पूजा सिंह
World Literacy Day: हर साल 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है. यह दिन निरक्षरता को समाप्त करने के लिए प्रेरित करता है. हालांकि चिंता की बात है कि झारखंड में अभी भी करीब 43 लाख लोग निरक्षर हैं. ऐसे लोगों के लिए प्रख्यात नाटककार, कलाकार और गीतकार सफदर हाशमी की कविता पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करनेवालों…प्रेरित करती है. इधर सुखद बात यह है कि समाज में कई ऐसे संस्थान और लोग हैं, जो समाज को शिक्षा के प्रति जागरूक करने में जुटे हैं. साक्षर बनाकर अात्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. यूनेस्को ने 1965 को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने का निर्णय लिया था. इस वर्ष का थीम है कि ट्रांसफॉर्मिंग लिटरेसी लर्निंग स्पेस. यह संदेश देना कि साक्षरता का अर्थ सिर्फ पढ़ना-लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है, बल्कि जीने के लिए भी साक्षरता बेहद महत्वपूर्ण है.
बंद है साक्षरता अभियान
देशवासियों को साक्षर बनाने के लिए साक्षर भारत अभियान (Saakshar Bharat Abhiyan) चलाया जा रहा था, जो 31 मार्च 2018 से बंद है. जब यह अभियान बंद हुआ, उस वक्त झारखंड में लगभग 43 लाख लोग निरक्षर थे. वर्ष 2020-21 में निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने के लिए पढ़ना-लिखना अभियान शुरू किया गया, लेकिन कोरोना के कारण अभियान रोक दिया गया. इस अभियान के तहत एक साल में दो लाख लोगों को साक्षर बनाने का लक्ष्य था. इसके अलावा संपूर्ण साक्षरता अभियान, उत्तर साक्षरता अभियान, सतत शिक्षा अभियान, साक्षर भारत अभियान 31 मार्च 2018 से पूरी तरह से बंद है.
जल्द शुरू होगा नव भारत साक्षर अभियान
राष्ट्रीय स्तर पर निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने के लिए संचालित कार्यक्रम साक्षर भारत अभियान वर्ष 2018 में बंद हो गया. इसके बाद से राज्य में वर्ष 2019-20 में साक्षर झारखंड के नाम से अभियान शुरू करने का प्रस्ताव स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने तैयार किया था, लेकिन यह शुरू नहीं हो हुआ. कोविड-19 में 2020-21 के दौरान पढ़ना-लिखना अभियान पूरी तरह प्रभावी नहीं हो सका. फिर केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2022 से नव भारत साक्षर अभियान शुरू करने का निर्णय लिया. वर्ष 2030 तक देश को पूर्ण साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया है. इसमें 15 या उससे अधिक आयु वर्ग के लोगों को साक्षर बनाया जाना है. इस अभियान में महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक वर्ग पर विशेष ध्यान दिये जाने है. वैसे जिला जहां महिला साक्षरता दर 60 फीसदी से कम है, उन जिलों को प्राथमिकता दी जानी है.
2007 से बड़े-बुजुर्गों को साक्षर बनाने में जुटे हैं पांच दोस्त
तिज्ञा संस्था 2007 से बड़े-बुजुर्गों को साक्षर बनाने में जुटी है. साथ ही बच्चों को भी शिक्षित करने में अहम भूमिका निभा रही है. संस्था के सचिव अजय कुमार ने बताया : हम पांच दोस्तों ने ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद बड़े-बुजुर्गों को पढ़ाना शुरू किया. उनके आग्रह पर ड्रॉप आउट बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की पहल शुरू की. वर्तमान में 100-130 बच्चे स्पाॅन्सरशिप के तहत अपनी पढ़ाई पूरी कर पा रहे हैं. साथ ही सृजन बचपन कार्यक्रम के माध्यम से 1200 बच्चों को साक्षर के साथ सही तरीके से जीवन जीने की राह भी दिखा रहे हैं. 10 सरकारी स्कूलों में लाइब्रेरी, बाल संसद और अक्षर ज्ञान जैसे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. संस्था के को-फाउंडर चंदन सिंह रिलायंस व वोडाफोन जैसी कॉरपोरेट कंपनियों की नौकरी छोड़ कर संस्था के माध्यम से बच्चों को शिक्षित करने में जुटे हैं.
