झारखंड: भगवान शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है शिवलिंग, श्री शिवमहापुराण कथा में बोले स्वामी परिपूर्णानंद

स्वामी परिपूर्णानंद ने कहा कि आकाश, पृथ्वी, जल, वायु एवं अग्नि सभी में शिव का वास है. काल भैरव शिव के ही अवतार हैं, जो काशी में कोतवाल के रूप में विराजमान हैं. राम भक्त हनुमान शिव के ही अंशावतार हैं. वे रांची के श्री श्याम मंदिर में श्री श्याम मंडल द्वारा आयोजित श्री शिवमहापुराण कथा में बोल रहे थे.

By Guru Swarup Mishra | August 7, 2023 9:07 PM
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रांची: अग्रसेन पथ स्थित श्री श्याम मंदिर में श्री श्याम मंडल द्वारा आयोजित पावन श्री शिवमहापुराण कथा के सप्तम एवं अंतिम दिन भक्तों का उत्साह देखने लायक था. शाम 4 बजे स्वामी परिपूर्णानंद के व्यास पीठ पर विराजमान होने के बाद पारंपरिक पूजन-वंदन के साथ स्वामी ने शिव व्याख्यान को आगे बढ़ाया. उन्होंने कहा कि शिवलिंग भगवान शिव के निर्गुण और निराकार स्वरूप का प्रतीक है. सच्चिदानन्द स्वरूप भगवान शिव सर्वव्यापी हैं. स्वामी परिपूर्णानंद ने शिव के विभिन्न अंशावतार व पूर्णावतार की विस्तृत जानकारी दी.

आकाश, पृथ्वी, जल, वायु एवं अग्नि सभी में शिव का वास

स्वामी परिपूर्णानंद ने कि उन्नीसवें कल्प में सत्योजात शिव का अवतार हुआ. नाम देव शिव, महाबाहु स्वरूप शिव, अघोर रूप में महादेव आदि अनेक रूपों में शिव ने अवतार लिया. आकाश, पृथ्वी, जल, वायु एवं अग्नि सभी में शिव का वास है. इसके साथ ही व्याख्यान को आगे बढ़ाते हुए प्रसंगवश स्वामी जी ने नरसिंह अवतार का सुंदर वर्णन किया. काल भैरव शिव के ही अवतार हैं, जो काशी में कोतवाल के रूप में विराजमान हैं. इसके साथ ही कहा कि राम भक्त हनुमान शिव के ही अंशावतार हैं. इस पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए स्वामी जी ने कहा कि शिव के तेज को पवनदेव ने अंजनी के गर्भ स्थापित किया. इसलिए हनुमान पवन पुत्र, अंजनीसूत, शंकर सुवन व केसरीनंदन कहलाए.

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त्रिशूल दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों के विनाश का है सूचक

स्वामी परिपूर्णानंद ने द्वादश शिवलिंगों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला. शिव का शृंगार हर स्वरूप में अपने आपमें विशेष है. त्रिशूल दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों के विनाश का सूचक है. रुद्रक्ष भगवान शिव का ही स्वरूप है जो उनकी आंसुओं से प्रकट हुआ. त्रिपुण्ड तिलक, त्रिगुण- सतोगुण, रजोगुण और तपोगुण का प्रतीक है. भस्म आकर्षण, मोह, अहंकार आदि से मुक्ति का प्रतीक है. जटा में गंगा, अध्यात्म की धारा की प्रतीक है. नन्दी शिव के गण हैं एवं नाग शिव की कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है. चंद्रमा मन की स्थिरता और आदि से अनन्त का प्रतीक है. कुंडल शिव शक्ति के रूप में श्रृष्टि के सिद्धांत का नेतृत्व करते हैं. डमरू श्रृष्टि के आरम्भ एवं ब्रम्हनाग का प्रतीक है. कमंडल, संतोषी, तपस्वी, अप्रिग्रही जीवन साधना का प्रतीक है. इस प्रकार शिव के ज्योतिर्लिंगों एवं दिव्य स्वरूप का वर्णन करते हुए स्वामी जी ने शिवमहापुराण कथा का समापन किया.

