::::::::::: एड्स सुरक्षा दिवस पर विशेष ::::::::::::
विधवा राधा का हाथ राहुल ने थामा, आज दो बच्चों की मिलकर कर रहे परवरिश
पति-पत्नी एड्स पीड़ित दूसरे लोगों का भी कर रहे हैं सहयोग, दिखा रहे हैं राह
::::::::: :::::::::::: :::::::::: ::::::::::लता रानी, रांची
रांची की एक एचआइवी पॉजिटिव दंपती मिसाल है. दोनों ने एचआइवी पॉजिटिव होते हुए एक-दूसरे का हाथ थामा और आज अपने दो बच्चों के साथ हंसी-खुशी साथ रह रहे हैं. दूसरे एड्स पीड़ितों की सहायता भी कर रहे हैं.
यह कहानी है दुमका की राधा (बदला हुआ नाम) की. राधा का विवाह 2004 में बोर्ड परीक्षा के बाद हो गया. उस समय उसकी आयु मात्र 16 साल थी. राधा ने शादी के एक साल के बाद बेटी को जन्म दिया. उसी साल उसे पता चला कि पति एचआइवी पॉजिटिव हैं. जब पति को पता चला कि वह पॉजीटिव हैं, तो खुद को संभाल नहीं पाये. बीमार रहने लगे और फिर एक साल के अंदर उनका देहांत हो गया. राधा पहले से ही अनाथ थी. पिता का साया न था. शादी के बाद राधा अपने पति से पॉजिटिव हो चुकी थी. जब पति का देहांत हुआ, तब उसकी बेटी मात्र दो महीने की थी. उसने बेटी की भी जांच करायी. जब बेटी की रिपोर्ट निगेटिव आयी, तो उसकी जान में जान आयी. बेटी को देखकर उसने एड्स से लड़ने की ठानी. बेटी की परवरिश के लिए पहले तो ट्यूशन पढ़ा कर आय अर्जित की. फिर अच्छी नौकरी पाने के लिए इंटर की पढ़ाई की. फिर नौकरी भी की. इसी नौकरी के दौरान 2010 में राहुल (बदला हुआ नाम) से उसकी मुलाकात हुई. राहुल भी एचआइवी पॉजिटिव थे. लेकिन राधा को जिंदगी की इस जंग को हंसते हुए पार करते देख बहुत प्रभावित हुए. राधा के साथ दोस्ती का सिलसिला रिश्ते में बदल गया. राहुल ने राधा और उसकी बेटी को अपना लिया. 2012 में राधा से अरेंज मैरिज कर ली. बाजे-गाजे के साथ रजरप्पा में दोनों की शादी हुई. एक विधवा और उसकी बेटी को अपना कर राहुल समाज के लिए मिसाल बन गये. बेशक दोनों को एड्स को लेकर समाज के दंश को झेलना पड़ा था. लेकिन दोनों के परिजनों ने उन्हें अपना लिया था. उन्हें जरूरत थी पारिवारिक सपोर्ट की, जो दाेनों को मिला. दोनों संयुक्त परिवार के बीच हंसी-खुशी रहते हैं. अब दोनों का एक बेटा भी है. बेटा चार साल का है और बेटी अब 19 साल की हो चुकी है. :::::::: :::::::: ::::::::::: :::::::::: रेगुलर दवा से जिंदगी को खूबसूरती से जीयेंराधा कहती हैं कि एड्स भी बीपी, शुगर जैसी एक आम बीमारी की तरह ही है, पर आरंभ में इस बीमारी का जिस तरह से प्रचार हुआ, उससे लोग आज भी डर जाते हैं. मैंने तो आइसीटीसी के काउंसलर की सलाह पर अपनी बच्ची को अपना दूध पिला कर पाला. पर आज तक हम दोनों को कुछ नहीं हुआ. मेरे दोनों बच्चे निगेटिव और पूरी तरह स्वस्थ हैं. वहीं राहुल कहते हैं कि एचआइवी पीड़ित भी आम इंसान होते हैं. पर जब समाज को उसके पॉजिटिव होने का पता चलता है, तो उनके साथ भेदभाव होने लगता है. जब मुझे पता चला कि एचआइवी पॉजिटिव हूं, तो दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की. पर जब रेगुलर दवा लेने लगा, तो आज स्वस्थ हूं.
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