Loading election data...

शहीदों के सम्मान में उमेश 1.20 लाख किमी की यात्रा कर पहुंचे झारखंड, प्रभात खबर के साथ साझा किया अनुभव

14 फरवरी 2019 को पुलवामा में हुए हमले के बाद देश भर में सैनिकों की शहादत को लेकर शोक व्यक्त किया जा रहा था. जबकि, देश सेवा की भावना लिए औरंगाबाद (सांभाजी नगर) महाराष्ट्र के उमेश गोपीनाथ जाधव ने इन वीर शहीदों की मिट्टी से जुड़ने की प्रण लिया.

By Prabhat Khabar News Desk | November 9, 2022 11:10 AM

14 फरवरी 2019 को पुलवामा में हुए हमले के बाद देश भर में सैनिकों की शहादत को लेकर शोक व्यक्त किया जा रहा था. जबकि, देश सेवा की भावना लिए औरंगाबाद (सांभाजी नगर) महाराष्ट्र के उमेश गोपीनाथ जाधव ने इन वीर शहीदों की मिट्टी से जुड़ने की प्रण लिया. मन बनाकर अपने घर से निकले. स्वभाव से आम नागरिक, पर दिल से एक सैनिक. लक्ष्य था देश के वीर सपूतों के आंगन की मिट्टी को एक जगह इकट्ठा कर उससे भारत का नक्शा तैयार कर स्मारक बनाया जाये.

नौ अप्रैल 2019 को ग्रुप सेंटर सीआरपीएफ, यूपी से इन्होंने यात्रा शुरू की. डीआइजी आनंद कमल ने उमेश की कार को फ्लैग ऑफ कर यात्रा को पंख दिये. कारवां बढ़ा और 1.20 लाख किमी की यात्रा के साथ 14 फरवरी 2020 को मुकाम पर पहुंच गया. उमेश ने पुलवामा पहुंचकर 40 वीर शहीदों के आंगन की मिट्टी स्पेशल जेनरल डायरेक्टर जुल्फिकार हसन को सौंपी. मंगलवार को उमेश ‘प्रभात खबर’ कार्यालय पहुंचे. अपनी यात्रा के अनुभव संवाददाता अभिषेक राॅय से साझा की.

Q. यात्रा का विचार कैसे आया?

जिस वक्त पुलवामा हमला हुआ, मैं जयपुर से बेंगलुरु लौट रहा था. घटना ने मुझे आहत किया. जवानों को सच्ची श्रद्धांजलि देने, सैनिकाें के प्रति आम नागरिकों की धारणा बदलने और सेना के प्रति लोगों में सम्मान का भाव जगाने के उद्देश्य से यह यात्रा शुरू की थी.

Q. यात्रा के क्रम में कितने परिवार से मिले और क्या अनुभव किया?

यात्रा के क्रम में न केवल पुलवामा में शहीद हुए 40 अमर बलिदानियों के परिवार से मिला, बल्कि प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, कारगिल युद्ध, उरी हमले, 26/11 के बलिदानी, पठानकोट हमले, ऑपरेशन रक्षक, गलवान झड़प और हाल में कुन्नूर हेलीकॉप्टर क्रैश में शहीद हुए 150 जवानों के परिवारों से मिल चुका हूं. यात्रा के क्रम में सेना के जवान के देशप्रेम और उनके परिजनों के भावनात्मक लगाव को महसूस कर पाया हूं.

Q. पुलवामा हमले में झारखंड के भी जवान शहीद हुए थे, उनसे कब मिले?

झारखंड में मेरी यह दूसरी यात्रा है. इससे पहले 2020 के शुरुआत में पुलवामा में शहीद हुए गुमला के सैनिक विजय सोरेंग के परिवार से भी मिल चुका हूं. उनके घर के आंगन की मिट्टी को इकट्ठा किया. परिवार के सदस्यों से घंटों बात हुई. शहीद विजय के प्रति उनके गांव में जो सम्मान है, उससे काफी प्रभावित हुआ.

Q. अमर जवानों के घर की मिट्टी ही क्यों इकट्ठा करने निकले?

देश के लिए बलिदान देना देश प्रेम का सच्चा उदाहरण है. किसी से डरे बिना सैनिक कैसे अपने देश की रक्षा करते हैं, यह उनके परिवार से मिलने पर ही पता चलता है. अमर जवानों के घर की मिट्टी से देश का एक नक्शा बने और उसे वॉर मेमोरियल का रूप मिले यही उद्देश्य था.

Q. असल जीवन में उमेश क्या करते हैं?

मैं पेशे से एक फार्मासिस्ट हूं और बेंगलुरु के एक कॉलेज में प्रोफेसर था. शुरू से ही संगीत के प्रति गहरा लगाव था, इसलिए नौकरी छोड़ म्यूजिक स्कूल खोला. मेरी पत्नी सुजाता जाधव क्लिनिकल रिसर्चर है. 13 और 11 वर्ष के दो बेटे हैं, उन्हें भी देशप्रेम से जोड़ रहा हूं.

Q. सोशल मीडिया के जमाने में लोग ब्लॉग तैयार करते हैं, आप क्या करना चाहते हैं?

यात्रा के दौरान सेना के कई रेजिमेंट ने मुझे सम्मानित किया और आगे बढ़ने में मदद की. देश के अलग-अलग राइडर्स ग्रुप ने भी सहयोग किया. सेना और जवानों के बलिदान की यात्रा को लोग समझ सकें, इसे लेकर आनेवाले दिनों में अपनी यात्रा से जुड़ी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की तैयारी कर रहा हूं.

रिपोर्ट- अभिषेक राॅय

Next Article

Exit mobile version