सुप्रीम कोर्ट का आदेश : हमारी अनुमति के बिना जारी नहीं होगा सहायक आचार्य नियुक्ति परीक्षा का रिजल्ट
झारखंड प्रारंभिक सहायक आचार्य संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में सीटेट और पड़ोसी राज्य से टेट पास अभ्यर्थियों को शामिल करने के मामले में दायर एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई.
झारखंड प्रारंभिक सहायक आचार्य संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में सीटेट और पड़ोसी राज्य से टेट पास अभ्यर्थियों को शामिल करने के मामले में दायर एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई. जस्टिस जेके महेश्वरी व जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने आइए याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रार्थी का पक्ष सुनने के बाद कहा कि परीक्षा पर रोक नहीं रहेगी, लेकिन हमारी अनुमति के बिना परीक्षा का रिजल्ट जारी नहीं किया जायेगा. यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लंबित है, इसलिए मामले के लंबित रहने तक रिजल्ट प्रकाशित नहीं किया जाये. मामले की फाइनल सुनवाई जुलाई के पहले सप्ताह में रखी गयी. प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायण और झारखंड हाइकोर्ट के अधिवक्ता अमुतांश वत्स ने पैरवी की. उनकी ओर से बताया गया कि मामले के लंबित रहने के बावजूद प्रतिवादी झारखंड कर्मचारी चयन आयोग ने एक सप्ताह पहले परीक्षा का कार्यक्रम जारी कर दिया. हिंदी विषय की परीक्षा 27 अप्रैल से शुरू हो रही है. उस पर रोक लगाने का आग्रह किया गया. उल्लेखनीय है कि जेटेट पास अभ्यर्थी परिमल कुमार व अन्य 1600 प्रार्थियों की ओर से एसएलपी दायर की गयी है. उन्होंने झारखंड हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए निरस्त करने की मांग की है. पिछली सुनवाई में उन्होंने बताया था कि झारखंड हाइकोर्ट ने दिसंबर 2023 में पीआइएल में आदेश पारित किया था. सीटेट उत्तीर्ण व पड़ोसी राज्यों से टेट पास करनेवाले झारखंड के स्थानीय निवासी अभ्यर्थियों को 26001 सहायक आचार्य की नियुक्ति के लिए संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल करने का आदेश दिया था. इस तरह का नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार झारखंड हाइकोर्ट के पास नहीं है. यह गलत है. झारखंड की क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा संथाली, खोरठा, नागपुरी, हो, कुड़माली आदि का ज्ञान जेटेट अभ्यर्थियों के पास है, क्योंकि उन्होंने इसकी परीक्षा दी है, लेकिन सीटेट अभ्यर्थियों के पास क्षेत्रीय भाषा के रूप में हिंदी या अंग्रेजी विषय का ही ज्ञान है. जब सीटेट पास शिक्षकों की नियुक्ति राज्य के प्रारंभिक विद्यालयों में होगी, तो उन्हें स्थानीय भाषा में बच्चों को शिक्षा देने में परेशानी होगी. यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम का भी उल्लंघन होगा.
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