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सात दिनों की शिवमहापुराण कथा का समापन

आज के अंतिम दिन की कथा के समापन के मौके पर आरती शहर के प्रसिद्ध डॉक्टर एमसी खेतान के परिवार द्वारा किया गया. इसके साथ ही प्रसाद का वितरण किया गया. इसके साथ ही सात दिनों तक चलने वाली शिवमहापुराण कथा का समापन किया गया. आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में सुरेश चन्द्र पोद्दार, चन्द्र प्रकाश बागला, श्याम सुन्दर पोद्दार, रमेश सारस्वत, गोपी किशन ढांढनियां, ओम जोशी, मनोज सिंघानिया, धीरज बंका, राकेश सारस्वत, विजय शंकर साबू ‍ व सुमित पोद्दार का सहयोग रहा.

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शिव पूजन से लोक एवं परलोक दोनों सुधर जाता है

महाशिवपुराण कथा के छठे दिन रविवार को बारिश की फुहारों के बीच श्रद्धालुओं ने कथा का रसपान किया. स्वामी परिपूर्णानंद ने व्यास पीठ पर विराजमान होने के बाद अमृत रस की वर्षा की. स्वामी जी ने कहा कि महादेव हर जीव के जीवन में अनुग्रह करने वाले देव हैं. शिव पूजन से लोक एवं परलोक दोनों सुधरता है. इस जगत में हर मनुष्य को सदेव मर्यादा का पालन करना चाहिए. मर्यादा रहित जीवन, जीवन को धिक्कार है. परमात्मा के साथ वात्सल्य रूप से तारतम्य स्थापित करने से जीवन सुखमय एवं मंगलमय हो जाता है. सदाशिव कृपा सिंधु हैं. दीनबंधु हैं और दया के अथाह सागर हैं. व्यास रचित महाभारत महाग्रंथ की महिमा का वर्णन करते हुए स्वामी जी ने कहा कि जिस घर में यह ग्रंथ रहता है, वह घर पवित्र हो जाता है.

पंचम वेद है महाभारत ग्रंथ

स्वामी परिपूर्णानंद ने कहा कि महाभारत ग्रंथ पंचम वेद है. जो भी संसार में घटित होता है अथवा होगा. इस ग्रंथ में समाहित है. शिव मृत्युंजय हैं. महामृत्युंजय के जाप से जीव पर आने वाले सब प्रकार के कष्टों का निवारण हो जाता है. परहित के समान दूसरा पूजाधर्म नहीं है. परपीड़ा को दूर करना अत्यंत शुभ है. गणपति उत्पति का अतिसुंदर वर्णन करते हुए स्वामी जी ने सामूहिक गणेश वन्दना की. स्वामी जी कहते हैं कि अहिंसा परमो धर्म:. इस सूक्त वाक्य की विस्तृत व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म रक्षा के लिए की गई हिंसा क्षमा योग्य है. इसके साथ ही विश्वकर्मा द्वारा निर्मित रथ जिसके सारथी स्वयं ब्रम्हा हैं और वाण स्वयं भगवान विष्णु हैं. उस पर सवार होकर शिव जी ने त्रिपुर राक्षस का संहार कर त्रिपुरारी नाम पाया था.

भक्ति की गंगा में गोते लगाते रहे भक्त

स्वामी जी ने शिवमहापुराण में राधा प्रसंग का वर्णन करते हुए अति सुंदर भजन प्रबल प्रेम के पाले पड़कर-प्रभु को नियम बदलते देखा. भक्तगण इस भजन की तान पर प्रेम रस में गोता लगाने लगे. इसके साथ ही स्वामी जी ने कहा कि सत्य ही परब्रम्ह हैं. सत्य ही परम तप हैं. सत्य ही श्रेष्ठ यज्ञ है और सत्य ही उत्कृष्ट ज्ञान शास्त्र है. एक सहस्त्र अश्वमेघ और लाखों यज्ञ तराजू के एक पलड़े पर रखें और दूसरे पलड़े पर सत्य रखें, तो सत्य का पलड़ा सदैव भारी रहेगा. व्याख्यान समाप्ति के बाद गंगाधर जी जाजोदिया एवं उनके परिवार के द्वारा महाआरती की गयी.

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