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विश्व वानिकी दिवस : झारखंड की 29% भूमि पर जंगल, मानव-हाथी द्वंद्व में 5 साल में 462 से अधिक लोगों की मौत

राज्य गठन के समय कुल भौगोलिक एरिया के करीब 29.27 फीसदी में जंगल था. आज भी वही स्थिति है. 2021 में भी 29.26 फीसदी एरिया में जंगल पाया गया. यह दावा फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में किया जा रहा है. इसके बाद भी मानव और जंगली जानवरों के बीच द्वंद्व हो रहा है.

रांची, मनोज सिंह. झारखंड में मानव और जानवरों के बीच टकराव घटने का नाम नहीं ले रहा है. आये दिन कहीं ना कहीं से हाथी या अन्य जंगली जानवरों की चपेट में आने से जान या माल के नुकसान की खबर आती है. हाथी जंगलों से बाहर आ जा रहे हैं. गांव में घुसकर ग्रामीणों के सामान को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ऐसा तब हो रहा है, जब झारखंड में जंगल की स्थिति 20 साल पहले जैसी थी, वैसी ही है.

राज्य गठन के समय कुल भौगोलिक एरिया के करीब 29.27 फीसदी में जंगल था. आज भी वही स्थिति है. 2021 में भी 29.26 फीसदी एरिया में जंगल पाया गया. यह दावा फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में किया जा रहा है. इसके बाद भी मानव और जंगली जानवरों के बीच द्वंद्व हो रहा है.

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पिछले पांच साल में 462 लोगों की मौत मानव और जंगली जानवरों के बीच टकराव के कारण हुई है. केवल पिछले वित्तीय वर्ष में 133 से अधिक लोगों को हाथियों ने मार डाला था. विशेषज्ञ मानते हैं कि झारखंड में ज्यादा मौत हाथियों से टकराव के कारण हो रही है. हाथियों को डिस्टर्ब किया जा रहा है. इसका असर दिख रहा है.

12 दिन में 16 लोगों को मार दिया था हाथियों ने

झारखंड में फरवरी में केवल 12 दिनों में 16 लोगों की मौत हाथियों के कारण हो गयी थी. पूरी घटना पांच जिले में हुई थी. इसमें एक हाथी द्वारा घटना को अंजाम दिये जाने की बात कही गयी थी. इसे लेकर राजधानी के इटकी में जिला प्रशासन को निषेधाज्ञा लागू करनी पड़ी थी.

राज्य के मुख्य वन्य प्राणी प्रतिपालक शशिकर सामंता के अनुसार, राज्य में हाथियों के साथ जो लोगों का टकराव हो रहा है, उसको रोकने के लिए प्रयास हो रहा है. वन प्रमंडल पदाधिकारियों की एक टीम बनाकर जांच करायी गयी थी. कारण पता चल गया है. वैसे हाथी पर नजर रखी जा रही है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

वन विभाग के पूर्व सलाहकार डीएस श्रीवास्तव कहते हैं कि एफएसआइ की रिपोर्ट को चुनौती तो नहीं दे सकते हैं, लेकिन वन घट रहे हैं. क्षेत्रफल नहीं घट रहा है. रिकॉर्ड में वही वन दिखाया जाता है, जितना पहले था. घने जंगल घट रहे हैं. एफएसआइ की रिपोर्ट सेटेलाइट आधारित होती है.

इसकी जमीनी सच्चाई पता नहीं की जाती है. यही कारण है कि जंगल घट रहा है. जानवर जंगलों से बाहर आ जा रहे हैं. पालतू जानवर खाने की खोज में जंगलों में जा रहे हैं. यह भी टकराव का कारण है. जंगलों को बचाने व बढ़ाने के लिए समाज को आगे आना होगा.

लोगों ने जानवरों के रूट को विकास के कारण नुकसान पहुंचाया

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक संजीव कुमार कहते हैं कि धरती पर आम लोगों का दबाव बढ़ता जा रहा है. 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में 411 व्यक्ति प्रति किमी घनत्व था. यह अब और बढ़ गया होगा. लोगों ने जानवरों के रूट को विकास के कारण नुकसान पहुंचाया है. इस कारण जानवर सड़कों पर आ जा रहे हैं. तालमेल बैठाने की जरूरत होगी.

झारखंड में वन क्षेत्र

वन वर्ष – कुल एरिया – घना जंगल

2021- 29.26% – 2601 वर्ग किलोमीटर

2019- 28.10% -2603 वर्ग किलोमीटर

2017- 28.09% -2508 वर्ग किलोमीटर

2015- 29.45% – 2588 वर्ग किलोमीटर

2013- 29.45% -2587 वर्ग किलोमीटर

2011- 28.09% -2590 वर्ग किलोमीटर

2009- 29.27% -2590 वर्ग किलोमीटर

2005- 29.27% -2544 वर्ग किलोमीटर

2003- 28.50% -2544 वर्ग किलोमीटर

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