Loading election data...

पोषण युक्त भोजन मिले तो आधा हो जाता है इस बीमारी का खतरा, ICMR की शोध से चला पता

झारखंड के चार जिलों में यह शोध कार्य टीबी से ग्रसित 2,800 रोगियों और उनके सीधे संपर्क में आनेवाले परिवार के 10,345 सदस्यों पर किया गया.

By Prabhat Khabar News Desk | August 10, 2023 9:33 AM

रांची, राजीव पांडेय : टीबी के मरीजों और उनके परिजनों को अगर प्रर्याप्त मात्रा में पोषण युक्त भोजन मिले, तो उनमें इस बीमारी का खतरा आधा हो जाता है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के सहयोग से झारखंड के चार जिलों- रांची, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां में किये गये दो शोध (रेशन स्टडी) में ये सकारात्मक निष्कर्ष निकले हैं. पहला शोध टीबी के मरीजों और दूसरा शोध टीबी मरीज के परिजनों पर किया गया है.

एक शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैसेंट, जबकि दूसरा लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित किया गया है. झारखंड के चार जिलों में यह शोध कार्य टीबी से ग्रसित 2,800 रोगियों और उनके सीधे संपर्क में आनेवाले परिवार के 10,345 सदस्यों पर किया गया. इसमें सामान्य मरीजों के अलावा संताल, हो, मुंडा, उरांव और भूमिज आदिवासी समूह के मरीज और परिजन भी शामिल थे.

यह शोध कार्य दो साल तक चला, जिसका सक्सेस रेट 94% था. शोध के दौरान टीबी के मरीज और उनके परिजनों को दवाओं के साथ पोषण युक्त भोजन दिया गया. 31 जुलाई, 2022 तक इनकी सघन निगरानी के बाद निष्कर्ष निकाला गया कि पोषण युक्त भोजन देने से टीबी के मरीजों की संख्या में 40 फीसदी की कमी आयी है. वहीं, फेफड़े की टीबी से जूझ रहे 48 फीसदी मरीज कम हुए हैं.

शोध कार्य में झारखंड के डॉक्टर भी थे शामिल :

यह शोध कार्य येनेपोया मेडिकल कॉलेज, मंगलोर के मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर डॉ अनुराग भार्गव, डॉ माधवी भार्गव और चेन्नई की डॉ बानु रेखा के निर्देशन में हुआ. डॉ अनुराग भार्गव ने बताया कि राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत टीबी मरीज और उनके परिजनों पर होनेवाले शोध के लिए झारखंड को इसलिए चुना गया, क्योंकि यहां टीबी के साथ-साथ कुपोषण ज्यादा है. इस शोध कार्य में झारखंड से डॉ राकेश दयाल, डॉ राजीव रंजन पाठक व डॉ रंजीत प्रसाद भी शामिल थे.

Next Article

Exit mobile version