रांची : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) ने जान-बूझकर झूठा शपथ पत्र दायर करने के मामले में गढ़वा के उपायुक्त से जवाब-तलब किया है. साथ ही ट्रिब्यूनल के समक्ष इस सिलसिले में अपना स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया है. ट्रिब्यूनल ने उपायुक्त द्वारा दायर शपथ पत्र को झूठा और चौंका देनेवाला करार दिया है. इस मामले की सुनवाई अब 10 अप्रैल को होगी.‘भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास किसान समिति’ ने एनजीटी में एक याचिका दायर की है. मामला कैमूर वाइल्डलाइफ सेंचुरी से संबंधित है. एनजीटी ने इस मामले की सुनवाई के लिए 15 फरवरी की तिथि निर्धारित की थी. साथ ही इस मामले में गढ़वा के उपायुक्त को शपथ पत्र दायर करने का निर्देश दिया था. एनजीटी के निर्देश के आलोक में उपायुक्त की ओर से 13 फरवरी को शपथ पत्र दायर किया था. इसमें यह कहा गया था कि कैमूर वाइल्डलाइफ सेंचुरी के इको-सेंसिटिव जोन के सिलसिले में 1979 में ड्राफ्ट पब्लिकेशन किया गया था. अब तक इस मामले में फाइनल पब्लिकेशन नहीं किया गया है.
उपायुक्त के शपथ पत्र पर एनजीटी ने जताया आश्चर्य
एनजीटी ने मामले से संबंधित कोर्ट में मौजूद में वर्णित तथ्यों के मद्देनजर उपायुक्त द्वारा दायर किये गये शपथ पत्र पर आश्चर्य व्यक्त किया है. अदालत ने कहा है कि वह उपायुक्त स्तर के अधिकारी द्वारा दायर किये गये झूठे शपथ पत्र से हैरान है. उपायुक्त का शपथ पत्र कोर्ट के रेकर्ड में मौजूद दस्तावेज को झुठलाने वाला है. कोर्ट के रेकर्ड में वन पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 13 दिसंबर 2015 को कैमूर वाइल्डलाइफ सेंचुरी इको-सेंसिटिव जोन के सिलसिले में जारी की गयी अधिसूचना मौजूद है. अधिसूचना में भी उल्लेख किया गया है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 20/7/1979 को जारी अधिसूचना संख्या-एसओ1160 के सहारे वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट-1972 के तहत कैमूर वाइल्डलाइफ सेंचुरी को इको-सेंसिटिव जोन घोषित किया गया था. उपायुक्त द्वारा तथ्यों को इस तरह नजरअंदाज किया जाना चौंकानेवाला है. इसलिए गढ़वा के उपायुक्त को यह निर्देश दिया जाता है कि वह ट्रिब्यूनल में झूठा शपथ पत्र दायर करने के मामले में अपना स्पष्टीकरण दें. सिया और गढ़वा के वन विभाग द्वारा अपना प्रति शपथ पत्र दायर करने के लिए समय की मांग की गयी. इसके बाद एनजीटी ने याचिका पर सुनवाई के लिए 10 अप्रैल की तिथि निर्धारित की है.
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