Explainer: प्रश्नकाल और शून्यकाल में क्या होता है अंतर, कैसे चलती है सदन की कार्यवाही?
आपने कई बार सदन की कार्यवाही के दौरान प्रश्नकाल और शून्यकाल जैसे शब्दों के इस्तेमाल देखे होंगे. कई बार पढ़ा और सुना भी होगा, लेकिन कई बार लोगों के मन में सवाल आता होगा कि आखिर ये प्रश्नकाल व शून्यकाल है क्या? सदन की कार्यवाही कैसे चलती है? आज के इस आर्टिकल में हम आपको इसकी जानकारी विस्तार में देंगे.
Jharkhand Monsoon Session: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र चल रहा है. सदन की कार्यवाही के दौरान किसी भी सत्र में कुछ टर्म होते हैं, जैसे प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण आदि. आपने भी कई बार समाचार में इन शब्दों के इस्तेमाल देखे होंगे. कई बार पढ़ा और सुना भी होगा, लेकिन कई बार लोगों के मन में सवाल आता है कि आखिर ये प्रश्नकाल और शून्यकाल है क्या? और सदन की कार्यवाही कैसे चलती है. आज के इस आर्टिकल में हम आपको इसकी जानकारी विस्तार में देंगे.
कैसे चलती है सदन की कार्यवाही
सदन सुबह 11 बजे खुलता है और शाम के 6 बजे बंद हो जाता है. 11 से 6 बजे तक जो भी काम सदन के अंदर होते हैं, उसे ही सदन या सभा की कार्यवाही कहते हैं. इस कार्यवाही को दो खंड में बांट दिया जाता है, पहली पाली और दूसरी पाली. पहली पाली भोजनावकाश से पहले और दूसरी पाली भोजनावकाश के बाद. ठीक उसी तरह जैसे स्कूल में क्लासेज चलते हैं, लंच टाइम के पहले और लंच टाइम के बाद. सदन की पहली पाली 11 बजे से 1 बजे तक की होती है, वहीं दूसरी पाली 2 से 6 बजे तक की होती है. जबकि 1 बजे से 2 बजे तक का समय लंच के लिए होता है, जिसे संसदीय भाषा में भोजनावकाश कहते हैं. भोजनावकाश से पहले, यानी पहली पाली में सदन में दो चीज होती हैं, प्रश्न काल और शून्य काल आईए जानते हैं यह प्रश्न काल और शून्य काल क्या होता है.
प्रश्न काल क्या है?
सामान्य तौर पर लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभा की बैठक का पहला घंटा, 11 बजे से 12 बजे तक, सवालों (प्रश्नों) के लिए होता है. इस एक घंटे को ही प्रश्न काल कहते हैं. सदन की कार्यवाही में प्रश्न काल का विशेष महत्व होता है. इस दौरान संसदीय सदस्य (लोकसभा और राज्यसभा में) व विधायक (विधानसभा में) प्रशासन और सरकार के कार्यकलापों के प्रत्येक पहलू पर सवाल कर सकते हैं. सत्ता पक्ष को सदन में इन सवालों का जवाब भी देना होता है. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि प्रश्न काल ऐसा समय होता है, जब सरकार को कसौटी पर उतारा जाता है. इस दौरान हर एक मंत्री अपने प्रशासनिक कृत्यों में भूल चूक के संबंध में भी उत्तर देना होता है. सदन में सवाल सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से किया जा सकता है.
सदन की कार्यवाही का रोचक हिस्सा- प्रश्न काल
प्रश्न काल सदन की कार्यवाही का रोचक हिस्सा है. किसी भी संसदीय सदस्य की ओर से किए गए प्रश्न में अमूमन जानकारी मांगी जाती है और किसी विशेष विषय पर तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है, फिर भी कई बार प्रश्न पूछने वाले सदस्यों और उत्तर देने वाले मंत्रियों के बीच जीवंत और त्वरित हाजिरजवाबी देखने को मिलती है.
