झारखंड हाइकोर्ट ने आजीवन कारावास के तहत 21 साल से अधिक सजा काटने पर रिहाई को लेकर सुरेंद्र सिंह राैतेला उर्फ सुरेंद्र बंगाली की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की अदालत ने प्रार्थी का पक्ष सुनने के बाद राज्य सरकार को जवाब दायर करने का निर्देश दिया. अदालत के उक्त निर्देश पर राज्य सरकार की ओर से जवाब (प्रति शपथ पत्र) दायर करने के लिए समय लिया गया.
मामले की अगली सुनवाई अब 13 फरवरी केा होगी. इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता लोकेश कुमार ने अदालत को बताया कि प्रार्थी को पहले फांसी की सजा हुई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था. उम्रकैद के तहत वह 21 साल से अधिक समय से जेल में है. उन्होंने सरकार की पॉलिसी के तहत रिहा करने का आग्रह किया.
पिछली सुनवाई के दाैरान राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर कर बताया गया था कि सुरेंद्र सिंह राैतेला के खिलाफ कई और मुकदमे हैं, जो लंबित है. इसे देखते हुए इन्हें रिहा नहीं किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी की ओर से याचिका दायर किया गया है.
इसमें कहा गया है कि वर्ष 1984 की बिहार सरकार की एक पॉलिसी है, जिसे झारखंड सरकार ने भी अंगीकृत किया है. उस पॉलिसी में कहा गया है कि आजीवन कारावास में जेल में 14 साल से अधिक समय बिताने के बाद सजायाफ्ता को रिहा करने पर कंसीडर किया जायेगा.
रांची सिविल कोर्ट ने लालपुर थाना कांड संख्या-31/1996 के तहत हत्या से जुड़े मामले में सुरेंद्र सिंह बंगाली को दोषी पाने के बाद फांसी की सजा सुनायी थी. वर्ष 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र बंगाली की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था.