Technoman of Jharkhand हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी नेशनल टेक्नोलॉजी दिवस 11 मई को मनाया जा रहा है. आपको बता दें कि देश में कई आविष्कार हो रहे है और भविष्य में भी होते रहेंगे. कोरोना और लॉकडाउन के बीच दुनियाभर में कई बिजनेस इन्हीं टेक्नोलॉजी के वजह से ही चालू है. लोगों की मानें तो इसका उपचार टेक्नोलॉजी के जरिये ही संभव है. आज हम आपको बताने वाले झारखंड के कुछ टेक्नोमैन के बारे में जिन्होंने पिछड़ा कहे जाने वाले इस राज्य से टेक्नाेलॉजी के जरिये लंबी उड़ान भरी है.
उड़ीसा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहे सोनू रांची के अशोक नगर के रहने वाले है. अंतिम समेस्टर की पढ़ाई कर रहे है. बचपन से ही इनका झुकाव टेक्नॉलाजी के प्रति था. ये प्रैक्टिकल नॉलेज में ज्यादा भरोसा करने वालों में से हैं. मशीन कैसे चलती हैं, उसके बैकइंड पर किये गये कार्य और लगाए गए दिमाग को जानने में इनकी रूची ज्यादा रही.
सोनू की मानें तो उन्हें 11वीं कक्षा से ही उन्हें साइबर मामलों में जानकारी रखना पसंद था. यही कारण है कि वह उसी उम्र में बड़े-बड़े कंपनियों के लिए बग-हंटिंग कर चुके हैं.
ऐथेटिक्ल हैकरों द्वारा साइबर सेक्योरिटी के लिये किये जाने वाले निरीक्षण को बग-हंटिंग कहते हैं. इसमें हैकर फेसबुक, गूगल, याहू, यू-ट्यूब जैसे बड़े-बड़े कंपनियों के द्वारा बनाये गये एप्लीकेशन व वेबसाइट में मौजूद सेक्यूरिटी संबंधित खामियों को वीडियो प्रूफ के साथ उस कंपनी को सौंपते हैं और बताते हैं कि आपके एप्लीकेशन में यह इनसिक्योरिटी मौजूद हैं. बदले में कंपनी की ओर से इन्हें रिवार्ड दिया जाता हैं.
सोनू की मानें तो उन्हें कॉलेज के दौरान सीसको आईओटी हैकोथन प्रतियोगिता में बैठने का मौका मिला था. जिसमें जीतने के साथ उनके आत्मविश्वास बढ़ा.
इसके बाद इन्होंने अपना पहला ड्रोन का आविष्कार किया. सोनू ने ट्रेडिशनल ड्रोन की रूपरेखा को बदलने की कोशिश की. उन्होंने एक ऐसा ड्रोन बनाया जिसमें सोचने की क्षमता हो सकती थी. हालांकि, यह भी प्रोग्राम बेस्ड ही होता है. जिसका स्क्रीप्ट पहले से कोडिंग के जरिये लिख कर एम्बेड कर दिया जाता है.
ड्रोन एक अनमैनड एरियल वेह्किल (यूएवी) कहलाता हैं. इसका मतलब हैं एक ऐसा वाहन जिसके अन्दर कोई न हो फिर भी वह बाहर से किसी रिमोट के द्वारा कंट्रोल किया जा सके. इसे उड़ाने के लिए एक मैनपावर की जरूरत पड़ती हैं. उसे ड्रोन पायलट कहते हैं.
– पायथन भाषा में लिखे कोड पर काम करता था. इसे उड़ाने के लिए आम ड्रोन के तरह लगे रहने की जरूरत नहीं बल्कि यह आर्टिफिशियली इंटेलेजेंसीय के द्वारा बखूबी काम करके वापस आ सकता है.
– ड्रोन की कनेक्टिविटी में काम किया जिससे यह रेडियो फ्रीक्वेंसी या टेलीमेट्री पर भी काम कर सकता है. आपको बता दें कि रेडियो फ्रीक्वेंसी ड्रोन के उड़ने की क्षमता 3-4 किलोमीटर होती हैं, जबकी टेलीमेट्री में ज्यादा से ज्यादा 10 किलोमीटर हो सकती है. लेकिन सानू की मानें तो ड्रोन को दुनिया के किसी भी कोने से कंट्रोल किया जा सकता है. साथ-साथ रेडियो ट्रांसमीटर और टेलीमेट्री रेडियो से लैस है.
