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May Day 2023: बच्चों को गांव में छोड़ शहरों को गति दे रहे ये वीर, 1 मई के बारे में नहीं जानते मजदूर

आज श्रमिकों का दिन है, जो रात-दिन मेहनत कर रहे हैं. बाल-बच्चों को दूर गांव-घर में छोड़कर ये श्रमिक शहरों के गति देने में लगे हैं. मजदूरों के खास दिन पर प्रभात खबर ने झारखंड के विभिन्न परियोजनाओं में कार्यरत कुछ मजदूरों से बातचीत की, जहां पता चला कि ये तो एक मई के बारे में जानते ही नहीं है.

May Day 2023 Special: आज मजदूर दिवस है. श्रमिकों का दिन, जो रात-दिन मेहनत कर रहे हैं. अपने बाल-बच्चों को दूर गांव-घर में छोड़कर रांची में विकास को गति देने में जुटे हैं. कड़ी धूप हो या कड़ाके की ठंड हर समय लक्ष्य को लेकर डटे रहते हैं. अलग-अलग प्रदेशों से झरखंड आकर अपने हुनर की बदौलत निर्माण में जुटे हैं. कोई विशाल फ्लाइओवर बना रहा है, तो कोई भव्य बिल्डिंग निर्माण में जुटा है. इन मेहनतकशों का अनुभव फ्लाइओवर निर्माण या बड़े भवनों के निर्माण में पुराना है. आज की रिपोर्ट इन्हीं मेहनतकशों के कार्यों, लगन व दक्षता और परेशानी पर आधारित है.

रांची को गति देने में लगे हैं कर्मवीर

राजधानी रांची में एलिवेटेड कॉरिडोर और फ्लाइओवर सहित महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के निर्माण में लगे कर्मवीर कहते हैं कि उन्हें फ्लाइओवर निर्माण या आधुनिक भवनों के ही काम में ज्यादा दक्षता हासिल है और यह काम ही उन्हें ज्यादा अच्छा लगता है. एक जगह पर रह कर दो-तीन वर्ष तक लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं. उनकी जिंदगी ही फ्लाइओवर से जुड़ गयी है. बच्चे गांव घर में ही पढ़ रहे हैं और ये लोग अपनी जिम्मेवारी दूर से ही निभा रहे हैं. हालांकि, समय मिलने पर बाल बच्चों को भी देख आते हैं. उनका कहना है कि काम में जितनी दक्षता आती जाएगी और अनुभव बढ़ता जाएगा, उन्हें आगे बढ़ने का उतना ही अधिक मौका मिलता है. इस कार्य में ऐसा नहीं है कि वह एक ही काम में जीवन भर रह जाएंगे, बल्कि उन्हें अभी कर रहे काम का नेतृत्व करने का भी मौका मिलता है.

सरिया बांधने में एक्सपर्ट हैं खगड़िया के मोहम्मद सहाल

मोहम्मद सहाल बिहार के खगड़िया जिले के रहने वाले हैं. 12 वर्षों से वह एलिवेटेड कॉरिडोर और फ्लाइओवर के निर्माण से जुड़े हुए हैं. अलग-अलग कंपनियों में सेवाएं दी हैं. अब रांची में एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण में लगे हैं. वह कहते हैं कि बड़ा सुकून मिलता है कि अपने झारखंड के रांची में उन्हें काम करने का मौका मिला है. सामान्य तौर पर दूरदराज अलग-अलग महानगरों में वह लोग जाकर काम कर रहे थे. वे कहते हैं कि शुरू से उन्होंने अलग-अलग आधारभूत संरचना के लिए सरिया बांधने का काम किया है. सरिया बांधना बड़ी तकनीक है. इसमें मेहनत के साथ तकनीक भी लगती है. उन्होंने बताया कि चूंकि हर बार उन लोगों के काम करने की जगह बदल जाती है, इसलिए बाल बच्चों को गांव में ही छोड़ रखा है. बच्चे गांव में ही पढ़ रहे हैं और हम लोग परदेस में रोजी-रोटी के जुगाड़ में लगे हुए हैं. कुल मिलाकर जीवन का पहिया आगे बढ़ता जा रहा है, जो बड़ा संतुष्टि देता है.

