इस विधि से बच सकते हैं 90 फीसदी पेड़, 10 हजार से अधिक पेड़ों को किया गया है ट्रांसप्लांट

वैज्ञानिक विधि से ट्रांसप्लांट किये गये 90 फीसदी पेड़ों जा सकता है बचाया

By Prabhat Khabar News Desk | December 14, 2020 10:46 AM

रांची : वैज्ञानिक विधि से ट्रांसप्लांट किये गये 90 फीसदी पेड़ों को बचाया जा सकता है. यह कहना है पेड़ ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ अजय नागर का. अजय नागर की देखरेख में 10 हजार से अधिक पेड़ों का ट्रांसप्लांट हो चुका है. वह दिल्ली में रोहित नर्सरी नामक फर्म चलाते हैं. फिलहाल वह झारखंड आये हुए हैं. वह एक साल पुराने पेड़ का भी ट्रांसप्लांट कर चुके हैं.

इसकी चौड़ाई छह मीटर के आसपास थी. श्री नागर ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में ट्रांसप्लांट की तकनीक और इसकी उत्तरजीविता (सरवाइवल) के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि पहली बार ट्रांसप्लांट 1992 में किया था. उनके द्वारा ट्रांसप्लांट कराये गये पेड़ की उत्तरजीविता 90 फीसदी से अधिक तक रही है.

श्री नागर बताते हैं कि असल में पेड़ को ट्रांसप्लांट करने की वैज्ञानिक विधि है. इसका ट्रांसप्लांट कभी भी सीधे मशीन से नहीं हो सकता है. पहले पेड़ के चारों किनारों में गड्ढा बनाकर उसकी जड़ों पर नजर रखी जाती है. एक बड़े पेड़ के ट्रांसप्लांट में चार से पांच माह तक लगता है. इस पर खर्च भी करीब एक लाख रुपये के अासपास आता है. जैसे-जैसे पेड़ का आकार कम होता जायेगा. खर्च भी घटता जायेगा. ज्यादा खर्च पेड़ों के ट्रांसपोर्टेशन पर होता है.

पौधा से पेड़ तैयार करने से कम खर्च होता है ट्रांसप्लांट में

श्री नागर कहते हैं कि जितनी कोशिश हो, पेड़ को बचाने की कोशिश करनी चाहिए. आज विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं. पौधा से पेड़ तैयार करने की तुलना में कम खर्च में ट्रांसप्लांट हो सकता है. एक पौधा को पेड़ बनने में सात साल लगता है. उस पर मजदूरी और मेंटेनेंस खर्च पेड़ ट्रांसप्लांट करने से ज्यादा हो जाता है. ट्रांसप्लांट करने के साल भर के अंदर ही पेड़ अपने पुराने स्वरूप में आ जाता है.

बिना वैज्ञानिक विधि से करा रहे हैं ट्रांसप्लांट

श्री नागर बताते हैं कि अाजकल बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के निर्माण पर पेड़ को ट्रांसप्लांट करने का टेंडर डाला जाता है. इसमें कई ऐसी कंपनियां हिस्सा लेती हैं, जिन्हें वैज्ञानिक विधि का ज्ञान नहीं होता है. इस कारण पेड़ को मशीन से गड्ढा खोदकर दूसरे स्थान पर लगा दिया जाता है. लगाते समय भी वैज्ञानिक विधि का ख्याल नहीं रखा जाता है. इस कारण एक साल में ही पेड़ मर जाते हैं. वैसे पेड़ ट्रांसप्लांट में सफल नहीं होते हैं, जिनमें कीड़े लगे हुए हैं या जो किसी कचड़े पर तैयार हुए हैं. इन पेड़ों को जैसे ही ट्रांसप्लांट के लिए निकाला जाता है, वैसे ही जड़वाली मिट्टी गिर जाती है. इससे पेड़ को ट्रांसप्लांट करना मुश्किल होता है.

कहां-कहां काम कर चुके हैं श्री नागर

– लखनऊ मेट्रो ( 1200 से अधिक पेड़ ट्रांसप्लांट किया)

– यूपी फॉरेस्ट कॉरपोरेशन ( 900 से अधिक पेड़ ट्रांसप्लांट किया)

– आइटीडी

– अाइआइएम कैंपस काशीपुर

– दिल्ली मेट्रो

– तमिलनाडु सरकार

– कानपुर मेट्रो

– उत्तराखंड सरकार

posted by : sameer oraon

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