मिथिलेश झा
रांची : झारखंड के बिरसा जैविक उद्यान में बाघिन के हमले में एक युवक की मौत ने चिड़िया घर में बाघ की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिये हैं. पुलिस, प्रशासन और जैविक उद्यान के प्रबंधक इस घटना की जांच कर रहे हैं. जांच का विषय है कि युवक कैसे वहां पहुंचा और उसकी मौत कैसे हो गयी, लेकिन बाघिन की सुरक्षा के बारे में कोई नहीं सोच रहा. इस घटना ने हमारे राष्ट्रीय पशु की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिये हैं. खासकर इसलिए क्योंकि बुधवार (4 मार्च, 2020) को उद्यान में सुरक्षा नाम की कोई चीज नहीं दिखी.
दुनिया भर में बाघ को बचाने की बात हो रही है. हमारे देश में सबसे ज्यादा बाघ हैं, लेकिन उनका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है. इसकी सुरक्षा पर सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है. झारखंड में तो बाकायदा टाइगर रिजर्व है. पलामू प्रमंडल में स्थित पलामू टाइगर रिजर्व में अब बाघ नहीं दिखते. जैविक उद्यान में जो बाघ या बाघिन हैं, वह अन्य राज्यों से लाये गये हैं.
बाघ के बाड़े में वसीम अंसारी नामक युवक के कूदने की घटना से स्पष्ट हो गया है कि चिड़िया घर में भी हमारे राष्ट्रीय पशु की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है. कोई भी व्यक्ति 30 रुपये का इंट्री टिकट लेकर बाघ-बाघिन तक पहुंच सकता है. उसे कुछ खिलाने के नाम पर उसकी हत्या कर सकता है. बाघों के स्वच्छंद विचरण के लिए बने जंगलों में शिकारियों ने उन्हें खत्म कर दिया.
जैविक उद्यान और देश के अलग-अलग कोने में स्थित चिड़िया घरों का प्रशासन यदि नहीं जागा, तो कोई भी व्यक्ति 30 रुपये या इससे कम या इससे अधिक, जो भी इंट्री टिकट की कीमत होगी, चुकाकर बाघ या बाघिन को मार सकता है. ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति बाघ को कुछ खिलाने के नाम पर उसे जहर दे दे.
ओरमांझी के थाना प्रभारी श्याम किशोर महतो ने कहा कि लोगों को वन्य जीव कानून (Wild Life Act) का पालन करना चाहिए. जिस युवक की मौत हुई है, उसने इस कानून को तोड़ा है. उसके पास कोई वैध दस्तावेज नहीं मिला है, जिससे उसकी पहचान हो पाये. थाना प्रभारी का यह बयान अपने आप में सन्न कर देने वाला है कि कोई भी व्यक्ति बिना किसी जांच के चिड़िया घर में प्रवेश कर जाता है. वह कहीं भी चला जाता है. कुछ भी करता है, लेकिन उसकी मॉनिटरिंग नहीं होती.
यदि बाघिन के बाड़े के आसपास सीसीटीवी कैमरे लगाये गये होते और उसकी निरंतर निगरानी की जा रही होती, तो शायद वसीम अंसारी आज जीवित होता. जब वह बाघिन के बाड़े के पास पेड़ पर चढ़ रहा था, तभी उसे रोक लिया जाता. हो सकता है कि कैमरे लगे हों, लेकिन यह तो निश्चित हो गया है कि उसकी निगरानी नहीं होती है. यह भी जैविक उद्यान के प्रबंधन की बड़ी लापरवाही है.