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टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट का समापन, कई बड़ी हस्तियों ने की शिरकत, जानें किसने क्या कहा

आड्रे हाउस में चल रहे टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट का समापन रविवार को हुआ. भाषा वही परिभाषा नयी थीम पर सजे इस साहित्य मेला के गवाह प्रसिद्ध लेखक जावेद अख्तर, गीतांजलि श्री, अिभनेता रजत कपूर और विनय पाठक बने

टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट में रविवार को बुकर इंटरनेशनल अवार्ड से सम्मानित लेखिका गीतांजलि श्री पहुंचीं. उन्होंने पूनम सक्सेना के साथ अपने बहुचर्चित उपन्यास ”रेत समाधि” पर चर्चा की. बताया कि रेत समाधि उत्तर भारत के संयुक्त परिवार के बीच की कहानी है, जहां महिलाएं मुख्य किरदार में हैं. उन्होंने कहा कि महिलाओं का जीवन सामाजिक, कर्तव्य निभाने, शारीरिक बदलाव को अपनाने और सुशील बने रहने की दिशा में गुजर जाता है.

जिस उम्र में महिलाएं इन सोच से मुक्त होकर आंतरिक रूप से स्वतंत्र होती हैं, उस वक्त शरीर साथ देना छोड़ देता है. लेखक की कृति भी इसी तरह है, वे पाठक तक अपनी संवेदना और संभावनाएं लिए पहुंचती है. चेतन मन को जगाती है और विश्वास के साथ अपनी रचना के सफल होने का इंतजार करती है, ताकि प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सकें. गीतांजलि श्री ने कहा कि लेखनी के लिए मातृभाषा का चयन आसान है.

वर्तमान में लोग अंग्रेजी के लिए लोग हिंदी को कमतर समझने लगते हैं, जबकि हिंदी आत्मीय भाषा है. उपन्यास लिखने के लिए कहानी, भाषा और पात्र की जरूरत है. इसे तभी पूरा कर सकेंगे जब भाषा को जीने का माध्यम और अभिव्यक्ति के आदान-प्रदान का साधन बनायेंगे. युवा पीढ़ी इस दिशा में सोचकर अपने लक्ष्य को पूरा कर सकती है.

क्या फीचर फिल्म को ओटीटी मार डालेगा या उबारेगा?

अभिनेता विनय पाठक और रजत कपूर दर्शकों से रूबरू हुए. आरजे अरविंद ने दोनों शख्सियत से ”क्या फीचर फिल्म को ओटीटी मार डालेगा या उबारेगा ? विषय पर चर्चा की. रजत कपूर ने कहा कि युवा पीढ़ी अब कंटेंट को समझने लगी है. यह पीढ़ी लंबी फिल्म तभी पसंद करेगी जब उन्हें बेहतर कंटेंट मिले. ओटीटी (ओवर द टॉप प्लेटफाॅर्म) इस जरूरत को पूरा कर रहा है.

इसलिए आठ घंटे की सीरीज को भी युवा चाव से देख रहे हैं. रजत कपूर ने कहा : ओटीटी के कारण पर्दे के सामने और पीछे काम करनेवालों को रोजगार मिल रहा है. साथ ही गुमनामी में जी रहे कलाकारों को पहचान मिलने लगी है. वहीं, विनय पाठक ने कहा कि नयी पीढ़ी को समझने वाली समझदारी विकसित करने की जरूरत है. युवा क्या पसंद कर रहे हैं,

उनके मुताबिक चीजें पेश करनी होगी. फिल्म या सीरीज के लिए कहानी की मांग बढ़ी है. इससे नये लेखक सामने आ रहे हैं. अब फिल्मों के जरिये वर्ल्ड लिटरेचर के सामने उदाहरण पेश करने की संभावना है. उन्होंने कहा कि ओटीटी ने लोगों को पॉज एंड प्ले का विकल्प दे दिया है. रांची के थिएटर पर कहा कि स्मार्ट सिटी बन जाने के बावजूद चीजें नहीं बदली है. शहर में थिएटर का माहौल आज भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो सका है.

अपनी पहचान बनाने के दर्द की कहानी बयां करता है कुलभूषण

लेखिका अलका सरावगी के साथ यतीश कुमार ने कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए उपन्यास पर बात की. अलका सरावगी ने बताया कि यह उपन्यास विभाजन और बांग्लादेश के बनने के बाद पश्चिम बंगाल में लोगों के पलायन और विस्थापन पर आधारित है. इसमें कुलभूषण नाम का व्यक्ति अपने परिवार के साथ भारत आता है, जिसके बाद उसके अपने नाम के संघर्ष की कहानी शुरू होती है.

बाद में उसे एक बंगाली औरत से शादी करनी पड़ती है और उसे अपना नाम भी बदलना पड़ता है. इसकी कहानी में एक और पात्र है श्यामा धोबी. जिसकी हालत कुलभूषण से मिलती-जुलती है, लेकिन वह हमेशा खुशमिजाज रहने वाला आदमी है. वह कुलभूषण को बताता है कि हमारे अंदर एक भूलने वाला बटन है. तुम्हें बस वह बटन दबाना है जिसके बाद तुम सबकुछ भूल जाओगे. इसी तरह कहानी बढ़ती है.

