शौर्य गाथा: लांस हवालदार तिफिल तिडू ने शांति मिशन में अदम्य साहस का दिया था प्रदर्शन
झारखंड के सैनिक तिफिल तिडू विदेशी धरती पर बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गये थे. जिसके लिए उन्हें सौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था. दरअसल, वे बिहार रेजिमेंट के थे. सोमालिया में विद्रोही खाने का सामान लूट ले रहे थे, इसे रोकने के प्रयास में विद्रोहियों ने हमला कर दिया था.
Shaurya Ghata: भारतीय सेना न सिर्फ सीमा पर देश की रक्षा करती है, बल्कि जरूरत पड़ने पर अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए जो जरूरत होती है, जाती है और अपना फर्ज निभाती है. इसी क्रम में कई बार भारतीय सैनिकों को शहादत तक देनी पड़ती है. ऐसी ही एक घटना 1994 में घटी जब सोमालिया में शांति स्थापित करने के लिए भारतीय फौज गयी थी. इनमें झारखंड के तिफिल तिडू भी थे. वे बिहार रेजिमेंट के थे. सोमालिया में विद्रोही खाने का सामान लूट ले रहे थे, इसे रोकने के प्रयास में विद्रोहियों ने हमला कर दिया था. विदेशी धरती पर बहादुरी से लड़ते हुए तिफिल तिडू शहीद हो गये थे. जिसके लिए उन्हें सौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था.
भोजन बांटने की की थी व्यवस्था
90 के दशक में पूर्वी अफ्रीका का देश सोमालिया अपनी अस्थायी सरकार और भुखमरी से पीड़ित जनता से त्रस्त था. संयुक्त राष्ट्र ने राहत कार्य के तहत वहां के लोगों के बीच भोजन बांटने की व्यवस्था की थी. सोमालिया का विद्रोही (आतंकवादी) मोहम्मद फराह मंदिर भोजन पहुंचाने वालों पर हमला कर रहा था. उसका मकसद भोजन पर कब्जा कर पूरे देश पर नियंत्रण करना था. 3 अक्तूबर 1993 को संयुक्त राष्ट्र के ऑपरेशन के तहत अमेरिका ने सोमालिया के मोगादिशु शहर में अपने 120 डेल्टा फोर्स कमांडो और आर्मी रेंजरों हेलिकॉप्टर से उतारा था. इसका मकसद एदिद को पकड़ना था. विद्रोही इतने खतरनाक थे कि उन्होंने अमेरिका के दो ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टरों को मार गिराया था. हमले में शांति अभियान में कई देशों के सैनिक मारे जा रहे थे. इनमें चीन, फ्रांस, इंग्लैंड, रूस, ब्राजील, ईरान, ईराक, भारत, पाकिस्तान आदि सैनिक भी थे.
1994 में तिफिल तिडू हुए थे शहीद
1994 में सेना की एक टुकड़ी को सोमालिया भेजी थी. भारतीय वायुसेना की तीव्रगामी चीता मिसाइल हेलिकॉप्टर के साथ-साथ 66 स्वतंत्र बिग्रेड दल वहां पहुंचा था. जिसमें बिहार रेजिमेंट से एकमात्र तिफिल तिडू थे. 28 मार्च 1994 को सोमालिया के किस्माऊ क्षेत्र में शांति मिशन के तहत अपने कार्य को अंजाम देते हुए वह शहीद हो गये थे. तिफिल तिडू अपने माता-पिता के इकलौती संतान थे. उनके पिता एक फौजी थे. माता एक गृहिणी थी. बचपन से ही एक फौजी परिवार में पलने-बढ़ने के कारण उन्हें संस्कार भी कुछ ऐसे मिले कि उनकी भी इच्छा सेना में जाने की हो गयी. समय के साथ यह इच्छा बढ़ने लगी. देखते ही देखते यह इच्छा इतनी तीव्र हो गयी कि उन्होंने मैट्रिक पास करने का भी इंतजार नहीं किया. सातवीं कक्षा पास होने के बाद ही उन्होंने आर्मी में बहाली हेतु आवेदन दे दिया. जरूरी जांच परीक्षा के बाद वहां उनका चयन भी हो गया.
बिहार रेजिमेंट में सिपाही के तौर पर बहाली
कठिन प्रशिक्षण के बाद उनकी बहाली बिहार रेजिमेंट में सिपाही के तौर पर हुई. इसके बाद उनकी पोस्टिंग एक शहर से दूसरे शहर में होती रही. वर्ष 1981 में उनका विवाह सिलवंती से हुआ, विवाह के बाद सिलवंती घर पर ही रहा करती थी. छुट्टियों में जब तिफिल तिडू घर आते थे, तब वह अपना समय अपने परिवार के साथ ही गुजारना पसंद करते थे. तिफिल तिडू को रेडियो के कार्यक्रम विशेषकर समाचार सुनना बेहद पसंद था. फौजी होने के कारण, देश-दुनिया की खबरों के साथ-साथ आर्मी की समकालीन गतिविधियों के बारे में अधिक जानना चाहते थे.
तिफल तिडू को मोटरगाड़ी की सुरक्षा का कार्य सौंपा था
1994 में वह दिल्ली में कार्यरत थे. सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र का ऑपरेशन चल रहा था. भारत को भी अपनी टीम भेजनी थी. टीम तय हो गयी. इसमें तिफिल का भी नाम था. एक साल के लिए तिफिल तिडू को सोमालिया भेजा गया था. सोमालिया में उन्हें युनिसेफ की एक मोटरगाड़ी की सुरक्षा का कार्य सौंपा गया था. जब एक सड़क पर दो सशस्त्र सोमालियों ने उस गाड़ी को रोकने का इशारा किया तो लांस हवलदार तिफिल तिडू उनकी मंशा को भांपते हुए गाड़ी से कूद पड़े और उन्हें ललकारा उसी समय 12 से 14 सशस्त्र सोमालियों ने गाड़ी पर गोलीबारी शुरू कर दी. लांस हवलदार तिफिल तिने भी जवाबी गोलीबारी की जबकि जांघ में एक गाली लगने के बाद वो घायल हो चुके थे, पर फिर भी उन्होंने गालीबारी जारी रखी. तभी उनके जबड़े और सिर में गोलियां आ लगी जिससे वे शहीद हो गये. वे 14 साल तक सेना में रहे.
काफी उम्दा रहा तिफल तिडू का रिकार्ड
तिफल तिडू का रिकार्ड काफी उम्दा रहा. एक अच्छे फौजी के साथ-साथ वह एक अच्छे इंसान भी थे. वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते थे. विशेष आयोजनों में अपने माता-पिता के साथ-साथ पूरे परिवार का ख्याल रखा करते थे. तिफिल की शहादत के बाद उनकी पत्नी सिलवंती को रांची स्थित आर्मी अस्पताल में नौकरी मिल गयी. उनकी बड़ी बेटी रेश्मा बीएड कर रही है, जबकि बेटा रंजीत पढ़ाई कर रहा है. पति की शहादत के बाद जिस तरीके से सेना ने उसके परिवार का साथ दिया, उसका सिलवंती पर गहरा प्रभाव पड़ा है. अब सिलवंती अपने बेटे को भी सेना में भेजना चाहती है, ताकि बेटा भी अपने पिता की तरह देश की सेवा कर सके.