दवा घोटाले में मंत्री शामिल, छोटे अधिकारी क्या जांच करेंगे, CBI को दें : सरयू राय
दवा खरीद घोटाले का आरोप लगानेवाले विधायक सरयू राय ने कहा है कि दवा खरीद का फैसला कैबिनेट का था. इसमें मंत्री शामिल हैं, तो तीन छोटे पदाधिकारी क्या जांच करेंगे?
दवा खरीद घोटाला की जांच को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. इसमें मिशन डॉयरेक्टर भुवनेश प्रताप सिंह, अपर सचिव जय किशोर प्रसाद और संयुक्त सचिव आलोक त्रिवेदी शामिल हैं. कमेटी के सदस्यों को एक माह में जांच कर अपनी रिपोर्ट विभाग के पास प्रस्तुत करनी है.
विधायक सरयू राय ने स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवा खरीद में अनियमितता का मामला विधानसभा में उठाया था. विधायक राय ने सरकार से इस संबंध में जवाब मांगा था. राय का आरोप था कि सरकार ने कंपनियों से ऊंची दर पर दवा खरीद की है. सरकार को उससे कम दर पर दवा देने के लिए निजी कंपनियां तैयार थीं. राय ने आराेप लगाया था कि टेंडर रद्द कर दवा की खरीद ऊंची कीमत पर की गयी. एक दवा के दाम में तीन-चार गुना का अंतर है. इस मामले में बड़ी लेनदेन हुई है. जिस कंपनी से खरीद हुई है, उसका सीएनएफ कांग्रेस के एक कार्यकारी अध्यक्ष रहे नेता के पास है. स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने सदन में आरोप को खारिज किया था. मंत्री का कहना था कि किसी तरह की अनियमितता नहीं हुई है. केंद्र सरकार की एजेंसी से दवा खरीद हुई है. केंद्र सरकार की गाइड लाइन का पालन हुआ है.
घोटाले में मंत्री शामिल, छोटे अधिकारी क्या जांच करेंगे सीबीआइ को दें : सरयू
दवा खरीद घोटाले का आरोप लगानेवाले विधायक सरयू राय ने कहा है कि दवा खरीद का फैसला कैबिनेट का था. इसमें मंत्री शामिल हैं, तो तीन छोटे पदाधिकारी क्या जांच करेंगे? इस जांच का कोई नतीजा नहीं आनेवाला है. इस घोटाले में एक अदृश्य शक्ति काम कर रही है, जो विभाग को अपने हिसाब से चला रही है. जिस कंपनी को काम दिया गया है, उसके सीएनएफ एक कांग्रेस नेता मानस सिन्हा के पास है. इस मामले में यूनिफार्मा को एजेंट बनाया गया है, जिसको 11 से 12 प्रतिशत कमीशन दिया गया है. इसमें मुख्यमंत्री के करीबी शामिल हैं. केंद्र सरकार की एजेंसी इसमें शामिल है. सरकार इस मामले की जांच सीबीआइ से कराये. राय ने कहा कि हर जगह प्रावधान का उल्लंघन हुआ. सरकार ने टेंडर से जो दवा खरीदी है, वह आधे दाम में है. वहीं, केंद्र सरकार की कंपनी से दोगुने दाम पर खरीद हुई है. सारी चीजें फाइल पर हैं. विभागीय अधिकारी को सब पता है. इसके बाद फिर विभागीय स्तर पर जांच की क्या जरूरत है? अब इस मामले की जांच किसी बड़े एजेंसी से कराने की जरूरत है.