World Autism Awareness Day: ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे भी कर सकते हैं कमाल, बस प्यार व देखभाल की है जरूरत
World Autism Awareness Day: दो अप्रैल को वर्ल्ड ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है. इसका उदेश्य लोगों को ऑटिज्म बीमारी के प्रति जागरूक करना है.
रांची, लता रानी : हर वर्ष दो अप्रैल को वर्ल्ड ऑटिज्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) मनाया जाता है. इसका उदेश्य लोगों को ऑटिज्म बीमारी के प्रति जागरूक करना है. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को आज भी समाज में काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि वह भी समाज का हिस्सा हैं. इनकी जरूरतें बस अलग हैं, जिन्हें हमें समझने की जरूरत है. वास्तविकता तो यह है कि ये बच्चे आम बच्चों से ज्यादा प्रतिभावान होते हैं, बस उन्हें अवसर देने की जरूरत है. इन्हें तिरस्कार नहीं, बल्कि प्यार दें, क्योंकि उम्मीद अभी बाकी है. इन उम्मीदों को ये खास बच्चे पूरा भी कर रहे हैं.
प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन स्वय ऑटिस्टिक थे और उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज की. ऑटिज्म से पीड़ित भारत के पहले यूथ मॉडल प्रणव बख्शी एफबीबी जीन्स डे अभियान का चेहरा हैं. आज वर्ल्ड ऑटिज्म जागरूकता दिवस पर हमें यह प्रण लेने की आवश्यकता है कि हम भी इन खास बच्चों के साथ चलें और इनको अपने साथ लेकर चलें. जिससे इनका जीवन बेहतर हो. साथ ही इसे लेकर लोगों में भी इसे लेकर जागरूकता आये.
न्यूरो डेवलपमेंटल बीमारी
ऑटिज्म एक न्यूरो डेवलपमेंटल बीमारी है, जिसके लक्षण मुख्य रूप से तीन साल से कम उम्र के बच्चों में ही दिखाई देने शुरू हो जाते हैं. पहले 24 महीने में इसके बारे में पता चल जाता है. यह बीमारी बच्चों की भाषा, इंटरैक्शन, कम्यूनिकेशन स्किल्स और उनके प्रतिक्रिया व्यक्त करनेवाले व्यवहार को प्रभावित करती है. इस बीमारी से पीड़ित बच्चा ना तो अपना इमोशन किसी व्यक्ति को अच्छी तरह एक्सप्रेस कर पाता है और ना ही दूसरे व्यक्ति के एक्सप्रेशंस को समझ पाता है. ऐसे बच्चे अलग रहना अधिक पसंद करते हैं. ऑटिज्म की पहचान प्रथम वर्ष से लेकर पांच वर्ष के बीच हो जाती है.
ऑटिज्म की पहचान कैसे करें
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे शब्द तो बोल पाते हैं लेकिन वाक्य नहीं बोल पाते हैं. अगर छोटे बच्चों में आप कुछ खास तरह के लक्षण देखते हैं, तो पहचान सकते हैं कि उन्हें किस तरह की व्यावहारिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे बच्चे सामनेवाले की आंखों में आंखें डालकर बात नहीं कर पाते. बच्चे आई कॉन्टैक्ट नहीं करते हैं. इस कारण ये बच्चे दूसरों के साथ मेलजोल नहीं कर पाते हैं. ऐसे बच्चे खुद में खोये खोये से रहते हैं. इन बच्चों में लैंग्वेज की भी समस्या होती है. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अपनी जरूरतों को भी बोल कर बताने में असमर्थ होते हैं. ये बच्चे आम तौर पर शब्द तो बोल पाते हैं, लेकिन वाक्य नहीं बोल पाते हैं.
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पहाड़ी टोली में चलाया जा रहा है प्रशिक्षण केंद्र
पहाड़ी टोली में गुंजन गुप्ता के द्वारा सृजन हेल्प मंदबुद्धि मूक बधिर प्रशिक्षण केंद्र चलाया जा रहा है , जिसकी स्थति बहुत अच्छी नही है. यह स्कूल खुले में चल रहा है. गुंजन अपने खर्च पर स्कूल का संचालन कर रही हैं. जहां आप किसी भी ऑटिस्ट एव मंदबुद्धि मूक बधिर बच्चों को प्रशिक्षण दे सकते हैं, वह भी नि:शुल्क. इन दिनों यहां 25 खास बच्चे प्रशिक्षण के लिए आ रहे हैं. जिसमें ऑटिज्म के बच्चे भी शामिल हैं. सृजन हेल्प की संचालिका गुंजन गुप्ता बताती हैं कि खेलने कूदने से इन बच्चों का मानसिक विकास होता है.