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ईमानदारी से काम करते रहे और आगे बढ़ते गये उमेश

फ्लाइओवर के निर्माण में क्रेन ऑपरेटर उमेश पासवान भी दिन-रात अपनी जिम्मेवारी बखूबी निभा रहे हैं. उमेश पलामू के रहनेवाले हैं. परिवार में माता-पिता के अलावा तीन भाई, तीन बहन, पत्नी व एक बेटी है. वह 12वीं पास है. सबसे पहले इन्होंने डाला सीमेंट प्लांट, सोनभद्र (यूपी) में बतौर हेल्पर काम शुरू किया. वहां एक वर्ष काम करने के बाद जामनगर में छह माह तक हेल्पर का काम किया. इसके बाद गुजरात में एक प्रोजेक्ट में एक वर्ष तक हेल्पर का काम करते रहे. फिर राजस्थान, गुजरात, चुनार (यूपी) में एक-एक वर्ष तक हेल्पर के रूप में कार्य सीखा. इसके बाद उमेश ने क्रेन ऑप्रेटर का लाइसेंस बनाया और पिछले पांच वर्षों से एलएंडटी कंपनी में काम कर रहे हैं. उमेश ने कहा कि कहीं भी प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद लंबे समय तक उसे छुट्टी नहीं मिलती है. दिन-रात काम चलता रहता है. रजुला (गुजरात) में काम के दौरान एक-दो बार मौत सामने से आकर चली गयी. वहां क्रेन पर कार्य के दौरान एक घटना घटी, जिसमें एक मजदूर की जान चली गयी. काम के दौरान बहुत खतरा रहता है, लेकिन काम का जज्बा कभी कम नहीं हुआ़ एक छोटी से गलती बड़ी दुर्घटना को अंजाम दे सकती है. उमेश पासवान कहते हैं कि क्रोलर क्रेन चलाते हैं जो शिफ्टिंग, लोडिंग और अनलोडिंग का काम करता है. इस दौरान थोड़ी से असावधानी बड़ी दुर्घटना में बदल सकती है. वे कहते हैं परिवार से भले दूर रहता हूं, लेकिन मोबाइल से रोजाना बातचीत होती है. घर के लोगों से बात कर मन को तसल्ली मिलती है.

सड़कों को बेहतर स्थिति में रखना है शंभु की जिम्मेवारी

पेवर ऑपरेटर शंभु कुमार शर्मा भी एलिवेटेड कॉरिडोर और फ्लाइओवर के निर्माण में जुटे हैं. एक तरफ एलिवेटेड कॉरिडोर बनता जा रहा है, दूसरी तरफ सड़क को भी बेहतर करते जाना है, ताकि वाहनों का आवागमन निर्बाध रूप से होता रहे. सड़कों को बेहतर स्थिति में रखने में भी शंभु लगे हुए हैं. वह बताते हैं कि मूल रूप से उनका घर पूर्णिया जिला है. अपने बाल बच्चों को वहीं छोड़ रखा है और अपनी सेवा अभी रांची में दे रहे हैं. वह बताते हैं कि कंपनी का काम जहां भी चलता है, वहीं जाकर काम में लग जाते हैं. जैसे-जैसे काम बढ़ रहा है और साल गुजर रहे हैं, उनकी दक्षता भी बढ़ती जा रही है. उन्हें इस काम का बड़ा अनुभव हो गया है़ इंजीनियर और अन्य टेक्निकल मैन एक बार समझा देते हैं, तो सारा काम खुद ब खुद अपनी टीम की मदद से कर लेते हैं.

