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तीन वर्षों में देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या 10.2 से 11.3 % हुई, जानें झारखंड की स्थिति

भारत सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक देश में आत्महत्या करने वालों में करीब 63.3 फीसदी ऐसे लोग होते हैं, जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम है. कुल आत्महत्या करनेवालों में 32.2 फीसदी ऐसे होते हैं

राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार आत्महत्या रोकने के लिए रणनीति तैयार की गयी है. भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कई विभागों के साथ लगातार विचार-विमर्श के बाद एक रणनीति तैयार की है. इसमें तय किया गया है कि 2030 तक आत्महत्या 10 फीसदी तक कम करने का प्रयास किया जायेगा. असल में आत्महत्या करने वाला सबसे वर्ग 18 से 30 साल का है. इस वर्ग की आबादी की मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या हो गया है. इसको कैसे रोका जाये, इसके लिए भारत सरकार ने एक उच्च स्तरीय कमेटी बनायी थी. कई दौर की बैठकों के बाद कमेटी ने आत्महत्या रोकने वाली रणनीति को अंतिम रूप दे दिया है. इस कमेटी में सीआइपी के डॉ वरुण मेहता भी थे.

आर्थिक स्थिति भी ले रही जान

भारत सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक देश में आत्महत्या करने वालों में करीब 63.3 फीसदी ऐसे लोग होते हैं, जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम है. कुल आत्महत्या करनेवालों में 32.2 फीसदी ऐसे होते हैं, जिनकी वार्षिक आय एक से पांच लाख रुपये के बीच होती है. वहीं 10 लाख रुपये से अधिक वार्षिक आय वाले मात्र एक फीसदी लोग ही जिंदगी से हारते हैं.

सुसाइड का बड़ा कारण अशिक्षा भी

भारत सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक देश में सबसे अधिक आत्महत्या 10वीं कक्षा तक के विद्यार्थी करते हैं. यह कुल आत्महत्या करने वालों का करीब 23.4 फीसदी है. इसमें आठवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वालों की हिस्सेदारी करीब 19.5 फीसदी है. कुल आत्महत्या करने वालों में करीब 12.6% लोग अशिक्षित होते हैं. वहीं उच्च शिक्षा या प्रोफेशनल सिर्फ चार फीसदी के करीब हैं

सबसे बड़ा कारण है पारिवारिक समस्या

आत्महत्या करनेवालों का सबसे बड़ा कारण पारिवारिक समस्या है. करीब 34 फीसदी लोग पारिवारिक कारणों से आत्महत्या कर लेते हैं. 18 फीसदी लोग बीमारी से परेशान होकर जिंदगी से हार जाते हैं. पांच फीसदी आत्महत्या का कारण विवाह संबंधी मुद्दा है़ वहीं प्यार के मामले में चार फीसदी लोग सुसाइड कर लेते हैं.

सभी स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य की होगी पढ़ाई

भारत सरकार ने आत्महत्या रोकने के लिए कई योजनाएं बनायी है. अगले आठ वर्ष में देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी पढ़ाई शुरू करने की योजना है. इस अभियान को मजबूत करने में सभी स्टॉक होल्डर्स की मदद ली जायेगी. इसमें मीडिया की भूमिका पर भी विचार किया जायेगा. मीडिया को भी जिम्मेदारी रिपोर्टिंग की तकनीक सिखायी जायेगी. इसके लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से भी संपर्क किया जा सकता है. अगर कोई मीडिया समूह आत्महत्या के मामले में गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग करता है, तो उसकी शिकायत भी दर्ज करायी जायेगी.

1. समय-समय पर किसानों की आत्महत्या के मामले आते रहते हैं. इसको रोकने के लिए वैसे कीटनाशक जिससे फसलों को नुकसान हो जाता है, उसको बाजार से हटाने की भी योजना है. इसके लिए भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संपर्क किया जा सकता है. किसानों को ज्यादा से ज्यादा जेनरिक कीटनाशक के उपयोग के लिए प्रेरित किया जायेगा़ यह भी देखा जाता है कि कीटनाशक खाकर आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या ज्यादा है.

2. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर नशे के आदी और मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों को साइकोलॉजिकल सपोर्ट करने की जरूरत है. इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जायेगा. जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को मजबूत करना होगा.

विशेषज्ञों की बात

कोरोना काल के बाद आत्महत्या बड़ी समस्या बनकर उभरी है. आनेवाले समय में मौत के सबसे बड़े कारण में एक है. इससे बचने के लिए प्रयास शुरू किया गया है़ इसका सार्थक असर दिखेगा. कोशिश होनी चाहिए कि एक व्यापक अभियान चलाया जाये.

-डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, मनोचिकित्सक, रिनपास

आत्महत्या के कई कारण हैं. सबसे ज्यादा युवा आत्महत्या कर रहे हैं, जो देश के लिए बड़ी क्षति है. भारत सरकार ने इसे रोकने के लिए पहली बार सराहनीय प्रयास किया है. अलग-अलग सेक्टर के लिए अलग-अलग रणनीति तय की गयी है. अगर यह काम जमीन पर उतर जायेगा, तो स्थिति बदल सकती है.

-डॉ स्वप्निल बोस, मनोवैज्ञानिक

रिपोर्ट- मनोज सिंह

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