मनोज सिंह, रांची :
भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने निजी अस्पतालों में इलाज के दौरान होनेवाले खर्च को लेकर एक सर्वेक्षण कराया है. इसमें पाया गया कि झारखंड के निजी अस्पतालों में इलाज पर होनेवाला खर्च संपन्न राज्यों के आसपास ही है. लेकिन, इलाज की गुणवत्ता कुछ राज्यों के साथ निचले पायदान पर है. मंत्रालय ने पूरे देश में कराये गये इस सर्वे का वैज्ञानिक अध्ययन कराया है. इसमें पाया है कि झारखंड के लोग अगर अस्पताल में भर्ती होकर इलाज कराते हैं, तो उसमें 14.3% खर्च डॉक्टरों की फीस का होता है. यह कई राज्यों की तुलना में काफी अधिक है. जांच पर होनेवाला खर्च भी कई राज्यों से अधिक है. सर्वे में पाया गया है कि झारखंड लोगों को निजी अस्पतालों में भर्ती होने पर करीब 8.3% राशि विभिन्न प्रकार की जांच पर खर्च करनी पड़ती है. वहीं, दवा पर खर्च करीब 17% है. मरीजों को शेष राशि पैकेज कंपोनेंट (ऑपरेशन थियेटर चार्ज, ओटी आइटम, ओटी मेडिसिन, बेड चार्ज, ऑपरेशन वाले चिकित्सक की फीस) पर खर्च करनी पड़ती है. देश की राजधानी में सबसे अधिक खर्च पैकेज कंपोनेंट पर होता है. वहां इस मद पर करीब 87% राशि खर्च करनी पड़ती है, जबकि चिकित्सकों की फीस पर 3.5%, जांच पर 2.3% और दवा पर 2.5% राशि ही खर्च करनी पड़ती है.
बिहार में भी डॉक्टर की फीस पर झारखंड से कम खर्च :
सर्वे में बताया गया है कि निजी अस्पतालों में इलाज के मामले में बिहार में भी डॉक्टरों की फीस पर खर्च झारखंड से कम है. झारखंड में चिकित्सकों की फीस पर 14.3% खर्च हो रहा है, तो बिहार में 10.4% खर्च होता है. बिहार में दवाओं पर होने वाला झारखंड से अधिक है. वहां करीब 21% खर्च दवाओं पर हो रहा है. दिल्ली के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी मरीजों को इलाज में चिकित्सक मद में कम खर्च करना पड़ता है.
इलाज की गुणवत्ता चिंताजनक :
सर्वे के दौरान क्वालिटी एडजस्टमेंट लाइफ (क्यूएएल) विधि का भी प्रयोग किया गया है. इसके माध्यम से जानने की कोशिश को गयी है कि इलाज के बाद भी लोग बीमारी से कितनी दूर रह पा रहे हैं. इसके लिए शून्य से एक तक का इंडिकेटर बनाया गया है. शून्य के नजदीक वाले इंडिकेटर को बीमारी के करीब तथा एक के नजदीक वाले इंडिकेटर को बीमारी के से दूर रहनेवाला बताया गया है. इस इंडिकेटर में झारखंड को 0.11 का इंडिकेटर दिया गया है. इसके अनुसार, झारखंड के लोगों का इलाज के बाद भी बिना बीमारी वाला जीवन अच्छा नहीं है. कई राज्यों का यह इंडिकेटर 0.50 से भी अधिक है.