जिन पांच सद्य: प्रकाशित पुस्तकों की संक्षिप्त चर्चा की जा रही हैं उनके रचनाकार सुजीत केशरी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में एक लंबी पारी खेली है और अपने काम के दौरान कुछ ऐसे अनुभवों से दो-चार हुए हैं, जो सुबह-शाम की अल्पप्राण खबरों के इतर उत्तरजीविता की मांग करते हैं. ये पुस्तकें रचनाकार के परिश्रम स्वेद और स्थानीय समाज-संस्कृति की सुगंध से स्नात् हैं. लेखक ने तथ्यों की पुष्टि के लिए यथास्थान पर्याप्त संदर्भों का उल्लेख भी किया है.
इनकी दो पुस्तकें ’ऐतिहासिक गांव सुतियांबेगढ़’ और ‘कहानी पिठोरिया की’ एक हद तक भूगोल, इतिहास तथा सामाजिक संपर्क की दृष्टि से संबद्ध प्रतीत होते हैं. प्राचीनता के उत्स को खोजते लेखक को सांस्कृतिक मिथकों से टकराना पड़ा हैं, जो इतिहास से आकार ग्रहण करते हैं. सुतियांबेगढ़ की ऐतिहासिक कथा भारत के विभिन्न् क्षेत्रों से गुजरते बसते और उजड़ते हुए मुंडा जनजाति के सुतियांबे में बसने से प्रारंभ होती हैं, जिसके अनगढ़ पुरातात्विक अवशेष मुड़हर पहाड़ की चोटियों और कंदराओं से समर्थन प्राप्त करते प्रतीत होते हैं.
सुतियांबे का दूसरा विकास नागवंश के संस्थापक राजा फणिमुकुट राय से प्रारंभ होता हैं. जिनकी कुछ पीढ़ियों ने सुतियांबे की पुरा-राजधानी से राज्य का संचालन किया. फणिमुकुट राय पुंडरिक नाग तथा ब्राह्मण कन्या पार्वती के जैविक पुत्र थे, जिसे राजा मदरा मुंडा ने पोष्य पुत्र के रूप में स्वीकार किया. यह पुस्तक मुंडाओं के मौखिक और परंपरागत इतिहास की अप्रकाशित जानकारियां भी प्रस्तुत करती हैं.
पिठोरिया की चर्चा करते हुए लेखक इसके ऐतिहासिक अध्यायों की खोज करते हैं. कभी शेरशाह सूरी ने अपनी समर यात्रा के क्रम में यहां की एक मस्जिद में नमाज अदा की थी. ओल्ड बनारस रूट के एक अच्छे बाजार के रूप में पिठोरिया की पहचान थी. कृषक और व्यवसायी समाज के लोग यहां के पुराने निवासी हैं. लंदन से सन् 1788 ईस्वी में प्रकाशित बंगाल के मानचित्र में रांची, गुमला, हजारीबाग, डाल्टनगंज जैसे आज के महत्वपूर्ण शहर अनुपस्थित हैं किंतु पिठोरिया, डोइसा नगर, पालकोट, रामगढ, चुटिया, बरकट्ठा और बगोदर जैसे स्थान अंकित हैं. जिससे पुराने समय में इन स्थानों की महत्वपूर्ण स्थिति का ज्ञान होता है.
पिठोरिया के साथ बदनाम-ए-जमाना परगनैत जगतपाल सिंह का नाम जुड़ा है, जो पिठोरिया से अपनी 84 गांवों की जागीरदारी का संचालन करते थे. लेखक ने परगनैत जगतपाल सिंह के चरित्र के कुछ सकारात्मक पक्षों की तलाश भी की है. जैसे उनका प्रजापालक होना, पिठोरिया को व्यवस्थित रूपाकार में बसाना. उनका कला संस्कृति, नृत्य गान आदि से प्रेम. उन्होंने कवियों-कलाकारों तथा पहलवानों को संरक्षण प्रदान किया था.
