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जज्बे को सलाम: मिले झारखंड के इन दिव्यांग परिवारों से, कर देंगे इंस्पायर

दिव्यांगता को दुर्बलता नहीं समझें. दिव्यांग लोगों के अंदर भी कुछ कर दिखाने का जज्बा रहता है. बस इन्हें प्यार और स्नेह की जरूरत होती है. अगर इनकी प्रतिभा को थोड़ा सहारा और दिशा मिले, तो ये कमाल कर सकते हैं. ऐसे ही विशेष लोगों से हम आज विश्व दिव्यांगता दिवस पर आपको रूबरू करा रहे हैं.

By Lata Rani | December 3, 2023 4:47 PM
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विश्व दिव्यांगता दिवस: रांची के करमटोली के पीड़ी कोचा में किराये के मकान में रहकर पांच सदस्यों का परिवार अपना जीवन गुजार रहा है. परिवार में घर के चार सदस्य पिता, दो बेटी और एक बेटा दिव्यांग हैं. चारों मूक बधिर हैं. न बोल सकते हैं और न सुन सकते हैं. बच्चों की मां यानी कि मालती देवी ही बाल और सुन सकती हैं. ऐसे में पूरा परिवार इशारों में बात करता है. मालती ने अपने पति समेत तीनों बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है. दूसरे के घरों में काम कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं. लगन के सीजन में भी रातभर जग कर शादी पार्टी में काम करती हैं. दोनों बेटियों किरण और श्वेता को पढ़ा रही हैं. वहीं, बेटे को पढ़ा-लिखा कर काबिल बना दिया है. मालती के तीनों दिव्यांग बच्चे पढ़ने में अच्छे हैं. अच्छा नृत्य भी कर लेते हैं. अंग्रेजी भी लिख समझ लेते हैं. पति राधे श्याम तूरी बेरोजगार हैं, लेकिन दिव्यांग जनों का यह परिवार विपरीत परिस्थितियों में भी अपने जीने की हिम्मत को कायम रखे हुए है.

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चित्रकारी से दंग कर देते हैं शुभ्रांशु

नगड़ा टोली निवासी शुभ्रांशु बोस बचपन से ही ऑटिस्टिक हैं. जब वह डेढ़ साल के थे, तो अभिभावकों को पता चला कि वह सामान्य बच्चों की तरह नहीं हैं. अब शुभ्रांशु 22 साल के हैं और अपनी चित्रकारी की प्रतिभा से लोगों को प्रभावित कर देते हैं. बपचन से ही चित्रकारी में अव्वल रहे. खास होते हुए भी सामान्य बच्चों के स्कूल में पढ़ाई की. इंटर तक की पढ़ाई पूरी की. प्रथम डिवीजन से पास भी हुए. ईश्वर ने उन्हें किसी भी पेंटिंग को हूबहू उतारने का वरदान दिया है. वह जो कुछ भी देखते हैं, उसे कैनवास पर उतार देते हैं. चित्रकारी के जरिये अपने मनोभावों को भी कह देते हैं. चित्रकारी में नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट भी रह चुके हैं. झारखंड राजभवन में आयोजित पेंटिंग प्रतियोगिता पिछले छह वर्षों से प्रथम स्थान पाया है. 2019 में आयोजित स्पेशल कैटेगरी में स्टेट लेवल ऑन स्पॉट पेटिंग प्रतियोगिता में जीत हासिल की. शुभ्रांशु को कुकिंग का भी शौक है. हर तरह के लजीज व्यंजन भी बना लेते हैं. प्रभात खबर द्वारा आयोजित किचन किंग प्रतियोगिता में भी वह सम्मानित हो चुके हैं.

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नेत्रहीन होते हुए भी क्रिकेट में जलवा बिखेर रही गीता