बेटी के उपचार के लिए चला रहीं वेलनेस सेंटर
अपनी बेटी की ऑटिज्म को दूर करने के लिए कोकर निवासी देविका मोरहाबादी में आउट्रिट वेलनेस सेंटर का संचालन कर रही है. जहां अपनी बेटी के साथ अन्य ऑटिस्टिक बच्चों के लिए ऑक्यूपेशनल थेरेपी, स्पीच थेरेपी एवं एजुकेशनल का संचालन कर रही हैं. कहती हैं कि मेरी बेटी के अलावा अन्य बच्चों को भी यह सुविधा मिल सके, इसी उदेश्य से 2017 में सेंटर की शुरुआत की. जिससे ऐसे बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं.
प्रतिभाशाली होते हैं ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे
दीपशिखा की प्रिंसिपल गोपिका आनंद ने बताया कि कोरोना काल में सामाजिकता में आयी कमी के कारण दो से पांच वर्ष के बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण बढ़े हैं. यह न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है. इससे निजात पायी जा सकती है. ऐसे कई बच्चे प्रतिभा से भरे होते हैं. जरूरत उनकी प्रतिभा को पहचानने की है. यह सच है कि इनमें एकाग्रता की कमी होती है, पर प्रशिक्षण देने से यह बहुत अच्छा प्रदर्शन करेंगे. दीपशिखा के कई ऑटिज्म बच्चों ने दसवीं की परीक्षा पास की है.
एफबी पर जागरूक कर रही स्तुति
पुरुलिया रोड की स्तुति उर्फ शुभश्री सरकार बीते 30 वर्षों से ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित हैं. आम तौर पर ऑटिज्म से पीड़ित अन्य बच्चे अपने बोलने की क्षमता खो देते हैं, जबकि, समय के साथ और बेहतर देखरेख से बच्चों में बोलने का आत्मविश्वास दोबारा जगाया जा सकता है. शुभश्री इन दिनों फेसबुक के जरिये ऑटिज्म जागरूकता अभियान चला रही हैं. जहां वह अपने अनुभव साझा कर अभिभावकों का मार्गदर्शन कर रही हैं.
अदिति करती हैं बढ़िया पेंटिंग
14 वर्षीया अदिति साढ़े तीन वर्ष की उम्र से ही ऑटिज्म से पीड़ित हैं. ये बहुत अच्छा सिंथेसाइजर बजा लेती हैं. वहीं ड्राइंग भी बहुत खूबसूरती से कैनवास पर उतार लेती हैं. वाकई इन्हें ईश्वर ने खास बनाया है. ये औरों से अलग हैं और कई प्रतिभाओं की धनी हैं. अदिति इन दिनों लंदन स्कूल ऑफ म्यूजिक से सिंथेसाइजर बजाना भी सीख रही हैं. वह अकेले तो बजाती हीं हैं, ग्रुप में भी बहुत बेहतर प्रदर्शन कर रही है.
आर्यन आनंद देंगे दसवीं की परीक्षा
नामकुम निवासी आर्यन आनंद ढाई साल की उम्र से ही ऑटिस्टिक हैं. पहले तो सीआइपी से उनका इलाज चला. इलाज के दौरान उन्हें पता चला कि वह माइल्ड नेचर के हैं. अब आर्यन की आयु 19 साल हो गयी है. बचपन से ही उन्हें ड्राइंग का शौक है. पढ़ाई भी पूरी लगन से करते हैं. इस वर्ष एनआइओएस के माध्यम से दसवीं की परीक्षा देंगे. काफी अच्छा डांस भी करते हैं. उनकी पेंटिंग और डांस देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है कि वह स्पेशल हैं.
सिद्धार्थ खुद कर लेता है अपना काम
शर्मीला विश्वकर्मा कहती हैं कि वह ऑटिज्म से प्रभावित 25 वर्षीय बेटे सिद्धार्थ विश्वकर्मा की मां हैं. उसे ऑटिस्टिक है, यह उन्हें बेटे के पौने तीन साल की उम्र में ही पता चल गया था. उन्हें क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि ये लाइफ लांग ऐसा ही रहेगा. आज से 25 साल पहले लोगों के बीच जागरूकता नहीं थी. हमने जब ऑटिज्म को समझने की कोशिश की, तो ये समझ में आने लगा कि थेरेपी के द्वारा इम्प्रूवमेंट लाया जा सकता है. बेटा आज अपने पर्सनल काम कर लेता है.
ऑटिज्म में थेरेपी की जरूरत पर दें ध्यान
ऑटिज्म के उपचार का लक्ष्य सामाजिक संचार और सामाजिक संपर्क में सुधार करना है. ऑक्यूपेशनल व स्पीच थेरेपी , अर्ली इंटरवेंशन छह वर्ष तक, समस्या व्यवहार के लिए मेडिसिन एवं प्रबंधन. क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ अनुराधा वत्स ने उपचार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि जब आपको पता चल जाये कि आपका बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है, तो बहुत ज्यादा नकारात्मक होने की आवश्यकता नहीं है. वहां उपचार को ध्यान में रखते हुए शीघ्र उपचार और थेरेपी की आवश्कता को पूरा करें. जिससे ऑटिज्म को बहुत हद तक बेहतर कर सकते हैं.