शिक्षा की अलख जगा रही ज्ञान विज्ञान समिति
ज्ञान विज्ञान समिति सामुदायिक शिक्षण केंद्र के माध्यम से बच्चों और बड़ों को शिक्षा के लिए जागरूक कर रही है. समिति के शिवशंकर प्रसाद ने बताया कि यह पहल कोरोना काल से शुरू की गयी है़ वर्तमान में पलामू, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, दुमका में वॉलिंंटियर के माध्यम से बच्चों और बड़े-बुजुर्गों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जा रहा है़ यह प्रयास खासकर बड़े-बुजुर्गों को साक्षर बनाने पर केंद्रित है.
नौवीं क्लास के समीर ने मां को सिखाया लिखना
बूटी मोड़ के रहनेवाले समीर मालतो नौवीं कक्षा के छात्र हैं. वह भी साक्षरता के लिए अलख जगा रहे हैं. खास बात है कि इसकी शुरुआत अपने घर से की है़ कोरोना काल में अपनी मां को साक्षर बनाया. अब उनकी मां रूत मालतो (अस्पताल में स्वीपर हैं) हस्ताक्षर करने लगी हैं. समीर ने कहा कि मां पढ़ी लिखी नहीं थी. इसलिए स्कूल व अन्य जगहों पर हस्ताक्षर नहीं कर पाती थी. यही कारण है कि कोरोना काल में मां को शिक्षित करने का संकल्प लिया. जब वह काम से लौटती तो, उसे अक्षर के बारे में बताता. नाम लिखना सिखाया. अब मां मोबाइल पर नंबर भी डायल करती है.
बच्चों ने सिखाया पढ़ना-लिखना : रोशनी
मेकन गेट के समीप भूसुर कोचा की रोशनी देवी अब हस्ताक्षर के साथ-साथ अखबार भी पढ़ लेती हैं. वह खुद को साक्षर बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. इस सफर में उनके बच्चों का अहम योगदान रहा है. वह बताती हैं : गांव में पढ़ाई-लिखाई की सुविधा नहीं मिली, इसलिए पढ़ नहीं सकी. इस कारण हस्ताक्षर की जगह अंगूठा लगाती़ बच्चों के स्कूल में भी अंगूठा लगाना पड़ता था. हालांकि उन्हें पढ़ने-लिखने का काफी शौक था़ इस सपने को अब उनके बच्चे पूरा कर रहे हैं. हस्ताक्षर करना सीखा चुके हैं. रोशनी कहती हैं : विश्वास है कि एक दिन बच्चे अंग्रेजी पढ़ना भी सीखा देंगे.
रांची की बेटी ने मंडला को बनाया पूर्ण साक्षर
राजधानी में पली-बढ़ी भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हर्षिका सिंह ने मध्य प्रदेश के मंडला जिला को पूर्ण साक्षर बना दिया है. वह वहां कलेक्टर के रूप में पदस्थापित हैं. इसी साल स्वतंत्रता दिवस के दिन मंडला जिले को पूर्ण साक्षर होने की घोषणा की गयी है. वह दो वर्षों से महिला ज्ञानालय और निरक्षरता से आजादी अभियान चला रही थीं. 2020 में मंडला जिला में दो लाख व्यक्ति साक्षर नहीं थे. फिर 615 सामाजिक चेतना केंद्र की स्थापना कर दो लाख लोगों को साक्षर किया. हर्षिका सिंह बिशप वेस्टकॉट नामकुम और संत जेवियर्स कॉलेज की छात्रा रही हैं. वह 2010 बैच की आइएएस अधिकारी है. पहले झारखंड कैडर में ही थीं, लेकिन शादी के बाद मध्य प्रदेश कैडर में चली गयीं.