हजारीबाग जिले के सलगा गांव में जन्मी और पली बढ़ी गीता महतो नेत्रहीन होते हुए भी क्रिकेट के मैदान में अपना दमखम दिखा रही हैं. इसके साथ ही दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिंदी जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन से ग्रेजुएशन कर रही हैं. अपने परिवार के साथ रांची के गांधीनगर में रहती हैं. गीता ने पहली कक्षा से लेकर दसवीं तक की पढ़ाई संत माइकल ब्लाइंड स्कूल रांची से की. क्रिकेट खेलना भी उसी स्कूल से सीखा. वीमेंस ब्लाइंड क्रिकेट टीम बनने के बाद पहली बार फर्स्ट नेशनल 2019 में हुआ, जिसमें प्लेयर ऑफ द सीरीज बी थ्री कैटेगरी में गीता को प्रदान किया गया. गीता कहती हैं कि वह शुरुआत से ही नेशनल लेवल पर क्रिकेट खेलती आयी हैं. इस बार इंटरनेशनल खेलने का मौका मिल रहा है. इसलिए बहुत खुश हैं. नेपाल के साथ उनका मैच 11 दिसंबर से 15 दिसंबर तक मुंबई में खेला जायेगा. नेपाल वर्ल्ड की बेस्ट टीम है जिसके साथ उन्हें खेलने का मौका मिल रहा है. वह क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन झारखंड को, खासकर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विवेक कुमार सिंह सर, कोच मैनेजर और संत माइकल ब्लाइंड स्कूल को दिल से धन्यवाद देना चाहती हैं. क्योंकि इनसे इस मुकाम तक पहुंचने में बहुत मदद मिली है.

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ब्लाइंड क्रिकेटर सुजीत मुंडा कर रहे नाम रोशन

रांची के धुर्वा स्थित जगन्नाथपुर में रहनेवाले ब्लाइंड क्रिकेटर सुजीत मुंडा अब किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. इन्होंने भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम में शामिल होकर टी-20 विश्व कप खेला और इसमें टीम को जीत भी मिली. सुजीत का परिवार राजधानी रांची के धुर्वा इलाके में झोपड़ी में रहता है और मजदूरी कर घर चलाता है. सुजीत का झुकाव बचपन से खेल की ओर था. खेलने की जिद ने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया है. वर्ष 2014 में सुजीत का झारखंड टीम के लिए चयन हुआ था. झारखंड के लिए खेलते हुए उनका इंडियन टीम में सेलेक्शन हुआ. सुजीत वर्ष 2018 से देश के लिए खेल रहे हैं. वह मैट्रिक की परीक्षा के बाद दिल्ली चले गये थे. यहां भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम को लीड कर रहे रांची के ही गोलू से मुलाकात हुई. उन्होंने सुजीत को इंडियन टीम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. वहां खेलते हुए झारखंड की टीम में चयन हुआ था. उसके बाद सुजीत को नेशनल टीम का हिस्सा बनने का मौका मिला. सुजीत ने देश के लिए पहला मैच वर्ष 2018 में साउथ अफ्रीका के खिलाफ द्विपक्षीय सीरीज में खेला था. उसके बाद 2020 में भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश के बीच खेले गये त्रिकोणीय सीरीज में भी खेलने का मौका मिला. वहीं, दुबई में भारत-पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका के बीच खेले गये त्रिकोणीय सीरीज में भी वह भारतीय टीम का हिस्सा थे.

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रेलवे में टेक्निकल पद संभाल रहे अरुण

रांची के धुर्वा निवासी अरुण कुमार सिंह मुगलसराई में रेलवे की नौकरी कर रहे हैं. रेलवे का टेक्निकल पद संभाल रहे हैं. साथ हीं दिव्यांगों की सेवा भी कर रहे हैं. इन्होंने योगदा से इंटर तक पढ़ाई की. उसके बाद दिल्ली से स्नातक किया. बचपन से ही आंखों की रोशनी कम थी. जैसे-जैसे बड़े होते गये, इनकी आंखों की रोशनी कम होती चली गयी. रेटिना पिंगमोटेंसा के कारण उनकी आंखों की रोशनी खत्म हो गयी. एक समय था कि वह अवसाद के शिकार हो गये थे. लेकिन उन्हें अपनी ताकत को पहचानने में देर नहीं लगी. बेंगलुरु से कंप्यूटर , आइटीआइ का प्रशिक्षण लिया और नौकरी के लिए जी जान लगा दी. रेलवे में नौकरी हासिल की. लक्ष्य फॉर डिफरेंटली एबल संस्था के माध्यम से ई-लाइब्रेरी की स्थापना की, जहां नेत्रहीन पढ़ाई कर सकते हैं. वहीं दिव्यांगों के रोजगार के लिए हेल्पिंग हैंड का गठन किया. इसके माध्यम से दिव्यांगों के रोजगार के लिए कामकाजी दिव्यांग प्रति दिन पांच रुपये दान करते हैं.

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