World Heritage Day 2023: झारखंड में कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं, जो अपना इतिहास कर रही बयां, जानें यहां
World Heritage Day 2023: हर साल 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है. झारखंड में भी विश्व धरोहर को समेटे अपना इतिहास बयां कर रहा है. राज्य के तीन स्मारकों को राज्य संरक्षित स्मारक का दर्जा प्राप्त है. वहीं, 13 स्मारक ऐसे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है.
रांची, अभिषेक रॉय : आज विश्व धरोहर दिवस है. झारखंड में कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं, जो वर्षों से अपने अंदर न जाने कितने किस्से और कहानियों को संजोए हुए हैं. इन स्मारकों और स्थलों को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. ऐसी विरासतों को संभाले रखने के लिए ही विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है, जिसका इस वर्ष का थीम है विरासत परिवर्तन.
इस वर्ष का थीम विरासत परिवर्तन
यूनेस्को ने इस वर्ष विश्व धरोहर दिवस का थीम दिया है : विरासत परिवर्तन. इसके तहत आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया रांची सर्किल इन विरासतों को संजो कर रखने में जुटा है. कई जर्जर धरोहर की मरम्मत पूरी हो चुकी है. खंडहर और उजाड़ में बदल चुके किले, मंदिर और मस्जिद को दोबारा मौलिक रूप देने में लगे हैं. इससे आनेवाले दिनों में राज्य के कई जिलों में नये पर्यटन स्थल विकसित हो सकेंगे.
राज्य में 16 धरोहरों को किया जा रहा संरक्षित
झारखंड भी विश्व धरोहर को समेटे अपना इतिहास बयां कर रहा है. राज्य के तीन स्मारकों को राज्य संरक्षित स्मारक का दर्जा प्राप्त है. वहीं, 13 स्मारक ऐसे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है.
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राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक : हाराडीह मंदिर समूह (रांची), जामा मस्जिद राजमहल, बारादरी साहेबगंज, प्राचीन शिव मंदिर लोहरदगा, महल एवं मंदिर समूह नवरत्नगढ़ (गुमला), प्राचीन सरोवर एवं मंदिर के अवशेष बेनीसागर (पश्चिमी सिंहभूम), प्राचीन किले के अवशेष पूर्वी सिंहभूम, पुरातात्विक स्थल ईटागढ़ (सरायकेला-खरसावा), पुरातात्विक असुर स्थल हेंसा (खूंटी), पुरातात्विक असुर स्थल कुंजला (खूंटी), पुरातात्विक असुर स्थल खूंटी टोला, असुर पुरास्थल सारिदकेल (खूंटी), पुरातात्विक असुर स्थल कठर टोली (खूंटी).
राज्य संरक्षित स्मारक : जगन्नाथपुर मंदिर, पलामू किला और मलूटी मंदिर समूह दुमका
राज्य की ऐतिहासिक धरोहरों में महापाषाणिक समाधियों (मेगालिथ) की चर्चा देशभर में रही है. इसके अलावा विभिन्न जिलों में मौजूद किले, मंदिर समूह और मस्जिद 10वीं शताब्दी से लेकर 400 वर्ष पुराने इतिहास के साक्षी हैं. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया रांची सर्किल ने 2021-22 में कई धरोहरों को संरक्षित किया है.
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महल और मंदिर समूह नवरत्नगढ़ गुमला
400 वर्ष पहले सिसई गुमला नाग वंशियों की राजधानी हुआ करता था. इस क्षेत्र में कई बावरी, मठ, मंदिर और भवन झारखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के साक्षी हैं. 2021-2022 में 100×50 मीटर के दायरे में जमींदोज कॉम्प्लेक्स को चिह्नित किया गया. केंद्रीय भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की अनुमति के बाद अनवेषण, उत्खनन और मरम्मतीकरण का काम किया गया. इस कारण विभिन्न भवनों की वास्तु संरचना अब मूल आकार लेने लगी है.
प्राचीन शिव मंदिर लोहरदगा
खेकपरता स्थित प्राचीन शिव मंदिर की मरम्मत का काम शुरू हुआ. पत्थर से बने मंदिर लाइकेन से नष्ट हो गये थे, जिन्हें केमिकल ट्रीटमेंट से मूल रूप में लाया जा रहा है.
बेनीसागर पश्चिमी सिंहभूम
मजगांव स्थित इस ऐतिहासिक धरोहर को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है. पर्यटकों के लिए सुविधाएं भी बढ़ायी जा रही हैं.
पत्थलगढ़ा चतरा
2022-23 में चतरा के पत्थलगढ़ा में महापाषाणिक समाधियां (मेगालिथ) पुरातात्विक उत्खनन के दौरान पायी गयी हैं. इन्हें चिह्नित कर संरक्षित किया जा रहा है.
जामा मस्जिद राजमहल
हदफ राजमहल स्थित जामा मस्जिद और बारादरी के रखरखाव का काम जारी है. हाल ही में मस्जिद के गुंबद की मरम्मति का काम पूरा हुआ है.
सीतागढ़ा हजारीबाग
एएसआइ रांची सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ राजेंद्र देहुरी के निर्देशन में 2022 में बहरनपुर हजारीबाग में सीतागढ़ा पहाड़ी के पास पुरातात्विक उत्खनन का काम हुआ. यहां प्राचीन बौद्ध मठ पाये गये हैं. वज्रयान शाखा की मूर्तियां, मंदिर व मठ के अवशेष मिले. प्राचीन मूर्तियों पर अभिलेख मिले, जो मिथिलाक्षर और संस्कृत भाषा में हैं.
धरोहर का संरक्षण आम लोगों की भी जिम्मेदारी
विरासत के संरक्षण की जिम्मेदारी आम लोगों की भी है. समान सामाजिक सहभागिता से इन्हें संरक्षित रखा जा सकता है. राज्य के कई शैक्षणिक संस्थानों में पुरातत्वविद की पढ़ाई हो रही है. राज्य सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए, ताकि युवाओं में रुचि बढ़े.
– डॉ राजेंद्र देहुरी, अधीक्षण पुरातत्वविद
संविधान का निहित विषय में है पुरातत्व
पुरातत्व संविधान की समवर्ती सूची में निहित विषय है. प्राचीन धरोहर को बचाये रखने को लेकर कई कानून बनाये गये हैं. एंटिक के शौकीन लोगों को भी इसका पालन करना चाहिए.
– डॉ नीरज मिश्रा, सहायक अधीक्षक पुरातत्वविद