राजधानी का इकलौता संस्कृत महाविद्यालय, तीन शिक्षकों पर 250 छात्रों की पढ़ाई की जिम्मेदारी
किशोरगंज स्थित राजकीय संस्कृत महाविद्यालय ने 100 वर्ष का सफर पूरा कर लिया है. महाविद्यालय में अभी 250 विद्यार्थी और तीन शिक्षक हैं. कोरोना से पहले तीन शिक्षक आठ पाली की कक्षाओं को आपस में बांटकर पूरा किया करते थे.
रांची : किशोरगंज स्थित राजकीय संस्कृत महाविद्यालय ने 100 वर्ष का सफर पूरा कर लिया है. महाविद्यालय में अभी 250 विद्यार्थी और तीन शिक्षक हैं. कोरोना से पहले तीन शिक्षक आठ पाली की कक्षाओं को आपस में बांटकर पूरा किया करते थे. अभी पढ़ाई भी नहीं हो रही, क्योंकि ऑनलाइन क्लास सुविधा नहीं है. प्राचार्य डॉ रमाशंकर मणि त्रिपाठी कहते हैं : समय के साथ कॉलेज का जीर्णोद्धार हुआ है. नये भवन का समुचित विकास 2019 में पूरा हुआ. बावजूद विद्यार्थियों की संख्या नहीं बढ़ी़
यही कारण है कि विनोवा भावे विवि के अंतर्गत संचालित इस कॉलेज को नये शिक्षक नहीं मिले. कई प्रयासों के बाद मिला नया भवनपूर्व में कॉलेज केवल चार कमरे में संचालित होता था. कई वर्षों के प्रयास के बाद नये भवन का निर्माण हुआ. बुनियादी सुविधाओं के लिए मानव संसाधन विभाग से 27 लाख 22 हजार रुपये की मंजूरी मिलने के कइ प्रयास के बाद टेंडर जारी कर कॉलेज में वेंच, डेस्क, बिजली समेत अन्य सुविधाएं उपलब्ब्ध करायी गयी.पुस्तकालय में मौजूद हैं बहुमूल्य पुस्तकेंवर्तमान में कॉलेज के संचालन में तीन शिक्षकों के अलावा एक लाइब्रेरियन की व्यवस्था की गयी है.
लाइब्रेरियन ने पुस्तकालय को दोबार जीवंत किया है़ यहां प्राचीन वैदिक साहित्य, ज्योतिष व्याकरण, वेद और अंग्रेजी साहित्य की सैकड़ों पुस्तकें हैं. 1920 में गणपत राय बुधिया के नाम से खोला गया था राजकीय संस्कृत महाविद्यालय को 1920 गंगा प्रसाद बुधिया के पिता गणपत राय बुधिया के नाम से खोला गया था. 1953 में इसका राजकीयकरण हुआ. 1980 में स्वीकृति मिलने के बाद कॉलेज को विनोवा भावे विवि के अंतर्गत संचालन करने की जिम्मेदारी दे दी गयी.अगस्त में जारी हो सकता है
नये सत्र का फॉर्मयहां विद्यार्थी उपशास्त्री (प्लस टू ), शास्त्री (ग्रेजुएशन) और आचार्य (पोस्ट ग्रेजुएशन) की पढ़ाई पूरी कर सकते हैं. एक हजार से अधिक सीटें हैं. शिक्षकों ने कहा कि विद्यार्थी संस्कृत विषय की पढ़ाई कर बेहतर भविष्य बना सकते हैं. महाविद्यालय कमेटी की बैठक के बाद नये सत्र का नामांकन अगस्त में ही शुरू किया जाना है.500 रुपये में पूरा कर सकते है कोर्सयहां 500 रुपये वार्षिक फीस ली जाती है. यह फीस पिछले वर्ष तक 200 रुपये थी़ इसके अलावा सिर्फ परीक्षा शुल्क ही लिया जाता है. 2008 के बाद से अब तक यहां प्रोफेसर की नियुक्ति नहीं हुई है.
प्रोफेसर के 11 पद हैं सृजितकॉलेज में प्रोफेसर के लिए 11 पद सृजित हैं. वर्तमान में प्राचार्य के अलावा मात्र दो प्रोफेसर डॉ आरएन पांडा और डॉ शैलेश मिश्रा पदस्थापित हैं. प्राचार्य ने कहा (फोटो लाइफ में नाम से)विद्यार्थी संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में अपना भविष्य नहीं मानते, जबकि विज्ञान के महत्वपूर्ण विषय भी संस्कृत पर आधारित हैं. व्याकरण की पढ़ाई कर विद्यार्थी खुद को बेहतर रूप में स्थापित कर सकते हैं. तकनीकी विकास में संस्कृत भाषा को कंप्यूटर और मोबाइल से भी जोड़ना चाहिए, इससे संस्कृत भाषा और साहित्य का विकास संभव हो सकेगा. – डॉ रमाशंकर मणि त्रिपाठी, प्राचार्य
Post by : Pritish Sahay