नेतृत्व का गुण शांत स्वभाव से ही विकसित हो सकता है

लिटरेरी मीट में महेंद्र सिंह धौनी पर आयी पुस्तक ‘डू डिफरेंट : द अनटोल्ड धौनी’ के लेखक अमित सिन्हा शामिल हुए. बालाजी विठ्ठल ने अमित सिन्हा, खेल पत्रकार शारदा उगरा और जीत बनर्जी के साथ धौनी के अनछुए पहलुओं पर चर्चा की. शारदा उगरा ने कहा कि भारत में क्रिकेट को एक नयी दिशा देने के लिए धौनी को हमेशा याद किया जायेगा. उनके प्रदर्शन और लगातार सफल खिलाड़ी बने रहने के लक्ष्य से युवाओं को प्रेरणा मिलेगी.

हालांकि लोग धौनी के मिलनसार न होने से नाराज रहते हैं. इसपर जीत बनर्जी ने कहा कि धौनी ने खुद को श्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित किया है. यह गुण चंचल स्वभाव से नहीं बल्कि शांत रहकर ही विकसित की जा सकती है. जिस दौर में धौनी का नाम बन रहा था उस समय बिहार से कोई भी खिलाड़ी नहीं निकलता था. उनका कप्तान बनना इस क्षेत्र के लिए बड़ी उपलब्धि रही. झारखंड के खिलाड़ियों पर भी ध्यान दिया जाने लगा है. धौनी की रांची जैसा नाम किसी शहर का नहीं हुआ है.

अज्ञेय ने साहित्य और जीवन दोनों में ही परंपराओं को तोड़ा

अपनी लेखनी से अज्ञेय के जीवन के अनगिनत पहलुओं को उभारने वाले लेखक अक्षय मुकुल के साथ पूनम सक्सेना ने साहित्यिक विमर्श किया. मुकुल ने कहा : अज्ञेय आज भी सामान्य पाठकों के लिए अज्ञेय ही हैं. साल 1911 से 1987 के दौरान अज्ञेय ने एक ही जीवन में एक लेखक, विद्रोही, सैनिक, प्रेमी और लेखन में पहले दर्जे के जीवनीकार की भूमिका के साथ बहुआयामी जीवन जिया है.

मुकुल कहते हैं : जैनेंद्र और कृष्ण चंदर जैसे लेखकों के बीच अपने प्रशंसकों से प्यार और प्रशंसा हासिल किया. वहीं लिखावट में तीखी आलोचना का भी सामना करना पड़ा. शेखर : एक जीवनी और नदी के द्वीप से अपने उपन्यासों में महिला पात्रों की पहचान के बारे में हिंदी जगत में अटकलों को भी जन्म दिया. नयी कहानी के वह एक ऐसे हस्ताक्षर थे, जिसने साहित्य और जीवन दोनों में ही परंपराओं को तोड़ा.

निरंजन कुजूर ने कहा, हिंदी सिनेमा ने sआदिवासियों को गरीब व मजदूर दिखाया है

आदिवासी व क्षेत्रीय फिल्में : नयी आवाज व सौंदर्यबोध विषय पर अनुज लुगुन ने युवा फिल्कार निरंजन कुजूर, पुरुषोत्तम कुमार और अभिनेता अनुराग लुगुन से चर्चा की. निरंजन ने कहा कि हिंदी सिनेमा के बड़े पर्दे पर आदिवासियों को गरीब और मजदूर के रूप में पेश किया गया है. यहीं कारण है कि क्षेत्रीय विषयों पर बनने वाली फिल्मों के लिए दर्शक नहीं जुटते. पुरुषोत्तम कुमार ने कहा : क्षेत्रीय फिल्में समाज की जरूरत और उनके मुद्दे पर आधारित होती हैं.

इसमें दर्शकों को बांधे रखना चुनौती है. वहीं, अनुराग लुगुन ने कहा कि क्षेत्रीय फिल्म के अभिनेता प्रशिक्षित नहीं हैं. निरंजन ने कहा कि क्षेत्रीय फिल्में बड़े फिल्म महोत्सव में जगह बना रही हैं. भाषा की बाधा खत्म हुई है.

भारतीय एक भाषा से बात शुरू करते हैं और तीसरी पर खत्म करते हैं, ऐसा कहीं नहीं होता

दिल्ली में रहनेवाले लेखक और शिक्षक जोनाथन गिल हैरिस ने कहा कि कई यूरोपियन भारत आये. कई ने यहां की संस्कृति में खुद को समाहित कर लिया. कई ऐसे फिरंगी भी आये, जिन्होंने अपना धर्म भी बदल लिया. मैं भी अपने को भारतीय बनाने का प्रयास कर रहा हूं, जो आसान नहीं है.

उन्होंने कहा कि यहां की भाषा का इस्तेमाल एक भारतीय की तरह करना आसान नहीं है. भारतीय भाषा बहुत समृद्ध है. यहां के लोग एक भाषा से बात शुरू करते हैं, दूसरी भाषा होते हुए तीसरी भाषा में अपनी बात समाप्त करते हैं. इसमें हिंदी, अंग्रेजी और स्थानीय भाषाएं शामिल हैं. ऐसा विश्व में कहीं नहीं होता. जोनाथन हैरिस रविवार को मालविका बनर्जी के साथ यूरोप से भारत आये मुसाफिरों पर चर्चा कर रहे थे.

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