60-75 फीसदी मार्क्स लानेवाले विद्यार्थियों को अपने ही स्कूल में नहीं हो रहा दाखिला
शैक्षणिक संस्थानों ने कटऑफ जारी कर दिया है. यही कारण है कि 60 से 75 फीसदी मार्क्स हासिल करनेवाले विद्यार्थियों को अपने ही स्कूल में जगह नहीं मिल पा रही है.
रांची (अभिषेक रॉय). सभी बोर्ड ने 10वीं का रिजल्ट घोषित कर दिया है. अब विद्यार्थी साइंस, कॉमर्स व आर्ट्स स्ट्रीम के चयन को लेकर परेशान हैं. प्लस टू स्कूल और इंटर कॉलेज में सबसे ज्यादा डिमांड साइंस स्ट्रीम की है. यही कारण है कि शैक्षणिक संस्थानों ने कटऑफ जारी कर दिया है. यही कारण है कि 60 से 75 फीसदी मार्क्स हासिल करनेवाले विद्यार्थियों को अपने ही स्कूल में जगह नहीं मिल पा रही है. इससे अभिभावक परेशान हैं. साथ ही बच्चों पर दबाव बढ़ रहा है. बच्चों को अपने ही स्कूल में दाखिला नहीं मिलने से अभिभावक निराश हैं और स्कूल प्रबंधन की इस नीति पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं. अभिभावकों का कहना है कि जिस स्कूल में बच्चे ने प्रारंभिक शिक्षा से लेकर बोर्ड तक की पढ़ाई की हो, यदि वही स्कूल प्लस टू में एडमिशन नहीं ले, तो स्थिति काफी विकट हो जाती है. बच्चों को कम अंक मिलता है, तो विद्यालय प्रबंधन सीधे अभिभावकों को दोषी ही ठहरा देता है. जबकि कायदे से विद्यालय प्रबंधन को भी मूल्यांकन करना चाहिए कि आखिर चूक कहां हो रही है. बच्चे क्यों पिछड़ रहे हैं. यदि उनके स्कूल के बच्चे पिछड़ गये हैं, तो खराब प्रदर्शन का हवाला देकर उन्हें हतोत्साहित करने की जगह एडमिशन लेकर प्रोत्साहित करना चाहिए. बरियातू के एक निजी स्कूल के छात्र को 10वीं बोर्ड परीक्षा में 60.8% अंक मिले हैं. अब इस विद्यार्थी को अपने ही स्कूल में एडमिशन नहीं हो पा रहा है. जबकि, वह 11वीं नामांकन प्रवेश परीक्षा में सफल भी हो चुका था. स्कूल ने प्रोविजनल एडमिशन प्रक्रिया भी पूरी कर ली थी. अरगोड़ा क्षेत्र के एक निजी स्कूल में पढ़नेवाले छात्र को 10वीं बोर्ड परीक्षा में 74% अंक मिले हैं. उस विद्यार्थी की इच्छा 11वीं में साइंस विषय के साथ पढ़ाई करने की है, लेकिन स्कूल के कटऑफ अंक के अनुसार वह छात्र पिछड़ रहा है. कम अंक के कारण स्कूल प्रबंधन दूसरे स्कूल में दाखिला लेने की सलाह दे रहे हैं. दूसरी अन्य स्कूलों में भी कटऑफ अधिक होने से बच्चे को दाखिला नहीं मिल पा रहा है.
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