नसीम संभाल रहे सुरक्षा की कमान

फ्लाइओवर या एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण में सुरक्षा का खास ध्यान दिया जाता है. अगर सुरक्षा में जरा सी भी चूक हो तो बड़ी घटना हो सकती है. यहां पर सुरक्षा का काम देख रहे नसीम अनवर बताते हैं कि वह लोग पूरी टीम के साथ केवल सुरक्षात्मक कदम उठाने के लिए तैनात रहते हैं. जगह- जगह पर बैरिकेडिंग हो, इसका खास ख्याल रखा जाता है. काम के दौरान किसी की भी इंट्री आसपास से ना हो, आम आदमी न गुजरे और काम कर रहे मजदूर भी सुरक्षा घेरे में रहें, इसके लिए दिन-रात लगे हुए हैं. वह बताते हैं कि वह मूल रूप से झारखंड के धनबाद जिले के ही रहनेवाले हैं. ऐसे में उन्हें यहां काम करने में बहुत आनंद आ रहा है. अपने झारखंड में इतनी बड़ी परियोजना को धरातल पर उतारने में उनकी भी थोड़ी सी भूमिका है. इसे लेकर उत्साहित हैं. रात दिन मेहनत से काम कर रहे हैं.

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15 वर्षों से काम में लगे हैं असम के शंभु नाथ

असम के रहनेवाले शंभु नाथ मजूमदार करीब 15 वर्षों से लगातार फ्लाइओवर के निर्माण कार्य से जुड़े हुए हैं. अलग-अलग कंपनियों से होकर वह अब रांची में एलिवेटेड कॉरिडोर के काम में लगे हैं. लंबे समय तक काम करने के कारण उन्हें कार्य का बड़ा अनुभव हो गया है. वह बताते हैं कि पाइलिंग के काम से लेकर पियर तैयार करना और इसके बाद अंतिम काम तक का उन्हें अनुभव हो गया है. सारे कार्यों को वह नजदीक से देख रहे हैं. सब कुछ ठीक-ठाक हो, कहीं भी डिजाइन के प्रतिकूल कुछ ना हो, वह इस पर नजर रखते हैं. यहां लगे हर मेहनतकश के साथ वह योजना के क्रियान्वयन में दिन- रात लगे हुए हैं. वह बताते हैं कि जहां भी उन्हें जाना पड़ता है, वह अपने बाल बच्चों को साथ लेकर जाते हैं. दो -ढाई साल के लिए रांची आने का मौका मिला, तो यहां बच्चों को लाकर दाखिला करा दिया है. अब कहीं और जाना होगा तो बच्चों को वहां दाखिला करा देंगे, लेकिन बाल बच्चों को साथ लेकर ही अपनी जिम्मेवारी निभा रहे हैं.

जीवन-यापन के लिए मजदूरी कर रहे हैं बेड़ो निवासी शंकर

सिरम टोली-मेकन फ्लाइओवर के निर्माण कार्य में मजदूरी का काम करने वाले बेड़ो निवासी शंकर धान कहते हैं कि बचपन में ही माता-पिता का साया सिर से उठ गया था. इसलिए मात्र 10वीं तक पढ़ाई की. जमीन अधिक नहीं होने के कारण मजदूरी करने की विवशता आन पड़ी. पिछले 10 वर्षों से विभिन्न राज्यों में बिल्डिंग व फ्लाईओवर निर्माण कार्य में कार्य कर रहे हैं. घर में पत्नी व दो बच्चे हैं. दूसरे राज्य में रहने पर छह माह में एक बार घर जाना होता है. कई बार कार्य के दौरान बड़ी दुघर्टना भी हो जाती है. बावजूद पूरी सावधानी के साथ काम करते हैं.

