Loading election data...

ताली बजाकर बधाई मांगने वाली किन्नरों को झारखंड की कोयला खदान में कैसे मिली नौकरी, ये राह थी कितनी आसान

Jharkhand News: झारखंड के इतिहास में पहली बार टाटा स्टील ने 14 किन्नरों को एक साथ कोयला खदानों में ऑपरेटर के रूप में नियुक्त कर किन्नर समुदाय में नयी उम्मीद जगा दी है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 1, 2022 6:37 AM

Jharkhand News: ट्रेन में ताली बजाकर, शादी में नृत्य कर या खुशी के मौके पर बधाई मांगने के बजाय स्वरोजगार कर सम्मान की जिंदगी जीना चाहती हूं, लेकिन बैंक से लोन नहीं मिलता. लाचार होकर पापी पेट के लिए फिर अपने पेशे में लौट जाती हूं. आम इंसान की तरह उन्हें भी प्रधानमंत्री आवास, राशन व चिकित्सा की सुविधा मयस्सर होती, तो उनकी जिंदगी हसीन हो जाती. थर्ड जेंडर का दर्जा मिलने के बाद भी उनका संघर्ष कम नहीं हुआ है. ये दर्द से सने बोल झारखंड के किन्नर समुदाय के हैं. इस बीच झारखंड के इतिहास में पहली बार टाटा स्टील (Tata Steel jobs) ने 14 किन्नरों को एक साथ कोयला खदानों में ऑपरेटर के रूप में नियुक्त कर किन्नर समुदाय में नयी उम्मीद जगा दी है.

ट्रेन हो, सार्वजनिक स्थल हो या फिर मांगलिक अवसर. ताली बजाकर बख्शीश मांगते आपने किन्नरों को जरूर देखा होगा, लेकिन शायद ही आपने कभी उनका दर्द महसूस किया होगा. अमूमन हेय दृष्टि से देखी जानीवाली किन्नरों (ट्रांसजेंडर) के जीवन संघर्ष और बेइंतहा दर्द पर आप सहसा यकीन नहीं कर पायेंगे. किन्नरों को नौकरी. ये सुनकर आप आश्चर्य करेंगे, लेकिन किन्नरों के इस सपने को झारखंड में सच कर दिखाया टाटा स्टील ने.

Also Read: डायन का डंक: झारखंड से ऐसे जड़ से खत्म होगी डायन कुप्रथा, ‘गरिमा’ से धीरे-धीरे धुल रहा ये सामाजिक कलंक
टाटा स्टील के कोर माइनिंग ऑपरेशन में नौकरी

वर्षों की मशक्कत के बाद आम आदमी की तरह किन्नरों को थर्ड जेंडर के रूप में वोट देने का अधिकार तो मिल गया, लेकिन देश की आजादी के सात दशक बाद भी सरकारी सुविधाओं से महरूम किन्नरों को आज भी अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. जेंडर बजट के इस दौर में भी थर्ड जेंडर (किन्नर) की सुध लेने वाला कोई नहीं है. आम आदमी की भीड़ में भी ये अकेली हैं. विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी अलग दुनिया में रहने को मजबूर हैं. सरकारी सुविधाओं से कोसों दूर हैं. इस बीच सुकूनभरी खबर ये है कि टाटा कंपनी ने ट्रांसजेंडरों को कोर माइनिंग ऑपरेशन में नियुक्त किया है.

हेवी अर्थ मूविंग मशीनरी (एचईएमएम) ऑपरेटर की ट्रेनिंग

टाटा स्टील ने झारखंड के रामगढ़ जिले के वेस्ट बोकारो डिवीजन में 14 किन्नरों (ट्रांसजेंडर) को नौकरी दी है. हेवी अर्थ मूविंग मशीनरी (एचईएमएम) ऑपरेटर के रूप में ये फिलहाल प्रशिक्षण ले रही हैं. वेस्ट बोकारो में टाटा की कोयला खदान है, जहां ये ट्रेनिंग ले रही हैं. करीब एक साल तक इन्हें प्रशिक्षण दिया जायेगा. ट्रेनिंग के दौरान इन्हें 20 हजार रुपये प्रतिमाह स्टाइपेंड दिया जाना है.

Also Read: New Year 2022: झारखंड के कश्मीर नेतरहाट की वादियों में मनाएं नये साल का जश्न, इसके बिना अधूरी है यात्रा
कोयला खदान में 14 को एक साथ नौकरी

टाटा स्टील की कोयला खदानों में जिन 14 किन्नरों को नौकरी दी गयी है, उनमें से अधिकतर झारखंड की राजधानी रांची, जमशेदपुर और अन्य शहरों से हैं. जमशेदपुर से अमरजीत सिंह व आनंदी सिंह, चाईबासा के फ्रांसेस सुंडी व अमित एवं रांची से निशु व आशीष समेत अन्य शामिल हैं.

