फर्जी दस्तावेज दिखा ठेकेदारों ने हासिल किया रांची में सीवरेज-ड्रेनेज का काम
विधानसभा में पेश भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में इन तथ्यों का उल्लेख किया गया है. ये दोनों योजनाएं पूर्ववर्ती रघुवर सरकार के कार्यकाल की हैं.
सीवरेज-ड्रेनेज का काम लेने के लिए ठेकेदारों ने फर्जी दस्तावेज का इस्तेमाल किया है. मैनहर्ट्स को कंसल्टेंट नियुक्त करने से जुड़े दस्तावेज सरकार ने ऑडिट टीम को नहीं दिये. इससे कंसल्टेंट नियुक्ति में गड़बड़ी होने की जांच नहीं की जा सकी. हरमू नदी के जीर्णोद्धार की योजना के लिए बनाया गया डीपीआर भी सही नहीं था. नदी में अब भी गंदे नाले का पानी मिलता है. स्थल निरीक्षण के दौरान नदी का अधिकांश क्षेत्र गाद और कचरे से पटा पाया गया. अतिक्रमण की वजह से मुक्तिधाम के पास नदी की चौड़ाई 18.70 मीटर कम पायी गयी. विधानसभा में पेश भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक(सीएजी) की रिपोर्ट में इन तथ्यों का उल्लेख किया गया है. ये दोनों योजनाएं पूर्ववर्ती रघुवर सरकार के कार्यकाल की हैं.
मानसून सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को सीएजी की दो रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गयीं. सीएजी की रिपोर्ट में सीवरेज-ड्रेनेज योजना का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जून 2005 में शुरू हुई यह योजना 17 साल में भी पूरी नहीं हो सकी है. वर्ष 2006-07 में सर्वेक्षण किया गया और 2007 में डीपीआर अनुमोदित हुआ. पैसों के स्रोत के बिना ही सितंबर 2014 में योजना स्वीकृत की गयी. 2015 में काम शुरू हुआ. कंसल्टेंट के रूप में सिंगापुर की कंपनी मैनहर्ट्स का चयन किया गया. सरकार ने इस चयन प्रक्रिया से संबंधित दस्तावेज यह कहते हुए नहीं दिया कि एसीबी जांच के लिए फाइलें भेज दी गयी हैं.
टेंडर प्रक्रिया से जुड़ी फाइल नहीं मिलने की वजह से इसमें किसी तरह की गड़बड़ी हुई है या नहीं, इसका पता नहीं लगाया जा सका. डीपीआर बनाने के लिए कंसल्टेंट को 16.04 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जो बेकार साबित हुआ. सीएजी रिपोर्ट में हरमू नदी जीर्णोद्धार योजना का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इस योजना पर 92.78 करोड़ रुपये खर्च किये गये. इसका उद्देश्य नदी को जीवंत जल संपत्ति के रूप में बदलना था, लेकिन यह उद्देश्य पूरा नहीं हो सका. डीपीआर बनाने में जमीनी हकीकत और आंकड़ों को नजरअंदाज किया गया. नदी में अब भी गंदे नालों का पानी जा रहा है. इसके नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है.
सीवरेज-ड्रेनेज : तीन जोन का डीपीआर, काम एक का ही
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सीवरेज-ड्रेनेज का डीपीआर तीन जोन के लिए तैयार किया गया. हालांकि, सिर्फ पहले जोन में ही काम शुरू हुआ. बाकी दो जोन के डीपीआर का इस्तेमाल नहीं हुआ.
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फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों के जरिये मेसर्स ज्योति बिल्डटेक प्रालि और मेसर्स विभोर वैभव प्रालि ने ज्वाइंट वेंचर बना कर रांची नगर निगम से 359.25 करोड़ रुपये की लागत पर जोन-1 का टेंडर हासिल किया.
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कंपनी को पांच प्रतिशत के बदले 15 प्रतिशत की दर से मोबलाइजेशन एडवांस दिया गया. इससे 35.93 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान करना पड़ा. 18 करोड़ का भुगतान बिना किसी गारंटी के ही कर दिया गया.
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36 करोड़ रुपये के भुगतान के लिए कंपनी ने लखनऊ की चार्टर्ड मर्केंटाइल लि द्वारा जारी बैंक गारंटी दी थी. जांच के बाद आरबीआइ ने यह सूचित किया कि उनके पास बैंक गारंटी जारी करनेवाली कंपनी की कोई जानकारी नहीं है.
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काम संतोषप्रद नहीं होने और समय पर पूरा नहीं करने की वजह से रांची नगर निगम ने अक्टूबर 2019 में कंपनी के साथ किया गया एकरारनामा रद्द कर दिया.
हरमू नदी : जीर्णोद्धार पर खर्च हुए 92.78 करोड़, नहीं बदली सूरत
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नदी से मिलनेवाले 14 नालों में से सिर्फ नौ ही सीवरेज लाइन से जुड़े पाये गये. शेष पांच नालों का गंदा पानी सीधे नदी में गिरता है. दोषपूर्ण डिजाइन के कारण सीवरेज लाइन से जुड़े नालों का पानी भी नदी में मिलते पाया गया. इसके अलावा 56 छोटी-छोटी गंदी नालियां भी नदी में मिलती हैं.
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गंदा पानी निकालने के लिए तैयार संरचना का डिजाइन प्रति दिन 22.15 मिलियन लीटर को आधार मान कर किया गया था. जबकि, इसका आधार 47.12 मिलियन लीटर प्रतिदिन होना चाहिए था.
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पूरा डिजाइन नदी के 22.59 वर्ग किमी के जल ग्रहण क्षेत्र को आधार मान कर करने के बदले सिर्फ 8.49 किमी को आधार मान कर तैयार किया गया. मुक्तिधाम के पास कर्मा चौक पर नदी की चौड़ाई में 18.70 मीटर की कमी पायी गयी.
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जमीन नहीं मिलने की वजह से 10.5 मिलियन लीटर प्रतिदिन क्षमता का सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाया गया. 11.50 एमएलडी क्षमता वाले ट्रीटमेंट आठ प्लांट के बदले 10 एमएलडी क्षमता वाले 10 ट्रीटमेंट प्लांट चलते पाये गये.