इसमें यूनिक फीचर डाला गया हैं जिसे स्वार्म टेक्नॉलाजी कहते हैं. जो कृषि क्षेत्र के लिये तो लाभकारी हैं ही साथ ही साथ रेस्क्यू ऑपरेशन बहुत ही कम समय में सटीकता के साथ कर सकता हैं. इसमें 3-4 ड्रोन एक साथ बराबर समय में एक दूसरे के सामंजस्य से काम को बांट कर रेस्क्यू में लग जाते हैं, इसके लिए केवल एक ड्रोन में रेस्क्यू वाले क्षेत्र को चिन्हीत करना होता हैं.
उन्होंने बताया कि पिछले बार प्रभात खबर में छपी खबर के बाद मुझे आईआईटी कानपुर से कॉल आया था. उन्होंने बताया कि डॉ अभिषेक कानपुर में आईआईटी के प्रोफेसर है. उन्होंने मुझे अपने साथ काम करने का न्योता दिया है. कॉलेज की अंतिम पढ़ाई करके मेरी और मेरे पार्टनर विनय श्रीधर की hackcraft.in कंपनी उनकी कंपनी के साथ मर्ज होकर काम करेगी.
कोरोना महामारी से उबरने के लिए झारखंड के तीन लड़को की कंपनी ने दी थी चीन को सपोर्ट सिस्टम. इन्होंने टेक्नोलॉजी के जरिये बैंगलोर से बैठ कर चाइना की मशीन को इंस्टॉल किया. अत: चीन के 10 दिनों में अस्पताल बनाने की प्रक्रिया में इनका भी काफी योगदान रहा.
आपको बता दें कि नितिन (32), हर्षवर्धन (33) और धीरज (32) पार्टनर है. इन तीनों ने मिलकर एक कंपनी खोल रखी है जिसका नाम है ब्लिंकिंग प्राइवेट लिमिटेड.
दरअसल, ब्लिंकिग प्राइवेट लिमिटेड अपने ग्राहकों के साफ्टवेयर संबंधी सेवाएं प्रदान करती है. इन्होंने एक सर्विस ऐप बनाया है जिसके तहत किसी भी मशीन का इंस्टॉलेशन बिना किसी टेक्निकल बंदे के किया जा सकता है. यह मशीन स्वत: काम करती है. इनकी मानें तो बैंगलोर से बैठ कर चाइना के मशीन को रिमोट पर लेकर आसानी से इंस्टॉल कर सकते हैं.
नितिन, हर्षवर्धन और धीरज की कंपनी फिलहाल, इटली और देश के डिफेंस के लिए काम कर रही. इसके अलावा वेंटीलेटर बनाने वाले मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के साथ भी काम कर रही है. नितिन ने बताया कि विलो पंप हमारा ग्राहक है. यह दुनिया का सबसे बड़ा पंप बनाने वाली कंपनी है. इन्हें इटली के क्वारंटाइन सेंटर में पानी संबंधी समस्याओं को हल निकालने की जिम्मेदारी मिली है. नितिन के अनुसार इन्होंने भी हमारे सपोर्ट से रिमोटली पंप फिक्स करवाया है.
झारखंड की राजधानी रांची के रहने वाले 38 वर्षीय रंजीत श्रीवास्तव ने विदेशी रोबोट सोफिया का भारतीय संस्करण विकसित किया. यह एक सोशल ह्यूमनॉइड रोबोट है, जिसका नाम रश्मि रखा गया है. यह हिंदी, भोजपुरी और मराठी बोल सकती है.
डेवलपर रंजीत श्रीवास्तव की मानें तो यह दुनिया का पहला हिंदी भाषी ह्यूमनॉइड रोबोट है. इसे भारत का पहला लिप-सिंकिंग रोबोट भी कहा जा सकता है. इससे पहले भारत में ऐसा रोबोट किसी ने नहीं बनाया है. उन्होंने बताया है रश्मि में भाषाई व्याख्या (Linguistic interpretation) करने, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial intelligence), विज्यूल डेटा और चेहरे की पहचान की क्षमता है.