भारत में सदन में प्रश्न पूछने की शुरुआत 1892 में हुई
सदन में सरकारी कामकाज पर प्रकाश डालने के लिए पिछले 70 सालों से इसी उपकरण (प्रश्नकाल) का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रश्नकाल के दौरान सवालों ने हमेशा सरकारी कामकाज के बारे में डेटा और जानकारी को सार्वजनिक डोमेन पर लाने और वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करने में मदद की है. प्रश्न काल की पद्धिति भारत ने यह इंग्लैंड से ग्रहण की है, जहां सबसे पहले, 1721 में इसकी शुरुआत हुई थी. भारत में सदन में प्रश्न पूछने की शुरुआत 1892 में भारतीय परिषद् अधिनियम के तहत हुई. आजादी से पहले भारत में प्रश्न पूछने के अधिकार पर कई प्रतिबंध लगे थे. हालांकि, आजादी के बाद उन प्रतिबंधों का खत्म कर दिया गया.
प्रश्न काल के दौरान किस प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं?
प्रश्न काल में चार तरह के प्रश्न होते हैं, तारांकित प्रश्न, आतारांकित प्रश्न, अल्प सूचना प्रश्न और गैर सरकारी सदस्यों से पूछे जाने वाले प्रश्न. आइए इनके बारे में जानते हैं-
तारांकित प्रश्न (Starred Questions)
सदन में किसी सदस्य की ओर से पूछे गए वैसे सवाल जिसका वह मौखिक उत्तर चाहता हो और पहचान के लिए उस पर तारांक बना रहता है, वह तारांकित प्रश्न होता है. जब प्रश्न का उत्तर मौखिक होता है तो उस पर पूरक प्रश्न (सप्लीमेंट्री क्वेश्चन) भी पूछे जा सकते हैं. एक दिन में 20 से ज्यादा तारांकित प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं. वहीं, एक सदस्य अधिकतम 5 सवाल कर सकता है. यह प्रश्न हमेशा सरकारी सदस्य (मंत्री परिषद में शामिल सदस्य) से पूछे जाते हैं.
अतारांकित प्रश्न (Unstarred Questions)
वैसे प्रश्न जिसका सदन में मौखिक उत्तर नहीं मांगा जाता है, और ना ही उस पर कोई अनुपूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं, वह अतारांकित प्रश्न होते हैं. अतारांकित प्रश्नों का उत्तर लिखत रूप में दिया जाता है. लिखित उत्तर के लिए एक दिन में 230 प्रश्न ही पूछे जा सकते हैं. इस प्रकार के प्रश्न गैर सरकारी सदस्य, मंत्री परिषद में शामिल सदस्य से पूछते हैं.
अल्प सूचना प्रश्न (Short Noticed Questions)
सदन में तारांकित या अतारांकित प्रश्न पूछने के लिए सभा के सदस्यों को कम से कम 10 दिन पहले इसकी सूचना सभा के महासचिव को देनी होती है, लेकिन अल्प सूचना प्रश्न कम समय की सूचना पर भी पूछे जा सकते हैं. तारांकित प्रश्न की तरह, इसका भी मौखिक उत्तर दिया जाता है, जिसके बाद अनुपूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं. अल्प सूचना प्रश्न भी गैर सरकारी सदस्य द्वारा मंत्री परिषद में शामिल सदस्य से पूछे जाने वाला प्रश्न होता है.
गैर सरकारी सदस्यों से पूछा जाने वाला प्रश्न
अब तक हमने जाना सदन में पूछे जाने वाले तारांकित, अतारांकित और अल्प सूचना प्रश्न के बारे में. ये वे प्रश्न होते हैं जो गैर सरकारी सदस्य, सरकारी सदस्यों से पूछते हैं, लेकिन सदन में निजी सदस्यों यानी गैर सरकारी सदस्यों से भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं. गैर सरकारी सदस्य वे होते हैं जो मंत्री परिषद के सदस्य नहीं होते हैं. ये प्रश्न उस स्थिति में पूछे जाते हैं जब वे किसी विधेयक, संकल्प या सदन के किसी विशेष कार्य के लिये उत्तरदायी होते हैं.
