झारखंड ही नहीं नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में भी मनाया जाता है सरहुल, जानें क्या है मनाने का तरीका
नेपाल, भूटान और बंग्लादेश में भी लोग सरहुल पर्व धूमधाम से मनाते हैं, नेपाल में आदिवासियों की अबादी 1 लाख के करीब है. तो वहीं बंग्लादेश के 16 जिलों में भी उरांव जनजाति के लोग फैले हुए हैं
रांची: नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में धूमधाम से सरहुल पर्व मनाया जाता है. नेपाल के बेचन उरांव जाने-माने साहित्यकार, लेखक और अनुसंधानकर्ता है़ं वह नेपाल के उरांव आदिवासी जनजाति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष भी है़ं बेचन उरांव बताते हैं कि नेपाल के उरांव (कुड़ुख) आदिवासी सिंधु घाटी से पलायन कर रोहतासगढ़ पहुंचे थे. फिर वहां से पलायन कर नेपाल पहुंचे. नेपाल में इनकी आबादी करीब एक लाख है. यहां सरहुल परब को खद्दी पबनी कहा जाता है. इस दिन नेपाल के उरांव मूल रूप से धरती माता, प्रकृति देवता पच्चो अयो, पच्वाल आलर (पुरखों) की पूजा करते हैं.
बांग्लादेश : 16 जिलों में फैले हैं उरांव
बांग्लादेश के चटनीपारा, जिला दिनाजपुर के सामाजिक कार्यकर्ता सापोन एक्का ने बताया कि बांग्लादेश में उरांव लाखों की संख्या में है़ं 16 जिलों में फैले हैं. वहां के उरांव भी सरना धर्म मानते हैं और फागु परब में ही सरहुल अर्थात खद्दी परब मनाते हैं. यहां खद्दी परब के अगले दिन सेमल और फागु पेड़ की डाली काटकर लाते हैं और फागु पूर्णिमा के दिन खरपतवार में सेमल और फागु पेड़ की डाली रख कर जलाते हैं. कामना करते हैं कि हमारी जितनी भी दुःख-तकलीफें हैं, वे धर्मेश ले जायें. ऐसा कह कर सभी जलती हुई आग के ऊपर से छलांग लगाते हैं.
भूटान : फागू के दिन ही मनाते हैं खद्दी
भूटान के संची जिला के च्यांगरी गांव की सीता उरांव बताती हैं कि भूटान में उरांव हजारों की संख्या में है़ं यहां के उरांव लोग अलग से सरहुल नहीं मनाते, बल्कि फागु परब के दिन ही खद्दी मनाते है़ं इस दिन वे प्रकृति, अपने देवी-देवता और पूर्वजों को याद करते है़ं प्रकृति में फले हुए सभी फूलों को घर लाते है़ं पच्वाल आलर को मालपुआ अर्थात पीठा रोटी और कसरी खेर यानी मुर्गा अर्पित करते है़ं एक-दूसरे को रंग और अबीर लगाते है़ं वे फागु पूर्णिमा को नववर्ष के रूप में मनाते हैं. कुछ लोग फागु के 15 दिनों के बाद घर में सरहुल मनाते हैं. (इनपुट: प्रो महेश भगत)
Posted By: Sameer Oraon