Sarhul Festival: सरहुलमय हुई राजधानी रांची, 300 से अधिक अखड़ा से निकलेगी शोभायात्रा

Sarhul Festival: 23 मार्च को विधि-विधान से उपवास, जल रखायी, पारंपरिक पूजा के बाद भविष्यवाणी होगी. यह भविष्यवाणी सरना धर्मावलंबियों के नर्ववर्ष के लिए होगी. इसमें अच्छी वर्षा के साथ बेहतर फसल की कामना होगी. वहीं, 24 मार्च को 300 से अधिक अखड़ा से शोभायात्रा निकलेगी, जो सिरमटोली सरना स्थल तक पहुंचेगी.

By Prabhat Khabar News Desk | March 21, 2023 8:37 AM

Sarhul Festival: प्रकृति पर्व सरहुल की तैयारी जोरों पर है. इसको लेकर शहर के विभिन्न इलाकों में सरना स्थल व अखड़ा की सफाई की जा रही है. पूरा शहर सरना झंडा से पट गया है. लोगों में खासा उत्साह है. 23 मार्च को विधि-विधान से उपवास, जल रखायी, पारंपरिक पूजा के बाद भविष्यवाणी होगी. यह भविष्यवाणी सरना धर्मावलंबियों के नर्ववर्ष के लिए होगी. इसमें अच्छी वर्षा के साथ बेहतर फसल की कामना होगी. वहीं, 24 मार्च को 300 से अधिक अखड़ा से शोभायात्रा निकलेगी, जो सिरमटोली सरना स्थल तक पहुंचेगी. पारंपरिक वेशभूषा, वाद्ययंत्र और सरहुल गाते हुए लोग शोभायात्रा में शामिल होंगे. वहीं, 25 मार्च को फूलखोंसी के साथ सरहुल पर्व का समापन होगा.

सरना स्थल पर होगी विशेष पूजा

चैत द्वितीया यानी 23 मार्च से सरहुल के धार्मिक अनुष्ठान शुरू होंगे. सरना स्थाल पर विशेष पूजा होगी. दिन युवक और पाहन मिलकर तलाब, खेत व नदी से केकड़ा और मच्छली पकड़ कर लाते हैं. इन्हें अरवा धागा से बांधकर सुरक्षित रख दिया जाता है. हतमा सरना स्थल के जगलाल पाहन ने बताया कि जब धान की बुआई की जाती है, तब इनका चूर्ण बनाकर गोबर में मिलाया जाता है और धान के साथ बोया जाता है. इसके पीछे की मान्यता है कि जिस तरह केकड़े के असंख्य बच्चे होते हैं, उसी तरह धान की बालियां भी असंख्य होंगी. इसी दिन शाम में नदी व तालाब से दो घड़े में पाहन और सेंघारा पानी भरकर सरना स्थल पर रखेंगे. पानी के घड़े में अरवा चावल और सखुआ के फूल भी डाले जायेंगे. पवित्र सरना स्थल पर पारंपरिक विधि-विधान के साथ पांच मुर्गा-मुर्गी को सिंदूर, घुवन, दिया दिखाकर और अरवा धागा से बांध कर रख दिया जायेगा.

घर के पवित्र स्थान को शुद्ध किया जायेगा

चैत तृतीया यानी 24 मार्च को घर के पवित्र पूर्वजों के स्थान ‘रसवा’ को शुद्ध किया जाता है. पूजा में नये फसल व साग-सब्जी के अलावा साल के पत्ते व फूल चढ़ाये जाते हैं. इस क्रम में तीन, पांच और 11 मुर्गा-मुर्गी को पूजा जाता है. पहला सफेद मुर्गा को सिंगबोंगा यानी सृष्टिकर्ता के नाम पर चढ़ाया जाता है. दूसरा लाल मुर्गा को ग्राम देवता के नाम पर, तीसरा देशवाली या माला मुर्गा को जल देवता यानी इकीर बाेंगा के नाम, चौथी रंगली या लुपुंग मुर्गी को पूर्वजों के नाम पर और पांचवां काली मुर्गी को देवों के नाम पर चढ़ाया जाता हैं. इस क्रम में विशिष्ट प्रसाद तपावन (हड़िया) भी तैयार किया जायेगा. विधि-विधान से पूजा खत्म कर घड़े के पानी को पाहन देखकर भविष्यवाणी करेंगे. यदि घड़े से पानी का स्तर घट जाये, तो इसे सूखा या अकाल माना जायेगा. वहीं, पानी का स्तर सामान्य रहा, तो इसे उत्तम वर्षा का संकेत माना जायेगा.

सरहुल पर्व के पीछे की कहानी

जगलाल पाहन ने सरहुल के बारे में बताया कि प्राचीन काल में जब पूर्वजों का समाजीकरण नहीं हुआ था, तब लोग जंगल में विचरण करते थे. दिनभर विचरण के बाद शाम को विश्राम का ठिकाना ढूंढ़ा जाता था. इस क्रम में जंगल में मिलने वाले कंद-मूल और जानवर का शिकार कर भोजन करते थे. ऐसे में जंगल में बहुतायत में पाये जाने वाले साल यानी सखुआ वृक्ष के नीचे आश्रय बनाते थे. साल के वृक्ष को आकार में बड़ा और सुरक्षित माना गया. पेड़ का तना यानी धर लोगों को विभिन्न मौसम से बचाव करता था. साथ ही जंगली जानवरों से सुरक्षा देता था. इसके अलावा साल वृक्ष की डाली, फल और फूल को जीवनयापन में उपयोगी पाया. फल से बनने वाले सरये तैयार कर सखुआ के पत्ते में खाते थे. पतली डालियां दत्मन व जलावन में और मोटी डाली आश्रम तैयार करने में इस्तेमाल होने लगे. साल के वृक्ष हर परिस्थिति में उपयोगी होने के कारण पूर्वजों ने इसे पूजना शुरू कर दिया. यह कारण है कि सरहुल के दिन साल वृक्ष के साथ प्रकृति की पूजा की जाती है.