प्रश्नकाल के दौरान कौन से प्रश्न नहीं पूछे जा सकते?
सभा में प्रश्न पूछने के दौरान कई बातों का ख्याल रखना पड़ता है जो सदन की मर्यादा होती है. सदन में वैसे ही प्रश्नों को लिया जा सकता है जो लोक महत्व से जुड़े हुए हों, लेकिन इसमें अनुमान, व्यंग, आरोप-प्रत्यारोप और मान हानिकारक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. इसके अलावा किसी व्यक्ति के चरित्र या आचरण पर कोई सवाल नहीं पूछा जा सकता, ना ही किसी प्रकार का व्यक्तिगत दोषारोपण किया जा सकता है.
शून्य काल (Zero Hour) क्या होता है?
शून्य काल, जिसे जीरो अवर भी कहा जाता है. सदन में प्रश्नकाल के बाद 12 बजे से 1 बजे तक के समय को शून्यकाल कहते हैं, यानी प्रश्नकाल के बाद का एक घंटा शून्यकाल होता है. शून्यकाल में पूछे जाने वाले प्रश्न की सूचना पहले से देने की जरूरत नहीं होती है. इसमें तत्काल प्रश्न पूछे जाते हैं. यह वह समय होता है जब सभा में सदस्यों की ओर से तत्काल सार्वजनिक मुद्दे उठाए जा सकते हैं. हालांकि, इसमें भी कुछ शर्त और नियम होते हैं. शून्य काल में किसी भी मुद्दे को उठाने के लिए सुबह 10:00 बजे से पहले सभा के अध्यक्ष को उसे संबंध में नोटिस देना होता है. नोटिस में उस मुद्दे का जिक्र होना जरूरी है, जिसे सदस्य सभा में उठाना चाहते हैं. इसके बाद ही सदन के स्पीकर किसी मुद्दे को उठाने की अनुमति दे सकते हैं या फिर उसे अस्वीकार कर सकते हैं. एक दिन में शून्यकाल के दौरान 20 मुद्दे उठाए जा सकते हैं.
कब हुई शून्यकाल की शुरुआत?
सदन में शून्यकाल का विशेष महत्व होता है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ‘शून्यकाल’ का जिक्र संविधान में नहीं है, फिर भी नागरिकों, मिडिया, सभा के सदस्यों और पीठासन से इसे पूर्ण समर्थन मिला है. शून्यकाल का टर्म 1962 में लाया गया.
शून्य काल के बाद सदन में होती हैं चर्चाएं, लाये जाते हैं विधेयक
प्रश्न काल और शून्य काल के बाद सदन की पहली पाली खत्म हो जाती है. इसके बाद समय आता है भोजनावकाश का, सदन में दोपहर 1.00 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक के लिए भोजनावकाश होता है. उसके बाद सदन की दूसरी पाली शुरू होती है, जो काफी महत्वपूर्ण होता है. प्रश्नकाल और शून्य काल में पूछे गए कई प्रश्नों के बाद दूसरी पाली में नए- नए विषयों पर चर्चा का समय आता है. इसी समय ध्यानाकर्षण की सूचनाएं ली जाती हैं. इसी दौरान सभा पटल पर कई प्रस्ताव लाए जाते हैं. इन प्रस्तावों पर चर्चाएं होती हैं और इसी दौरान नए विधेयक भी पास किए जाते हैं.
सदन में लाए जाने वाले प्रस्ताव और चर्चाएं कई प्रकार के होते हैं, जैसे – स्थगन प्रस्ताव, समापन प्रस्ताव, अल्पावधि चर्चा, अविश्वास प्रस्ताव, विश्वास प्रस्ताव, विशेषाधिकार प्रस्ताव, धन्यवाद प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव आदि.
Also Read: झारखंड विधानसभा मानसून सत्र का दूसरा दिन हंगामेदार, पेश हुआ 11988 करोड़ का अनुपूरक बजट