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का करबो बाबू! वोट देबे खातिर गिरिडीह जाइके खर्चा करे से अच्छा इहां कुछ कमाई हो जातो

बोड़ेया के रहनेवाले मजदूर दिनेश ने कहा कि एक बार बहुत पहले वोट दिये थे, बहुत देर लाइन में खड़ा रहने के बाद वोट दे सके. इसके बाद कोई काम नहीं मिला. आज गांव में वोट था, लेकिन वह वोट देने नहीं गया. कमाने के लिए यहां आ गये हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | May 26, 2024 12:09 AM

विशेष संवाददाता, रांची. सुबह के आठ बजे हैं. स्थान है मोरहाबादी (टीआरआइ के पास). काफी संख्या में महिला-पुरुष मजदूरों की भीड़ है. ये भीड़ कोई शनिवार को हो रहे रांची लोकसभा चुनाव के लिए वोट डालने के लिए नहीं है, बल्कि यह भीड़ काम की तलाश के लिए है. मतदान से बिल्कुल अनजान की तरह महिलाओं के कंधे पर टंगा पर्स या झोला और पुरुषों के हाथों में कुदाल या बहंगी लेकर बैठे हुए आने-जाने वाले लोगों को देख रहे हैं. कोई मोटरसाइकिल या गाड़ी वाले उनके बीच पहुंचते हैं, तो सभी दौड़ कर उसके पास आ जाते हैं. शायद काम मिल जाये. ऐसे ही एक मजदूर देवचंद से पूछा गया कि आप कहां से आये हैं. देवचंद ने कहा उनका घर गिरिडीह में है. जब कहा गया कि आज चुनाव है, क्या आप वोट नहीं दिये. सवाल सुनते ही देवचंद मेरी तरफ मुखातिब होते हैं और कहते हैं का करबो बाबू, वोट देबे खातिर गिरिडीह जाइके खर्चा करे से अच्छा इहां कुछ कमाई हो जातो. इसी तरह बोड़ेया के रहनेवाले मजदूर दिनेश ने कहा कि एक बार बहुत पहले वोट दिये थे, बहुत देर लाइन में खड़ा रहने के बाद वोट दे सके. इसके बाद कोई काम नहीं मिला. आज गांव में वोट था, लेकिन वह वोट देने नहीं गया. कमाने के लिए यहां आ गये हैं. महिला मजदूर सुगंति ने कहा कि का के वोट देबो, काम नय करबो तो पेट कैसे पलातो. वोट देबे से का होतो. वहां बैठे लगभग सभी मजदूर वोट से ज्यादा कमाने की ही बात कर रहे थे. एक ने तो कहा कि आज वोट हौ, कामो नय मिलतो लागत हो. वापस घरे जायके होतो. इन मजदूरों की बातें सुनने के बाद लगा कि आखिर सरकार, प्रशासन व संगठन द्वारा मतदाता जागरूकता के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी गयी, लेकिन इन मजदूरों की बातें सुनने के बाद लगता है कि अभी भी देश में मतदान के प्रति लोगों को जागरूक करने में कहीं न कहीं कमी रह गयी है. सुबह के आठ बजे हैं. स्थान है मोरहाबादी (टीआरआइ के पास). काफी संख्या में महिला-पुरुष मजदूरों की भीड़ है. ये भीड़ कोई शनिवार को हो रहे रांची लोकसभा चुनाव के लिए वोट डालने के लिए नहीं है बल्कि यह भीड़ काम की तलाश के लिए है. मतदान से बिल्कुल अनजान की तरह महिलाओं के कंधे पर टंगा पर्स या झोला और पुरुषों के हाथों में कुदाल या बहंगी लेकर बैठे हुए आने-जाने वाले लोगों को देख रहे हैं. कोई मोटरसाइकिल या गाड़ी वाले उनके बीच पहुंचते हैं, तो सभी दौड़ कर उसके पास आ जाते हैं. शायद काम मिल जाये. ऐसे ही एक मजदूर देवचंद से पूछा गया कि आप कहां से आये हैं. देवचंद ने कहा उनका घर गिरिडीह में है. जब कहा गया कि आज चुनाव है, क्या आप वोट नहीं दिये. सवाल सुनते ही देवचंद मेरी तरफ मुखातिब होते हैं और कहते हैं का करबो बाबू, वोट देबे खातिर गिरिडीह जाइके खर्चा करे से अच्छा इहां कुछ कमाई हो जातो. इसी तरह बोड़ेया के रहनेवाले मजदूर दिनेश ने कहा कि एक बार बहुत पहले वोट दिये थे, बहुत देर लाइन में खड़ा रहने के बाद वोट दे सके. इसके बाद कोई काम नहीं मिला. आज गांव में वोट था, लेकिन वह वोट देने नहीं गया. कमाने के लिए यहां आ गये हैं. महिला मजदूर सुगंति ने कहा कि का के वोट देबो, काम नय करबो तो पेट कैसे पलातो. वोट देबे से का होतो. वहां बैठे लगभग सभी मजदूर वोट से ज्यादा कमाने की ही बात कर रहे थे. एक ने तो कहा कि आज वोट हौ, कामो नय मिलतो लागत हो. वापस घरे जायके होतो. इन मजदूरों की बातें सुनने के बाद लगा कि आखिर सरकार, प्रशासन व संगठन द्वारा मतदाता जागरूकता के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी गयी, लेकिन इन मजदूरों की बातें सुनने के बाद लगता है कि अभी भी देश में मतदान के प्रति लोगों को जागरूक करने में कहीं न कहीं कमी रह गयी है.

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