प्रशांत पंडिता की पुस्तक दो कश्मीरी दोस्तों की कहानी कहती है
पेशे से इंजीनियर प्रशांत पंडिता की पहली किताब द जेहलम बॉयज को लेकर शहाना चटर्जी ने उनसे बात की. लेखक ने बताया कि मैं मूल रूप से कश्मीर का रहने वाला हूं और मेरी जो पहली किताब है, वह उसी कश्मीर के दो दोस्तों की कहानी है. इसके पहले पार्ट में मेरा लाइफ एक्सपीरिंयस है, जिसे मैंने शब्द देने का काम किया है. सेकेंड पार्ट में फिक्शन है. इसका कैरेक्टर निशांत, वह कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व करता है. कश्मीर घाटी के दो लड़के, मुदस्सिर, एक अमीर कश्मीरी मुस्लिम परिवार से और निशांत, एक संपन्न कश्मीरी पंडित परिवार से है.
डोरंडा की पहली बर्ड वूमन हैं जमाल आरा
डोरंडा की जमाल आरा का नाम शायद पहले किसी ने नहीं सुना होगा. यह बात शनिवार को संरक्षणवादी, वन्य जीव इतिहासकार और कहानीकार रजा काजमी के साथ बातचीत में बिक्रम ग्रेवाल ने कही. द बर्ड वुमन ऑफ डोरंडा पर बात करते हुए रजा काजमी ने बताया कि 1970 में एक बुक बर्ड वाचर प्रकाशित हुई थी, जिसकी लेखिका जमाल आरा थीं. भारत की पहली महिला थीं, जो चिड़ियों पर काम करती थीं. वहीं, विक्रम ग्रेवाल ने कहा कि झारखंड में जंगल तो हैं, लेकिन वो डेड हैं. इस पर रजा काजमी ने कहा कि यहां जानवर पर बात नहीं होती है.
Also Read: Tata Steel Jharkhand Literary Meet : ममता कालिया ने कहा, लोगों को फेसबुक से बुक की ओर ले जा रहा साहित्य उत्सवडॉ मयंक मुरारी की भारतीय संस्कृति पर दो किताबें प्रकाशित
भारतीय संस्कृति पर आधारित दो किताबें प्रकाशित हुईं हैं. प्रभात प्रकाशन से जंबूद्वीपे-भरतखंडे और वाणी प्रकाशन से भगवा ध्वजा का प्रकाशन हुआ है. इन दोनों किताबों के लेखक राजधानी के चिंतक और लेखक डाॅ मयंक मुरारी हैं. हिंदू जीवन में रोजाना स्मरण किये जानेवाले संकल्प मंत्र में देश और काल से संबंधित दर्शन की व्याख्या जंबूद्वीपे-भरतखंडे पुस्तक में की गयी है. वहीं, भगवा ध्वज में भारतीय इतिहास के विभिन्न कालखंड और राजवंश में अपनाये गये ध्वज की कथाओं को समेटा गया है. डाॅ मयंक मुरारी के संपूर्ण लेखन का उद्देश्य भारतीय जीवन और संस्कृति की ज्ञानात्मक समृद्धि से परिचय कराना, इतिहास, परंपरा और विरासत का वैज्ञानिक विश्लेषण करना तथा लोक जीवन में निहित नैतिक और जीवन मूल्यों को प्रस्तुत करना है. उनकी अब तक 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.
भावनात्मक लेखन के लिए महसूस करनी होगी भावना
झारखंड लिटरेरी मीट के दौरान मालविका बनर्जी ने कथाकार जैरी पिंटो के साथ उनके उपन्यास संग्रह पर विमर्श किया. मालविका ने जैरी पिंटो के उपन्यास ‘द एजुकेशन ऑफ यूरी’ की कहानी पर चर्चा की. जैरी ने बताया कि लोग आज भी यंग एडल्ट स्टोरी पढ़ना पसंद करते हैं. इसकी मांग आज भी साहित्य बाजार में बनी हुई है. यूरी एक ऐसा चरित्र है, जिसने कभी दोस्त नहीं बनाये. पर उम्र के साथ 15 वर्ष की आयु में पहली बार महिला मित्र बनी और कहानी उसके रोमांटिक सफर की है. जैरी ने कहा कि कहानी लिखते समय पात्र की भावना को महसूस करना होगा. यह तभी संभव है, जब लेखक या कोई भी व्यक्ति पात्र के भावनात्मक पक्ष से जुड़ेंगे.
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शाम 04:50 बजे साहित्यकार महादेव टोप्पो ने युवा कवयित्री डॉ पार्वती तिर्की के कविता संग्रह ‘फिर उगना’ में समाहित कविताओं पर परिचर्चा की. डॉ पार्वती तिर्की ने बताया कि आदिवासी समाज केवल जंगल और पहाड़ तक सीमित नहीं है. फिर उगना शीर्षक कुड़ुख भाषा के ‘ख़ोरेन’ शब्द को चरितार्थ करता है. इसमें आदिवासी समाज की गतिशीलता, जीवन दर्शन और जन्म से मृत्यु तक के गीत समाहित हैं. कुड़ुख भाषा में ‘ख’ अक्षर से कई बहुमूल्य शब्द बनाये गये हैं, जो ग्रामीणों के जनजीवन को बयां करते हैं. कविता लेखन में सांस्कृतिक परिदृश्य और सामाजिक जीवन के अलावा भी विषय है. इन्हें व्याकरण की समझ और विषय के प्रति जिज्ञासा होने पर ही लिखा जा सकता है.
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लिटरेरी मीट के दूसरे दिन का समापन झारखंड के युवा फिल्मकार निरंजन कुजूर और सिराल मुर्मू के साथ परिचर्चा सत्र से हुआ. सत्र की शुरुआत शहाना चटर्जी ने फिल्मकारों के जीवन यात्रा से की. निरंजन ने बताया कि परिवार उन्हें डॉक्टर के रूप में स्थापित होते देखना चाहते थे. पर 12वीं के बाद उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई को चुना. कोर्स में ढलने के बाद फिल्मों से परिचय हुआ. प्रसिद्ध फिल्मकारों की फिल्म ने उन्हें स्थानीय जीवन को बड़े पर्दे पर दर्शाने की सीख दी. वहीं, सिराल ने कहा कि फिल्म बनाने से पहले खुद की जिज्ञासा को शांत करने की जरूरत है. इस क्रम में नये विषयों से परिचय होगा, जो बेहतर फिल्म बनाने की प्रेरणा देंगे.