Navratri 2023: कल से शुरू हो रहा शारदीय नवरात्र, घर पर ऐसे करें मां दुर्गे की पूजा-अर्चना
15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहा है. इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है. मंदिरों और घरों में कलश स्थापना की जाएगी. अगर आप भी अपने घरों में कलश की स्थापना कर रहे हैं तो इस प्रकार मां दुर्गा की पूजा कर सकते हैं.
Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्र रविवार यानी 15 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है. मंदिरों और घरों में कलश स्थापना होगी. पंडित कौशल कुमार मिश्र ने कहा कि नवरात्र में आप स्वयं पूजा-अर्चना कर रहे हैं, तो प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर पूजास्थल पर बैठें. इसके पहले सभी पूजन सामग्री को एक जगह एकत्रित कर पूजन स्थल के पास रख लें. कलश स्थापित करने के लिए मिट्टी, बालू और जौ मिलाकर वेदी बनायें.
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फिर भूमि का स्पर्श इन मंत्र से करें : ऊं भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ गुंग ह पृथिवीं मा हि गुंग सीः।।
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इसके बाद उस वेदी के बीच में सप्तधान्य रख दें. कलश पर स्वास्तिक बनायें और तीन बार मौली लपेटकर निम्न
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मंत्र बोलते हुए कलश स्थापना करें : ऊं आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।
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फिर निम्न मंत्र से कलश में जल डालें : ऊं वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद।
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कलश में चंदन छोड़े : ऊं त्वां गन्धर्वा अखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः। त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत।।
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कलश में सर्वोषधि छोड़े : ऊं या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनै नु बभ्रूणामहगुंग शतं धामानि सप्त च।।
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कलश में दूब छोड़ें : ऊं काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन च।।
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कलश में पंचपल्लव डालें : ऊंअश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरूषम्।।
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कलश में सप्तमृत्तिका डालें : ऊं स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरा निवेशनी यच्छा नः शर्म सप्रथाः।
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कलश में सुपारी डालें : याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व गुंग हसः।।
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कलश में पंचरत्न डाले : ऊं हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
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कलश पर पूर्णपात्र रखें : ऊं पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत। वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज गुंग शतक्रतो।।
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कलश पर नारियल रखें (लाल कपड़ा में लपेट कर) : ऊं याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व गुंग हसः।।
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इसके बाद हाथ में अक्षत फूल लेकर वरुण देवता का आवाहन करें : अस्मिन् कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि। ऊं भूर्भुवः स्वः भो वरुण इहागच्छ इह तिष्ठ स्थापयामि पूजयामि ऊं अपां पतये वरुणाय नमः।।
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पुनः कलश पर देवी-देवताओं का आह्वान करें, फिर कलश को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र पढ़ें :- अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च । अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
इस प्रकार कलश स्थापना कर कलश पर पूजन करें
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि। फूल चढ़ायें.
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः आसनार्थे पुष्पं समर्पयामि। फूल चढ़ायें।
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि। जल चढ़ायें।
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि। जल चढ़ायें।
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः स्नानीयं जलं समर्पयामि। जल चढ़ायें।
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि। जल चढ़ायें।
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि। पंचामृत चढ़ायें।
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। जल चढ़ायें।
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि। मौली धागा चढ़ायें. इसके बाद एक बार जल चढ़ायें.
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ऊं वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि। जनेऊ अर्पित करें. इसके बाद चंदन, फूल, फूलमाला, दूब, बेलपत्र, अबीर-गुलाल, सिंदूर, रोली, इत्र चढ़ाकर धूप, दीप दिखायें और नैवेद्य अर्पित कर पान-सुपारी, दक्षिणा चढ़ाकर पुष्पांजलि कर प्रार्थना करें.
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नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते.
इसके बाद यदि आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहते हैं, तो इसका पाठ कर लें. यदि आप संपूर्ण पाठ एक दिन में नहीं कर पा रहे हैं, तो फिर कवच, अर्गला, कीलक और कुंजिका स्त्रोत का पाठ प्रतिदिन करते हुए पहले दिन पहला अध्याय, दूसरे दिन दूसरा व तीसरा अध्याय, तीसरे दिन चौथा अध्याय, चौथे दिन पांच, छह, सात व आठवां, पांचवें दिन नौवां व दसवां, छठे दिन 11वां. सातवें दिन 12वां और 13वां अध्याय का पाठ करें. आठवां व नौवें दिन केवल देवीसुक्त का पाठ करें. इसके बाद क्षमा प्रार्थना कर लें. दशमी के दिन माता रानी की पूजा अर्चना कर जयंती ग्रहण कर लें. माता रानी की आरती कर प्रसाद अर्पित कर उन्हें जल दें़ सभी पूजन सामग्रियों व कलश का विसर्जन किसी नदी, तालाब, जलाशय अथवा डैम में कर दें.
राजकुमार लाल