21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

World Indigenous Day 2022: रांची में चल रहा नेटिव जतरा, जहां के 70 स्टॉल्स करा रहे आदिवासी कल्चर से अवगत

झारखंड की राजधानी रांची का बहुबाजार संत पॉल्स स्कूल मैदान दो साल बाद गुलजार है. यहां आयोजित हो रहा है दि नेटिव जतरा. यह दो दिनों का ऐसा आयोजन है, जो आदिवासियों की ओर से आदिवासियों को फोकस करते हुए आयोजित की गयी है. यह एक मेला है, जिसे झारखंड इंडिजिनश पिपुल फोरम की ओर से आयोजित किया गया है.

World Indigenous Day 2022 News: झारखंड की राजधानी रांची का बहुबाजार संत पॉल्स स्कूल मैदान दो साल बाद गुलजार है. यहां आयोजित हो रहा है दि नेटिव जतरा. यह दो दिनों का ऐसा आयोजन है, जो आदिवासियों की ओर से आदिवासियों को फोकस करते हुए आयोजित की गयी है. यह एक मेला है, जिसे झारखंड इंडिजिनश पिपुल फोरम की ओर से आयोजित किया गया है. यहां विभिन्न तरह से 70 स्टॉल लगाये गये हैं, जो आदिवासी समाज की संस्कृति, खानपान, पहनावा, गीत-संगीत और साहित्य से अवगत करा रहा है.

ट्राइबल फैशन शो, लाइव म्यूजिक शो सहित हुए कई रोचक कार्यक्रम

नेटिव जतरा के दूसरे चरण में आज रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. लाइव म्यूजिक शो आयोजित किया गया. इसके अलावा आदिवासी मुद्दों पर बनी डक्यूनमेंट्री फिल्मों की प्रस्तुति की गई. जतरा में 70 स्टॉल लगाए गए हैं. जिसमें पारंपरिक खानपान के अलावा पारंपरिक वेशभूषा, सजावट के सामान, घरेलू सामग्री सहित अन्य मनोरंजक सामग्री बिक्री की जा रही है. मंगलवार को सुबह नौ बजे से शुरू हुई है, जो देर रात नौ बजे तक चलेगी. इस नेटिव जतरा में रंगारंग सांस्कृतिक-पारंपरिक नृत्य कार्यक्रम होंगे इसके अलावा ट्राइबल फैशन शो, लाइव म्यूजिक शो सहित अन्य रोचक कार्यक्रम होने वाले हैं.

परिचर्चा में हुई आदिवासियों के डेवलपमेंट की बात

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी आवाज समिट के रूप में हुई परिचर्चा की गयी. जतरा के पहले दिन इस परिचर्चा का आयोजन झारखंड इंडीजिनियस पीपुल्स फोरम, आदिवासी लाइव्स मेटर, ट्राइब ट्री और सिकरिट ने संयुक्त रूप से की गई. परिचर्चा में आदिवासियों के विभिन्न विषयों को जोड़ते हुए उनके डेवलपमेंट की बात कही गयी. वक्ताओं ने आदिवासियों की भाषा का जीवित रखने के साथ उनके डेवलपमेंट की बात की गयी.

जानिए भाषाओं की जीवंतता पर वक्ताओं ने क्या कहा

परिचर्चा में हैदराबाद यूनिवर्सिटी से आए डॉ सुरेश जगनाधम ने कहा कि भाषा नहीं बोलने से भाषा का पतन होता है. इसलिए भाषा को प्रचलन में रखने के लिए दैनिक जीवन में उपयोग में लाना है. नॉर्थ इस्ट से आयी पद्मश्री पैक्ट्रेसिया मुखीम ने कहा कि भाषा हमलोगों की आत्मा है. साथ ही भाषा आपकी-मेरी पहचान है. भाषा अभिव्यक्ति का तरीका भी है. साहित्यकार वंदना टेटे ने कहा कि राज्य सरकार की उदासीनता के कारण आदिवासी भाषाओं को अब तक स्थान नहीं मिल पाया है. अपनी मातृ भाषा में लिखना-पढ़ना आज की जरूरत है. साथ ही मातृ भाषा को अपने व्यवहार में लाना समय की मांग भी है.

पत्रकारिता के लिए स्थानीय भाषा की जानकारी जरूरी

सिक्किम से आए करमा पालजोर ने कहा कि आप जिस क्षेत्र में पत्रकारिता कर रहे हैं, वहां की स्थानीय भाषाओं को जानना बहुत जरूरी है. तभी आप सभी मायनों में उस क्षेत्र के मुद्दों, समस्याओं व विशेषताओं को अपने खबरों में लिख सकते हैं. पत्रकारिता के दौरान स्थानीय भाषाओं से अभिनज्ञ रहना. उस क्षेत्रों के मुद्दों की रिर्पोटिंग में बेमाइनी होगी. उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी भाषा पहचान को लेकर चिंतित नहीं है. आदिवासी गानों में मौसम का विज्ञान छिपा रहता है. किस मौसम में क्या करना है या नहीं, आदिवासी गीतों-संगीतों में देखने को मिल जाता है.

मातृभाषा को जानना जरूरी

परिचर्चा में भाग लेने आये नागालैंड से आई फेनजीन कोनयाक ने कहा कि अपनी मातृ भाषा को जानना जरूरी है. मौखिक परंपरा के कारण आदिवासी भाषाएं बची हुई. घर में दादा, दादी, नाना-नानी चलते फिरते जिंदा लाइब्रेरी होते हैं, इसलिए उनसे अपनी भाषा, कहानियों,परंपराओं को सीखने के लिए बैठना चाहिए. मौके पर शिखा मंर्डी, जेराम जेराल्ड कुजूर, अश्विनी पंकज, दीपक बाड़ा, प्रोफेसर अरुण तिग्गा, बिजू टोप्पो सहित कई लोग मौजूद थे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें