Shikshak Diwas 2020, Teachers Day, Jharkhand, Bihar News : देश में लॉकडाउन 5.0 (Lockdown 5.0) और अनलॉक 4.0 (Unlock 4.0) चल रहा है. यहां कई सेक्टर रि-ओपेन हो चुके हैं. लेकिन, भारत (India) समेत कई देश अभी भी स्कूल (School reopen) और कॉलेज (Collage reopen) को खोलना सबसे रिस्की समझ रहे हैं. कोरोना (Corona) ने जहां भारत की शिक्षा नीति में बदलाव कर दिया. वहीं कई देश ऐसे हैं जो अपने शिक्षक (Teachers) को ही बदलना चाह रहे हैं. कुछ शिक्षक भी ऐसे हैं जो विदेशों में स्कूल खुलने के बाद अपना प्रोफेशन को बदल (Teachers Resignation news ) रहे हैं. वहीं, आज 05 सितंबर को देश भर में शिक्षक दिवस (Teachers Day) मनाया जा रहा है. ऐसे में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) टीचर एक्सेलेंस अवार्ड के लिए नामित और झारखंड केन्द्रीय विद्यालय के पूर्व प्रिंसिपल घनश्याम झा समेत अन्य टीचरों का इस बारे में क्या कहना है. आइये जानते हैं..
13 अगस्त को यूएस के एरिजोना में क्वीन क्रीक यूनिफाइड हाई स्कूल के विज्ञान शिक्षक, केविन फेयरहर्स्ट ने नौकरी छोड़ दी. अंग्रेजी वेबसाइट हेल्थलाइन में छपी रिपोर्ट के अनुसार उन्हें अपनी ये नौकरी बेहद पसंद थी. रिपोर्ट की मानें तो उन्हीं के जिले के दो उच्च विद्यालयों के करीब 17 और विज्ञान शिक्षकों में से 9 ने प्रोफेशन चेंज कर लिया है.
शिक्षकों का मानना है कि अभी स्कूल पूरी तरह से खुलने को तैयार नहीं हुआ है. अत: सुरक्षा कारणों से उन्हें उनके सबसे प्रिय प्रोफेशन को त्यागना पड़ा.
आपको बता दें कि इससे बदतर स्थिति फिलहाल भारत में शिक्षकों की है. गया में एक सीबीएसई स्कूल में संस्कृत शिक्षक के तौर पर कार्यरत तारकेश्वर सिन्हा की मानें तो उनके पहचान की एक महिला टीचर को मजबूरन गोलगप्पे बेचने पड़ रहे है. स्कूल नहीं खुलने से ज्यादातर टीचरों को प्रोफेशन बदलने की नौबत आ गयी है. कई बुजुर्ग शिक्षक ऑनलाइन पढ़ा पाने में सक्षम नहीं है. अत: इस कारण भी उन्हें प्रोफेशन बदलना पड़ रहा है.
फिटजी, रांची में कार्यरत फिजिक्स के शिक्षक प्रवीण की मानें तो वे भी इस प्रोफेशन को छोड़ने का मन बना रहे है. उन्होंने बताया कि पूरे लॉकडाउन के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.
वहीं, द कैटेलाइजर के निदेशक और रसायन विज्ञान के टीचर रूपक कुमार की मानें तो उन्होंने हाल ही में एक बड़े संस्थान को छोड़ अपना कोचिंग खोला था. लेकिन, कोरोना ने आर्थिक रूप से लोगों को करीब दस साल पीछे भेज दिया है. छोटे कोचिंग और स्कूलों का अस्तित्व तो लगभग समाप्त होने के कगार पर है. कई शिक्षक नये बदलाव को अपना नहीं पा रहे है. लेकिन शिक्षक समाज के मार्गदर्शक होते हैं, उनको कर्तव्य, निष्ठा, निरंतर परिश्रम एवं साहस के साथ विद्यार्थियों का मनोबल बनाए रखना होगा और विपत्ति में भी अच्छे अवसर तलाशने होंगे. उन्होंने बताया कि इस दौरान बच्चों की शिक्षा भी बहुत प्रभावित हुई है.
केन्द्रीय विद्यालय बरकाकाना, रांची के अंग्रेजी टीचर अंतर्यामी कुमार की मानें तो कोरोना काल वाकई में शिक्षकों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है. हालांकि, उनका कहना है कि भारत सरकार के अभी तक के प्रयास से वे संतुष्ट है और भविष्य में नियमों और शर्तों के साथ स्कूल खोला जा सकता है. उनका मानना है कि-
– शिक्षकों के लिए यह बुरा दौर है लेकिन, संयम रखना होगा. अभी तक लगभग सारे सेक्टर खुल चुके हैं केंद्र सरकार इसपर भी कार्य कर रही है. इसका ताजा उदाहरण शिक्षा नीति में बदलाव हैं.
– उनके अनुसार 9वीं से 12वीं तक की कक्षा शिफ्ट में चालू की जानी चाहिए,
– स्कूल में सीसीटीवी के जरिए मास्क नहीं पहनने वाले स्टूडेंट का निरीक्षण किया जाना चाहिए,
– थर्मल स्कैनर से आते-जाते समय बॉडी तापमान मापा जाना चाहिए,
– स्कूल प्रबंधन को सैनेटाइजर की व्यवस्था करनी चाहिए,
– टीचरों की सुरक्षा के लिए माइक सिस्टम स्कूल में लागू किया जाए,
– इसके अलावा अगर जरूरत पड़े तो पीपीई किट को स्कूल यूनिफार्म का हिस्सा बना दिया जाना चाहिए,
– स्कूलों में ही इम्यूनिटी बढ़ाने वाले फूड्स का वितरण किया जाना चाहिए.
विभिन्न केंद्रीय विद्यालयों में रसायन विज्ञान पढ़ा चुके और केवी, धुर्वा, रांची से सेवानिवृत प्रधानाचार्य घनश्याम झा ने अपना पूरा जीवन शिक्षण क्षेत्र में दे दिया. वर्तमान में वे राधे रूकमनी फाउंडेशन, देवघर के निदेशक हैं, जिसका मिशन ‘बेटी पढ़ाओ, परिवार पढ़ाओ, देश बढ़ाओ’ है.
आज शिक्षक दिवस के मौके पर इन्हें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन टीचर एक्सेलेंस अवार्ड से सम्मानित किया जाना है. ऐसे में उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि मैं अपने उम्र के 65वें पड़ाव पर हूं और अभी भी मैं काफी एक्टिव रहता हूं. उनका मानना है कि एक शिक्षक कभी रिटायर नहीं हो सकता. विपरित परिस्थितियों से सैकड़ों बच्चों को बाहर निकालने वाले शिक्षक इतनी जल्दी हार मान जाए तो वे शिक्षक नहीं. कोरोना महामारी ने हर क्षेत्र को प्रभावित किया है. लेकिन, टीचर भी समाधान निकालने के लिए जाने जाते हैं. इस कठिनाई वाले समय में सभी शिक्षकों को अपने प्रोफेशन के प्रति ईमानदार होना होगा. उनका कहना है कि-
इस कोरोना महामारी में शिक्षा को बच्चों तक पहुंचाने में ऑनलाइन क्लास ने अहम भूमिका निभाई है. एक समय था जब मैं भी बच्चों को इसी स्मार्टफोन से दूर रहने की सलाह देता था. लेकिन, आज मैं भी कहता हूं कि आने वाले समय में बच्चों के साथ-साथ शिक्षक को भी इससे जुड़ना चाहिए. समय की यही डिमांड है.
वे बताते हैं स्वीडन में रह रहे मेरे बच्चों के अनुसार दुनिया का पहला देश है स्वीडन जहां पूर्ण लॉकडाउन कभी नहीं किया गया. पूरे समय शिक्षा सुचारू रूप से चलती रही. उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि उनकी पोती लगातार स्कूल जा रही है. वहीं, उनके भोजन की भी व्यवस्था रहती है. सोशल डिस्टेंसिंग से लेकर सभी अन्य गाइडलाइन को बड़े सही तरीके से वहां अपनाया गया है. उन्हें उम्मीद है केंद्र जरूर वहां के तजुर्बे को भारत में भी अपनाने की कोशिश करेगा.
Posted By : Sumit Kumar Verma