World Environment Day 2022: रांची शहर से हर दिन निकलता है 500 टन कचरा, ऐसे होगी करोड़ों की कमाई
World Environment Day 2022: रांची नगर निगम के आंकड़े के मुताबिक शहर से हर दिन लगभग 500 टन कचरा निकलता है. यह गीला सूखा फॉर्म में निकलता है. नगर निगम की ओर से इस कचरे को शहर से 15 किमी दूर झिरी में ले जाकर डंप कर दिया जाता है. झिरी की अब पहचान कचरे के पहाड़ के रूप में होने लगी है.
World Environment Day 2022: झारखण्ड की राजधानी रांची तमाम प्रयासों के बाद भी कचरा प्रबंधन के मामले में सफल नहीं हो सकी है. शहर के भीतर गंदगी तो है ही शहर के बाहर एक बड़ी आबादी गंदगी और कचरे के ढेर के बीच जीवन गुजार रही है. जिस कचरे के ढेर को देख कर हम नाक भौं सिकोड़ कर निकल जाते हैं अगर उसका सही तरीके से प्रबंधन कर लिया जाये तो वहीं कचरा करोड़ों की कमाई दे सकता है. रांची शहर से निकलने वाला सैकड़ों टन कचरा करोड़ो की कमाई और रोजगार का जरिया भी बन सकता है.
औसतन निकलता है 500 टन कचरा
रांची नगर निगम के आंकड़े के मुताबिक शहर से हर दिन लगभग 500 टन कचरा निकलता है. यह गीला सूखा फॉर्म में निकलता है. नगर निगम की ओर से इस कचरे को शहर से 15 किमी दूर झिरी में ले जाकर डंप कर दिया जाता है. झिरी की अब पहचान कचरे के पहाड़ के रूप में होने लगी है. नगर निगम प्रबंधन की और से दर्जनों बार इस कचरे से इस्तेमाल और इसके नष्ट करने को लेकर प्लान बनाया गया, पर एक दशक से अधिक समय बीत जाने पर भी कोई कदम नहीं उठाया जा सका. जबकि रांची नगर निगम इंदौर से लेकर बेंगलुरु नगर निगम तक कचरा प्रबंधन और घरों से कचरा उठाव के तारीखे सीख चुका है.
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खाद बना कर करोड़ों की हो सकती है कमाई
रांची नगर से हर दिन निकलने वाले 500 टन कचरा में से लगभग 60 फीसदी हिस्सा ऐसा होता है जो सड़ने वाला होता है. एक्सपर्ट के मुताबिक अगर केवल शहर से निकलने वाले सड़ने वाले कचरे का इस्तेमाल सही तरीके से कर लिया जाये तो उसका खाद बना कर करोड़ों की कमी की जा सकती है. दिव्यायन कृषि विज्ञानं केंद्र रांची के वरीय वैज्ञानिक डॉ अजित कुमार सिंह बताते हैं कि रांची शहर में नौकरी पेशा करने वाले लोग जरुर रहते हैं पर शहर से सटे इलाके की बड़ी आबादी आज भी अधिकांश खेती ही करती है.ऐसे में नगर निगम चाहे तो गलने वाले कचरे से खाद बना कर कमाई कर सकता है. और गलने वाले कचरे से खाद बनाने के लिए तकनीक की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है. नगर निगम शहर के कचड़े को जमा कर रहा है वहीं से खाद बना कर आय कर सकता है. नाडेप (NADEP) विधि से कई तरह के खाद बना सकती है.
मिट्टी की बढ़ेगी उर्वरता
डॉ अजित कुमार सिंह बताते हैं कि ऐसा करने से गंदगी में भी कमी आयेगी और नेचुरल खाद के इस्तेमाल से मिटटी की उर्वरता भी बढ़ेगी. इन गलने वाले कचरे से केचुआ खाद, कंपोस्ट खाद आदि बनाया जा सकता है. खेती के दौरान जब यह खाद मिट्टी में पड़ेगा तब मिट्टी की जान वापस आ जाएगी. उन्होंने बताया कि इन दिनों नेचुरल खेती का चलन बढ़ा है. ऐसे में इस तरह के नेचुरल खाद की डिमांड भी खूब हो रही है. नगर निगम इस डिमांड को अवसर के रूप में ले सकती है. उन्होंने बताया कि केवल नगर निगम ही नहीं कचरे का प्रबंधन आम आदमी भी अपने घर से कर सकता है. आज शायद हो कोई ऐसा घर होगा जहां से गलने वाले कचरे नहीं निकलते होंगे. ऐसे में व्यक्तिगत रूप से भी घर में खाद बनाया जा सकता है. जिसका इस्तेमाल किचन गार्डन या पोषण वाटिका में किया जा सकता है.
Posted By : Guru Swarup Mishra