हाइड्रा ऑपरेटर वीरेंद्र का काम जोखिम भरा

मूल रूप से पलामू जिले के रहने वाले वीरेंद्र मेहता हाइड्रा ऑपरेटर हैं. उन्होंने आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में अपनी सेवाएं दी हैं. अब वह आंध्रप्रदेश के बाद रांची में एलिवेटेड कॉरिडोर के निर्माण में लगे हुए हैं. उनका मूल कार्य बड़ी-बड़ी लोहे की सामग्रियों और बनी हुई संरचनाओं को लिफ्ट करके ऊपर चढ़ाना है. यह काम काफी जोखिम भरा होता है. वीरेंद्र करते हैं कि इस काम में एक चूक भी बहुत बड़ी होती है. ऐसे में उन्हें पूरी तरह से चौकस होकर यह काम करना पड़ता है. वर्षों से यह काम करके उन्हें इसका लंबा अनुभव हो गया है, इसलिए अच्छी तरह से काम कर पा रहे हैं. उन्होंने बताया कि बाल बच्चों को घर पर ही छोड़ा है. वहीं बच्चे स्कूल जाते हैं. कहते हैं कि हमारा काम ऐसा है कि हर बार हमें बड़े शहरों में ही ऐसी योजनाओं के लिए जाना पड़ता है. वह बताते हैं कि स्कूल की छुट्टी के समय वे लोग काम बंद कर देते हैं. क्योंकि उस समय सुरक्षा का खास ख्याल रखना पड़ता है.

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हाइकोर्ट की बिल्डिंग बनाने में जुटे हैं 2000 मजदूर

धुर्वा में झारखंड हाइकोर्ट की भव्य बिल्डिंग लगभग बनकर तैयार है. करीब 2000 मजदूर हर दिन काम में जुटे हैं. सुबह 8 बजे से लेकर रात 12 बजे तक काम हो रहा है. झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के मजदूर शिफ्ट में काम कर रहे हैं. सैकड़ों मजदूर परिसर में अस्थायी टेंट में ही रहकर अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं. बिहार के बेगुसराय जिले के 45 से अधिक पत्थर टाइल्स मजदूर काम कर रहे हैं. मुंशी मुद्दसर की देखरेख में पत्थर टाइल्स, मार्बल लगा रहे हैं. मो शहजाद, नीतीश कुमार, मो. जाहिद का कहना है कि सभी घर छोड़कर काम के सिलसिले में रांची आये थे. फिनिशिंग कार्य करने का मौका मिला. पिछले कई माह से वे लोग पत्थर तरासते हुए दिये गये डिजाइन में लगा रहे हैं. मार्बल, टाइल्स लगाने का कार्य वह सुबह 9 बजे लेकर रात तीन बजे तक करते हुए हैं. यहां कोई परेशानी नहीं है, जो पैसा मजदूरी से कमाते हैं, उससे घर चल रहा है.

एक मई के बारे में नहीं जानते हैं कई मजदूर, ये है इतिहास

झारखंड के विभिन्न परियोजनाओं के लिए काम कर रहे मजदूरों से जब बात की गई तो पता चला कि ये एक मई के बारे में जानते ही नहीं है. मालूम हो कि 1 मई यानी मजदूर दिवस. आज ही के दिन 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में मजदूरों ने एकजुटता का प्रदर्शन किया था. मांग थी कि मजदूरी का समय आठ घंटे निर्धारित हो. सप्ताह में एक दिन अवकाश मिले. क्योंकि इससे पहले मजदूरों के लिए कोई समय-सीमा नहीं थी. इसी का परिणाम था कि शिकागो का प्रदर्शन काफी उग्र हो गया. आंदोलन में चार मजदूरों की जान चली गयी. दर्जनों घायल हो गये, लेकिन आंदोलन नहीं थमा. यही कारण है कि 1889 में जब पेरिस में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस हुई, तो एक मई को मजदूर दिवस मनाने का निर्णय लिया गया. वहीं भारत में 01 मई 1923 को लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान ने मद्रास (चेन्नई) में इसकी शुरुआत की. पहली बार लाल रंग का झंडा मजदूरों की एकजुटता और संघर्ष के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया.

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