शिबू सोरेन आज 79वें साल में प्रवेश कर गये हैं. झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन की धमक का लोहा हर कोई मानता है. अगर उन्हें आज की तारीख में राज्य की राजनीति का धुरी मान लिया जाये तो गलत नहीं होगा. उनका प्रभाव ही था कि आदिवासियों ने उन्हें दिशोम गुरु का नाम दिया. उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत अपने पिता की हत्या के बाद की. शिबू सोरेन के पिता को महाजनों ने मार डाला था.
दिशोम गुरु का जन्म 1944 में हजारीबाग के नेमरा गांव में हुआ था. जो आज रामगढ़ जिले में है. वे हमेशा से ही आदिवासियों को बेहतर शिक्षा के लिए प्रेरित करते रहे हैं. वजह थी आदिवासियों में अशिक्षा की वजह से महाजन लोग आदिवासियों का गलत इस्तेमाल करते थे और वे महजनी प्रथा के सख्त खिलाफ थे. 4 फरवरी, 1973 को शिबू सोरेन ने बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झामुमो की स्थापना की. इसका उद्देश्य था महाजनी प्रथा को खत्म करना.
साथ ही साथ उनका उद्देश्य विस्थापितों के पुनर्वास और अलग राज्य के लिए आंदोलन करना भी था. 1977 में वे पहली बार धनबाद के टुंडी विधानसभा से चुनाव लड़े लेकिन हार गये. लेकिन असल मायने उनकी राजनीति का लोहा लोगों ने तब माना जब वे साल 1980 में दुमका लोकसभा से चुनाव लड़े और जीते, तब बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 13 सीट जीतकर सनसनी फैला दी थी.
शिबू सोरेन ने झारखंड के अलग राज्य के गठन के लिए अहम भूमिका निभायी. उन्होंने केंद्र से छोटानगपुर और संताल परगना को मिलाकर एक अलग राज्य के गठन की मांग की. शिबू सोरेन के दबाव का ही नतीजा था कि भारत सरकार ने झारखंड विषयक समिति का गठन किया गया. 1995 में इन्होंने झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद का गठन किया. जिसका उद्देश्य राज्य के विकास के लिए स्वायत्त संस्था में स्थानीय प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना था .
साल 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार में कोयला मंत्री बने और साल 2005 में पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बनें. हालांकि, उनका राजनीतिक करियर विवादों में भी रहा. इनमें से प्रमुख है चिरूडीह कांड. जिसकी वजह से उन्हें कोयला मंत्री के पद से इस्तीफा भी देना पड़ा.