ऐसे मिली टाटा स्टील में नौकरी

किन्नर अमरजीत सिंह बताते हैं कि टाटा स्टील कंपनी के एचआर सुधीर सिंह शहर के ट्रैफिक सिग्नल से गुजर रहे थे. उसी दौरान उन्होंने सिग्नल पर पैसे मांगते कुछ किन्नरों को देखा. तभी उनके मन में किन्नर समुदाय के लिए कुछ करने का ख्याल आया. उत्थान जेएसआर संस्था का प्रमुख होने के नाते उन्होंने संपर्क किया और किन्नर समुदाय की समस्याओं के बारे में जानने का प्रयास किया. इसके बाद नौकरी से संबंधित विभिन्न तरह की कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद टाटा स्टील की ओर से इन्हें नियुक्ति पत्र दिया गया.

Also Read: खरसावां गोलीकांड: पूर्व सीएम रघुवर दास की तरह क्या सीएम हेमंत सोरेन शहीदों के आश्रितों को करेंगे सम्मानित
उपेक्षा का दर्द

अमरजीत कहते हैं कि झारखंड में किन्नरों की आबादी कम नहीं है, लेकिन सरकार की प्राथमिकता में वे नहीं हैं. उनकी समस्याओं के समाधान को लेकर ना तो राज्य सरकार कुछ सोचती है और ना ही बड़ी कंपनियां, लेकिन टाटा स्टील ने किन्नर समुदाय की सुध लेकर हमारा मान बढ़ा दिया है.

नहीं हुआ वेलफेयर बोर्ड का गठन

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में ट्रांसजेंडरों के कल्याण के लिए वेलफेयर बोर्ड का गठन जरूरी है. ओडिशा की तरह झारखंड में भी वेलफेयर बोर्ड का गठन होना चाहिए, लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है. किन्नरों के लिए अलग बजट हो, ताकि सरकारी योजनाओं का इन्हें लाभ मिल सके.

थर्ड जेंडर का मिला है दर्जा

सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2014 में लिंग के तीसरे वर्ग के रूप में ट्रांसजेंडर को मान्यता दी है. इन्हें दर्जा देने वाला भारत दुनिया का पहला देश है. ट्रांसजेंडरों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए केंद्र एवं राज्यों को निर्देश देते हुए कहा है कि सामाजिक रूप से पिछड़े इस समुदाय को आरक्षण मिले. विशेष दर्जा दिया जाये और बच्चे गोद लेने का अधिकार भी मिले.

Also Read: New Year 2022: झारखंड में नये साल का जश्न मनाने के लिए ये हैं बेस्ट टूरिस्ट स्पॉट्स
8 हजार से अधिक हैं किन्नर

झारखंड में किन्नरों की संख्या आठ हजार से अधिक है, लेकिन मतदाता सूची में अधिकतर का नाम दर्ज नहीं हो सका है. झारखंड की सियासत में इनकी बिरादरी का जनप्रतिनिधि नहीं होने के कारण भी ये उपेक्षित हैं, जबकि देश के दूसरे हिस्से में आम लोग इन्हें वोट देकर विजयी बनाते रहे हैं.

सियासत में भी दखल

1998 में मध्यप्रदेश के शहडोल जिले की सोहागपुर विधानसभा सीट से शबनम मौसी विधायक बनीं.

2004 में चित्तौड़गढ़ में ममता बाई निर्दलीय पार्षद बनीं. इनके काम से लोग खुश हुए. 2009 में वह बेगूं की नगरपालिका चेयरमैन बन गयीं. 2013 में एनपीपी के टिकट पर विधायक का चुनाव भी लड़ीं.

2015 में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में मधु किन्नर महापौर बनीं. 2003 में जेजेपी अर्थात जीती जिताई पार्टी नाम से किन्नरों का राजनीतिक दल बना.

2005 में शबनम मौसी के नाम से बॉलीवुड में फिल्म भी बनी थी.

2012 में चुनाव आयोग ने किया था ट्रांसजेंडर या अन्य वोटर्स के लिए अलग कॉलम का प्रावधान.

महज 200 से अधिक हैं वोटर

निर्वाचन आयोग द्वारा एक जनवरी 2019 को जारी अंतिम सूची के अनुसार ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या 307 थी. मतदाता पुनरीक्षण में कई किन्नरों के नाम हट गये और इनकी संख्या घट कर 212 रह गयी. झारखंड में सबसे अधिक 53 ट्रांसजेंडर (किन्नर) वोटर पूर्वी सिंहभूम जिले में हैं, जो कुल ट्रांसजेंडर मतदाता का 25 फीसदी है. रांची में 43, साहिबगंज में 06, दुमका में 04, गोड्डा में 06, कोडरमा में 03, हजारीबाग में 10, रामगढ़ में 01, चतरा में 01, गिरिडीह में 13, बोकारो में 23, धनबाद में 19, सरायकेला-खरसावां में 08, पश्चिमी सिंहभूम में 06, खूंटी में 01, गुमला में 06, लोहरदगा में 05 और लातेहार में 04 ट्रांसजेंडर मतदाता हैं. पाकुड़, जामताड़ा, देवघर, सिमडेगा, पलामू और गढ़वा समेत छह जिलों में एक भी ट्रांसजेंडर मतदाता नहीं है. कागजात के अभाव में इन्हें वोटर आईडी कार्ड बनाने में काफी परेशानी होती है.

रिपोर्टः गुरुस्वरूप मिश्रा

Next Article

Exit mobile version