My Mati: ठीक 40 साल पहले (21 अक्तूबर,1982 काे) चांडिल कॉलेज के दाे छात्र धनंजय महताे और अजीत महताे की शहादत ने पूरे झारखंड क्षेत्र काे उद्वेलित कर दिया था. पुलिस ने तत्कालीन सिंहभूम जिले के तिरुलडीह में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे छात्राें पर फायरिंग कर दी थी. जिसमें ये दाेनाें छात्र मारे गये थे. इनमें एक छात्र धनंजय महताे का विवाह हाे चुका था, जबकि दूसरे अजीत महताे अविवाहित थे.
लंबा समय गुजर गया. झारखंड अलग राज्य भी बन गया. तिरुलडीह गाेलीकांड पर राजनीति भी खूब हुई, लेकिन मूर्ति लगवाने और पुल का नाम इन शहीदाें के नाम पर करने के अलावा इनके परिजनाें काे कभी भी काेई ठाेस सहायता नहीं मिली. झारखंड आंदाेलनकारियाें के शहीदाें की आधिकारिक सूची में अभी तक इन दाेनाें का नाम भी शामिल नहीं किया गया है. एक शहीद धनंजय महताे का पुत्र उपेंद्र (घटना के समय उसकी उम्र कुछ माह की हाेगी), 40 साल से ज्यादा का हाे गया है, नाैकरी की उम्र भी पार कर गयी है. धनंजय-अजीत और इन जैसे झारखंड के अन्य शहीदाेें के परिजनाें के साथ वैसे ही न्याय करने की जरूरत है, जैसा न्याय गुवा गाेलीकांड के शहीदाें के परिजनाें के साथ किया गया.
उन दिनाें झारखंड राज्य के लिए आंदाेलन चल रहा था. काेल्हान में जंगल आंदाेलन चरम पर था. सिंहभूम कॉलेज चांडिल के छात्र एक और झारखंड राज्य के लिए आंदाेलन कर रहे थे, दूसरी और उनकी अपनी समस्याएं भी थीं. तब पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ा था. छात्र गांवाें से अपने खाने के लिए चावल लाते थे लेकिन सूखा पड़ने के कारण छात्र परेशान थे. छात्राें ने चांडिल, नीमडीह और ईचागढ़ प्रखंड काे अकालग्रस्त घाेषित करने लिए क्रांतिकारी छात्र युवा माेरचा का गठन किया गया था. अशाेक उरांव इसके अध्यक्ष और हिकिम महताे महासचिव थे.
19 अक्टूबर से 23 अक्टूबर तक तीनाें प्रखंडाें में छात्राें काे प्रदर्शन करना था. छात्राें ने तय किया था कि वे साइकिल से 16 अक्टूबर काे ही निकल जायेंगे और तीनाें प्रखंडाें में प्रदर्शन कर 24 अक्टूबर तक घर लाैट जायेंगे. इसी क्रम में 19 अक्टूबर काे नीमडीह में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हाे चुका था. 21 अक्टूबर काे साइकिल से छात्र ईचागढ़ पहुंचे थे. प्रखंड मुख्यालय तिरुलडीह में था. छात्राें ने वहां मिडिल स्कूल के पास सभा की और बीडीओ-सीओ काे मांग पत्र देने प्रखंड कार्यालय गये थे. उनके साथ ग्रामीण व मुखिया आदि भी थे. इनमें अजीत और धनंजय भी थे. अंदर हिकिम महताे, गुरुचरण महताे, दीनबंधु महताे, विजय महताे, नित्यानंद दास, हरेन महताे आदि थे. जब ये लाेग अंदर बीडीओ-सीओ से बात कर कुछ ठाेस आश्वासन चाह ही रहे थे कि बाहर पुलिस ने छात्राें पर बगैर किसी चेतावनी के फायरिंग कर दी, जिसमें धनंजय और अजीत मारे गये. खगेन महताे काे भी गाेली लगी थी.
दरअसल उन दिनाें पुलिस आंदाेलनकारियाें से काफी नाराज चल रही थी. कारण था छात्राेें और ग्रामीणाें ने पुलिस की वसूली बंद करा दी थी. झारखंड क्षेत्र में तब केराेसिन तेल काफी महंगा बिक रहा था. बंगाल में सस्ता था. इसलिए छात्र और ग्रामीण सब्जी लेकर झारखंड-बंगाल सीमा पार कर जाते थे और उसे बेच कर कम दाम पर केराेसिन तेल लेकर लाैट आते थे. पुलिस पैसा मांगती थी, जिसका विराेध हाेता था. यही तनाव का बड़ा कारण था और जब तिरुलडीह में पुलिस काे माैका मिला ताे उसने अपना गुस्सा छात्राें पर उतार दिया था. फायरिंग के बाद भी पुलिस का आतंक कम नहीं हुआ. उसने 41 लाेगाें का गिरफ्तार किया था और 36 घंटे तक बिना खाना-पानी के रखा था. हंगामा के बाद उन्हें छाेड़ा गया था.
इस घटना के बाद पुलिस का आतंक इतना था कि पाेस्टमार्टम के बाद जमशेदपुर से दाेनाें छात्राें का शव गांव तक लाने काे काेई तैयार नहीं था. तब निर्मल महताे (जाे बाद में झारखंड मुक्ति माेरचा के केंद्रीय अध्यक्ष बने थे) ने हिम्मत दिखायी थी और खुद ट्रक पर दाेनाें छात्राें का शव लेकर गये थे. धनंजय महताे (जाेड़ाे पंचायत के आदरडीह निवासी) की पत्नी काे पता भी नहीं था कि उसका पति शहीद हाे गया है. इसी कारण अंतिम संस्कार के समय उनके घर से काेई आ भी नहीं सका था और निर्मल महताे ने खुद मुखाग्नि दी थी. इस घटना के बाद निर्मल महताे एक बड़े नेता के ताैर पर उभरे थे और उन्हाेंने ईचागढ़ काे अपना कार्यक्षेत्र भी बना लिया था.
गाेलीकांड के बाद कर्पूरी ठाकुर, जार्ज फर्नांडीस, रामविलास पासवान, शिबू साेेरेन जैसे नेताओं ने तिरुलडीह का दाैरा किया था. गाेलीकांड के खिलाफ आंदाेलन भी हुआ, जिसमें सुरेश खेतान, तरूण कुमार पाल, अशाेक उरांव, हिकिम महताे, शीतल चंद्र प्रमाणिक, दीन बंधु महताे, गुरुचरण महताे आदि ने प्रमुख भूमिका निभायी थी. घटना के बाद ग्रामीणाें में इतना गुस्सा था कि उन्हाेंने काेई भी सरकारी सहायता लेने से इनकार कर दिया था. बाद में इन दाेनाें शहीदाें की याद में मूर्ति भी लगी और शहादत दिवस पर हर साल कार्यक्रम का आयाेजन भी हाेता है. लेकिन इन दाेनाें काे आधिकारिक ताैर पर शहीद का दर्जा नहीं मिलना सभी काे खलता है, क्याेंकि तिरुलडीह गाेलीकांड झारखंड आंदाेलन का हिस्सा था.