रांची. असम की राजनीति में झारखंडी मूल के आदिवासी धुरी रहे हैं. दशकों पहले पलायन कर असम पहुंचने वाले झारखंडी आदिवासियों की अच्छी खासी संख्या हैं. असम में ये बड़े वोट बैंक रहे हैं. झारखंडी मूल के लोगों की तादाद असम में करीब 80 लाख से एक करोड़ के बीच है. इनके मुद्दे और मांग राजनीति के एजेंडे बनते रहे हैं. लोकसभा चुनावों के मद्देनजर असम के चाय बागानों में इन दिनों टी ट्राइब्स (झारखंडी मूल के आदिवासी) के बीच दो मुद्दों की खासी चर्चा है. इनमें एक है एसटी का दर्जा पाने का और दूसरा विकास में भागीदारी का. सौ साल से भी पहले छोटानागपुर के पठार और संतालपरगना आदि क्षेत्रों से लोगों को चाय बागानों में काम करने के लिए ले जाया गया था. ये करीब तीन चार पीढ़ियों से असम के विभिन्न क्षेत्रों में रह रहे हैं. वहां जो लोग गये उनका नाता झारखंड से बस स्मृतियों और लोकगीतों तक सीमित रहा. इनकी विडंबना यह है कि असम में इतने अरसे रह कर भी इनको वह हक और अधिकार नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था. सामाजिक और आर्थिक रूप से तो ये पिछड़े हैं ही पर बड़ी तादाद में होने के बाद भी इन्हें राजनीतिक रूप से वह स्थान नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था. असम में इन्हें टी ट्राइब कहा जाता है और वहां इन्हें एसटी नहीं, बल्कि ओबीसी का दर्जा मिला है. सौ साल पहले जो लोग चाय बागानों में काम करने गये थे, आज भी उनके वंशज चाय बागानों में मजदूरी या छोटे-मोटे काम कर रहे हैं. कुछ लोग पढ़ लिख जरूर गये कुछ राजनीति में भी पहुंचे पर हालात में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ. पृथ्वी मांझी उन गिने चुने लोगों में हैं, जो असम में सांसद के पद तक पहुंचे. असम विधानसभा में ये एक बार डिप्टी स्पीकर और एक बार स्पीकर भी रहे हैं. पृथ्वी मांझी की जड़े झारखंड के जमशेदपुर से जुड़ी हैं. इनके पूर्वज सौ साल पहले असम चले गये थे. इनका कहना है उन्होंने कहा यहां पर हमारी दो प्रमुख मांगें हैं एक तो एसटी का दर्जा और दूसरा विकास में भागीदारी. मैंने दो बार एसटी से संबंधित मांगों को अनुशंसा के साथ भेजा पर अभी तक हमें वह दर्जा नहीं मिला है. हम यह भी चाहते हैं कि चाय बागानों में काम करनेवाले लोगों को 351 रुपये दैनिक मजदूरी मिले, पर यह अभी भी दो सौ रुपये से कुछ ही ज्यादा है.
किस पार्टी के प्रति झुकाव रहा है टी ट्राइब का
अतीत में कांग्रेस टी ट्राइब को अपने पक्ष में रखने में कामयाब रही थी, पर अब उसका स्थान भाजपा ने ले लिया है. कांग्रेस के समर्थन में अभी भी अच्छी खासी संख्या में लोग हैं. असम गण परिषद के भी कई समर्थक हैं.असम के लोग टी-ट्राइब्स के एसटी दर्जा के खिलाफ
प्रभाकर तिर्की ने कहा कि असम में ज्यादातर झारखंडी या झारखंड मूल के लोगों को ओबीसी कैटेगरी में रखा गया है. अच्छी खासी जनसंख्या होने के बावजूद राजनीतिक चेतना और आपसी एकता के अभाव में ये अपनी मांगें नहीं मनवा पाते. ये चाय बागानों और छोटे मोटे काम ही करते हैं पार्टियों के बहकावे में ये आसानी से आ जाते हैं. असम की आबादी में इनका स्थान तीसरा है. असम के लोग और वहां के आदिवासी नहीं चाहते हैं कि इन्हें आदिवासी का दर्जा मिले. इसलिए वे भी हमेशा इनकी मांगों के विरोध में रहते हैं. इससे साफ है कि अपने हक और अधिकार को पाने में इन्हें लंबा संघर्ष करना होगा.
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