सरहुल को लेकर नगर निगम की तैयारी जोरों पर

सरहुल को लेकर सभी सरना स्थल की साफ-सफाई जोरों पर की जा रही है. ब्लिचिंग पाउडर का छिड़काव किया जा रहा है. रांची कॉलेज से लेकर सिरमटोली तक जगह-जगह पानी के टैंकर और मोबाइल टॉयलेट की व्यवस्था की जा रही है. अपर नगर आयुक्त कुंवर सिंह पाहन ने कहा कि सरहुल के दिन शहर के सभी सुलभ-शौचालयों को फ्री किया जायेगा. वहीं, शोभायात्रा में शामिल होने वाले लोगों को घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर निगम ने ली है. इसके तहत 25 सिटी बसों को नि:शुल्क चलाया जायेगा. सभी बस शाम पांच बजे के बाद सरकारी बस स्टैंड पर खड़ी मिलेगी. लोग नि:शुल्क सफर कर सकेंगे. इसके साथ ही सरहुल के दिन बिजली कटौती को देखते हुए शहर की विभिन्न सड़कों पर निगम लाइटिंग की व्यवस्था करेगा.

सरई के फूल
की पूजा होगी

चैत चतुर्थी यानी 25 मार्च को सरहुल पूजा का समापन होगा. पाहन अपने घर में पूर्वजों के लिए रंगली मुर्गी का पैठा करेंगे. इसका तपावन से सूरी तैयार कर पूर्वजों को चढ़ावया जायेगा. इस क्रम में सरई के फूल की भी पूजा होगी. इसके बाद ग्रामीणों के घरों के दरवाजे पर सरई के फूल लगाये जायेंगे. साथ ही घर के विभिन्न पूजनीय स्थान पर चढ़ाया जायेगा. इसी से लोग फूलखोंसी करेंगे.

सरना झंडा से पटा बाजार

शहर के बाजार इन दिनों सरहुल झंडे से पटे हैं. बाजार में 30 इंच से लेकर 30 फीट के सरहुल झंडे मिल रहे हैं. सबसे ज्यादा मांग एक मीटर वाले सरहुल झंडे की है. इसकी कीमत 30 रुपये से शुरू है. वहीं, शहर के विभिन्न बड़े अखड़ा के लिए पांच फीट से लेकर 30 फीट तक के सरहुल झंडे तैयार किये गये हैं. इनकी कीमत 300 रुपये से 2000 रुपये तक है.

सरहुल कलेक्शन की डिमांड जाेरों पर

पर्व को ध्यान में रखकर डिजाइनरों ने हैंडलूम कपड़े काे सरहुल का आइकॉन बनाया है. आदिवासी बुनकरों के हाथों बने हैंडलूम कपड़ों में पारंपरिक डिजाइन उकेरे गये हैं. लाल सादा पाड़ के साथ कई तरह के मिक्स-मैच इम्ब्रॉयड्री देखी जा रही है. बीरू कपड़े के हाफ और फुल शर्ट, कुखेना बंडी, कोटी, कुखेना जैकेट, टी-शर्ट, कुरता-पाजामा, रेडीमेड धोती के अलावा महिलाओं और युवतियों के लिए पारंपरिक लाल पाड़िया, वन पीस, फ्रॉक, कुर्ती, सूट, स्ट्रॉल, लहंगा, ट्यूलिप तैयार किया गया है. इसके अलावा युवाओं की पसंद को देखते हुए खास डेनिम जैकेट और बाइकर जैकेट भी कलेक्शन में शामिल किये गये हैं.

250 से 4000 रुपये तक के कलेक्शन

सरहुल स्पेशल टी शर्ट 250 से 350 रुपये में उपलब्ध हैं. इनमें सरहुल के संदेश को उकेरा गया है. वहीं, शर्ट, फूल शर्ट 400 से 1500 रु, कुखेना बंडी 500 से 4000 रुपये, जैकेट 2000 से 4000 रुपये, हैंडलूम पाड़िया साड़ी 450 से 2000 रुपये, लाल पाड़ फैंसी साड़ी 250 से 1400 रुपये व फ्रॉक 500 से 1200 रुपये में उपलब्ध हैं.

मुंडा समाज के पुरखोती झंडा का होगा प्रदर्शन

इस वर्ष शोभायात्रा में चडरी चरना समिति खास अंदाज में शामिल होगी. पारंपरिक वेशभूषा और वाद्ययंत्र के साथ हाथों में पारंपरिक हथियार होंगे. समिति के बबलू मुंडा ने बताया कि शोभायात्रा में मुंडा समाज के पुरखोती झंडा का प्रदर्शन होगा. यह झंडा महाराजा मद्रा मुंडा के समय से सुरक्षित है. समिति की शोभायात्रा में करीब 400 लोग शामिल होंगे.

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