झारखंड: सुपर स्पेशियलिटी का टैग लगा निजी अस्पताल मरीजों का कर रहे दोहन, एक ही सर्जरी के अलग-अलग चार्ज
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहां विभिन्न शहरों में 18 से 20 मल्टी और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल स्थापित हो गये हैं. इनमें तीन-चार अस्पताल तो पहले से ही संचालित हो रहे थे
राजीव पांडेय, रांची :
झारखंड के बड़े शहरों में (राजधानी रांची में सबसे ज्यादा) सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल का टैग लगा कर चल रहे निजी व कॉरपोरेट अस्पताल ‘स्वास्थ्य विभाग’ और ‘सरकार’ की नाक के नीचे मरीजों का दोहन कर रहे हैं. एक ही शहर में इलाज और सर्जरी के लिए अलग-अलग राशि वसूली जाती है. ‘प्रभात खबर’ एक बार फिर ‘अस्पताल कथा’ की इस कड़ी के जरिये मरीजों पर बढ़ते आर्थिक बोझ को उजागर करने का प्रयास कर रहा है.
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहां विभिन्न शहरों में 18 से 20 मल्टी और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल स्थापित हो गये हैं. इनमें तीन-चार अस्पताल तो पहले से ही संचालित हो रहे थे, लेकिन बाद में उन्होंने भी खुद को मल्टी या सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में बदल लिया. चिंता की बात यह है कि मरीज अगर अपना इलाज छोटे अस्पताल या क्लिनिक में कराता है, तो कम खर्च लगता है, जबकि सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में इलाज में खर्च कीब 50 फीसदी बढ़ जाता है. डॉक्टरों के क्लिनिक की तुलना में छोटे और चैरिटेबल अस्पताल में करीब 35 फीसदी ज्यादा पैसे लगते हैं.
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अस्पताल बदलते ही बढ़ जाता है खर्च : सामान्य गॉल ब्लाडर में स्टोन की सर्जरी में मरीजों को अपने ही शहर में अलग-अलग खर्च का इस्टिमेट दिया जाता है. सर्जन की क्लिनिक में गॉल ब्लाडर की सर्जरी के लिए 25,000 से 30,000 रुपये लिये जाते हैं. वहीं, मरीज अगर छोटे या ट्रस्ट के अस्पताल में ऑपरेशन कराता है, तो उसका 45,000 से 50,000 रुपये लगते हैं. अगर मरीज सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल में सर्जरी के लिए जाता है, तो उससे 70,000 से 80,000 रुपये वसूले जाते हैं. सामान्य सर्जरी, गॉल ब्लाडर, हार्निया, अपेंडिक्स और आंत फंसने की सर्जरी के लिए शहर के सर्जन अपने क्लिनिक के अलावा छोटे और कॉरपोरेट अस्पताल में जाते हैं. बीमारी और सर्जन वही रहते हैं, लेकिन इलाज और सर्जरी का खर्च अलग-अलग हो जाता है.
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झारखंड अलग राज्य बनने के बाद विभिन्न शहरों में 18 से 20 मल्टी व सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल स्थापित हुए
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20 से 25% की बढ़ोतरी दर्ज की गयी मरीजों के इलाज के खर्च में अस्पतालों का स्वरूप बदलने के बाद
केस स्टडी : एक सर्जन का अलग-अलग चार्ज
रांची के एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के गॉल ब्लाडर में स्टोन की सर्जरी कराने के लिए शहर के कई अस्पताल से खर्च का इस्टिमेट लिया. एक ही सर्जन का विभिन्न अस्पताल में अलग-अलग खर्च था. उनके चैरिटेबल अस्पताल में 40,000 से 45,000 खर्च बताया गया, लेकिन मरीज जैसे ही सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल पहुंचा, को उसका खर्च शेयरिंग रूम में 70,000 रुपये और सिंगल रूम में 80,000 रुपये बताया गया.
दूरबीन से सर्जरी निजी अस्पतालों में एक लाख से ज्यादा का खर्च
क्लिनिक व छोटे अस्पताल की तुलना में कॉरपोरेट अस्पताल में दूरबीन से सर्जरी के खर्च में काफी अंतर है. गाॅल ब्लाडर की सर्जरी क्लिनिक और छोटे अस्पताल में “35,000 से “45,000 में हो जाती है. इसी का कॉरपोरेट अस्पताल में एक लाख से 1.20 लाख तक खर्च चला जाता है. हर्निया का छोटे अस्पताल में ” 60,000 से “70,000 हजार लगता है. वहीं, कॉरपोरेट में “1.30 लाख तक लग जाता है. अपेंडिक्स का कॉरपोरेट अस्पताल में “75,000 से “80,000 तक लगता है.
बीमारी सामान्य अस्पताल में खर्च सुपरस्पेशियलिटी में खर्च
गॉल ब्लाडर सर्जरी 30,000-35,000 45,000 से 80,000
हार्निया 30,000-35,000 50,000-60,000
अपेंडिक्स 35,000 65,000-70,000
छोटे व बड़े अस्पताल में डॉक्टर को मिलता है आठ से 10%
सर्जरी करनेवाले डॉक्टरों का कहना है कि उनको अपने क्लिनिक में ज्यादा पैसे बचते हैं. अगर वे छोटे या बड़े अस्पताल में सर्जरी के लिए जाते हैं, तो उनको कुल खर्च का आठ से 10 फीसदी मिलता है. यानी अगर उनके क्लिनिक में 30,000 में सर्जरी होती है, तो 15,000 से 17,000 रुपये तक बच जाते हैं. वहीं, कॉरपोरेट अस्पताल में इलाज के लिए जाते हैं, तो उनको सात से आठ हजार रुपये बचते हैं.