वे स्वयं भी कवि थे. उनकी काव्य रचना से उनका संवेदनशील व्यक्तत्वि अभिव्यक्त होता है. जगतपाल सिंह तत्कालीन नागवंशी महाराज जगन्नाथ शाही के अधीनस्थ सामंत थे. इसी पुस्तक में पिठोरिया के पुरातत्व, स्थापत्य, आराधना स्थल, शिक्षण संस्थाओं, बैंक, खेलकूद, पिठोरिया के प्रमुख व्यक्तियों, लेखकों-कवियों, चिकित्सकों, विद्वानों, शोधकर्ताओं, प्रमुख घटनाओं आदि की तथ्यात्मक जानकारी एकत्रित कर के लेखक श्री केशरी ने इसे एक उपयोगी संदर्भ ग्रंथ का रूप दे दिया है. एक गांव को आधार बना कर समाज तथा संस्कृति की पड़ताल करने के क्षेत्र में यह एक अनूठी रचना है.
लेखक की तीसरी और चौथी पुस्तकें है–‘सब कुछ लुटा तो लुटाना सीखा’ तथा ‘अब इन टूटे तारों से कौन करेगा प्यार’. दोनो पुस्तकें विषय वस्तु के आधार पर संबद्ध लगतीं हैं. ये उन कर्मयोगियों को समर्पित हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और समाज के लिए कुछ करने की स्फूर्ति भी उन्हीं परिस्थितियों से पाई. इसमें डिवाइन ओंकार मिशन के संस्थापक श्री तरसेम लाल नागी जी आते हैं, जिन्होंने अपनी संपत्ति समाज के पीड़ितों और वंचितों के लिए समर्पित कर दी है.
प्रसिद्ध विद्वान तथा चर्चित व्यक्तित्व डॉ बीपी केशरी से लेकर शानदार मूछें रखने वाले रामेश्वर महतो तक की कथा संकलित हैं. अनपढ़, किंतु सात भाषाएं जानने वाले हिंगू ठाकुर, कबूतरों के मित्र नारायण महतो, विकलांग सहेली के प्रति समर्पित रीना जैसी अनेक दिलचस्प और प्रेरक कथाएं हैं. सारंगी वादक सोमनाथ लोहरा की जीवनी बताई गई है. एक सफल और कुशल कलाकार होते हुए भी आज वे सामाजिक उपेक्षा, गरीबी तथा बीमारी के शिकार हो कर कष्ट और निराशा का जीवन गुजार रहे हैं.
ऐसे नायकों में सब्जी की खेती में नये आयाम गढ़ने वाले श्री नकुल महतो, संघर्ष से राह बनाने वाली हीरामनि केरकेट्टा, जंगल बचाने पतरातू के लोग, महिला किसान वीणा देवी, मछली और मधुमक्खी पालन में कीर्तिमान बनाने वाले परिवार, उभरते नागपुरी गायक इगनेश कुमार, कुशल जादूगर भारती, चित्रकाव्य के महारथी जगनिवास नारायण तिवारी जेसे लोगों की रोचक कथाएं हैं. लेखक ने आम से लगने वाले लोगों की खास विशेषताओं की खोज की है.
इसी में आचार्य मृत्युंजय नाथ शर्मा की भी कथा है, जो संस्कृत के साथ कई भाषाओं के विद्वान, नागपुरी के प्रथम महाकाव्य ‘सीतायन’ के रचनाकार तथा कवि थे. उन्होंने भी अपना जीवन नागपुरी की सेवा में समर्पित कर दिया था. यह पुस्तक पत्रकारिता और साहित्य के मध्य स्वर्ण सोपान-सा प्रतीत होती है.
लेखक की पांचवीं पुस्तक है–‘भारतीय संस्कृति में अंक का महत्व’. प्राचीन काल से ही अंक हमारी संस्कृति में ज्ञान-विज्ञान, हिसाब-किताब, पंचाग, यज्ञ, रेखागणित, पुराण और इतिहास की दुनिया में अपने महत्व का प्रतिपादन करते आ रहे हैं. लेखक ने अंक एक से लेकर सत्तर तक को अध्यायों के रूप में रख कर उनके सांस्कृतिक, पौराणिक, सामाजिक तथा धार्मिक अर्थो का निरूपण किया है.
( सिसई)