. इस मामले में अधिकारी, कर्मचारी, दलालों की मिलीभगत का आरोप लगता रहा है.
2015 से नहीं हो रहा आदिवासी जमीन का हस्तांतरण : एसएआर कोर्ट में दायर मामलों में आदिवासी जमीन का हस्तांतरण वर्ष 2015 से नहीं हो रहा है. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल के दौरान एसएआर कोर्ट में आदिवासी जमीन का कंपनसेशन का काम बंद रहा. अभी भी कंपनसेशन का अवार्ड नहीं हो रहा है. जमीन वापसी का मामला दायर होता है, जिस पर कोर्ट के पीठासीन पदाधिकारी सुनवाई करते हैं.
post by : Pritish Sahay