नीरज अंबष्ट, धनबाद:
झारखंड मुक्त मोर्चा के पूर्व महासचिव एके सहाय ने बताया कि 70 के दशक में गुरुजी ( शिबू सोरेन) और बिनोद बिहारी महतो की मुलाकात धनबाद कोर्ट के सिरिस्ता में हुई थी. वहां से दोनों में जान-पहचान शुरू हुई. उसी दौरान अलग राज्य का आंदोलन तेज हुआ था. ऐसे में गुरुजी को एक व्यक्ति चाहिए था जो कि पुलिस व कोर्ट के मामले देख सके. इसमें बिनोद बाबू ने उनका पूरा सहयोग किया. इस बीच गुरुजी के विरुद्ध शूट एंड साइट का नोटिस जारी हुआ. गुरुजी बाइक (5400 नंबर) पर सवार होकर पहाड़ों से निकल कर भाग गये और ऋषिकेश में रहे. वह अक्सर मेरे आवास आते थे. 2018 में जब मेरी तबीयत खराब हो गयी थी और इसकी जानकारी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मिली तो वह भी कुशल-क्षेम पूछने घर आये थे.
झामुमो नेता चिरकुंडा निवासी काजल चक्रवर्ती बीते दिनों की याद करते हुए बताते हैं 1970 के दशक में रांची में रहकर पढ़ाई कर रहा था, तभी एक साथी आया और बताया कि मेरे आदिवासी हॉस्टल में एक व्यक्ति आये हैं. उसने पहली बार शिबू सोरेन से मिलवाया था. मिलने के बाद उन्होंने पूछा की पढ़ाई के बाद क्या करना है, तो मैंने कहा-सरकारी नौकरी करूंगा. उन्होंने मदद करने का आश्वासन दिया. एक दिन गुरुजी निरसा आये और जब मैंने मुलाकात की तो उन्होंने कहा कि मेरे साथ काम करो. इस बीच एक दिन सुदामडीह थाना में घेराव चल रहा था और मैं भी गुरुजी के साथ चला गया.
वहां पता चला कि पुलिस वालों को शूट करने का ऑर्डर मिला है. जब मैंने गुरुजी से कहा कि क्या सही में गोली चलेगी, तो उन्होंने कहा कि बंदुक से गोली ही चलती है, फूल नहीं बरसता. गोली सीने पर खाओगे, तो शहीद कहलाओगे. लेकिन संयोग से वहां कुछ नहीं हुआ. मैं उनके साथ लगा रहा. इस दौरान मेरी नौकरी भी लगी. 1980 के दशक में उन्होंने दुमका से चुनाव लड़ा. मैं उनके साथ ही था.