World Mental Health Day: जीवनशैली में हो रहा बदलाव तनाव की बड़ी वजह, झारखंड के लोग भी इससे अछूते नहीं

महिलाएं अपनी ज़िम्मेदारियों, रिश्तों और परिवार की अधिक परवाह करती हैं. ज्यादा भावुक और संवेदनशील होती हैं, इसलिए तनाव भी जल्दी लेती हैं. दूसरी ओर नौकरीपेशा महिलाओं को वर्कप्लेस के बढ़ते दबाव के कारण भी तनाव का सामना करना पड़ता है. इस वजह महिलाओं में गुस्से और चिड़चिड़ेपन की समस्या आ रही है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 10, 2023 8:31 AM

रांची, मनोज सिंह‍ : भागदौड़ भरी जिंदगी ने जीवन में तनाव भर दिया है. यह तनाव बीमारी का रूप लेता जा रहा है. मनोरोग एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. झारखंड के लोग भी इससे अछूते नहीं हैं. इसका खुलासा रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) के अध्ययन में भी हुआ है. संस्थान ने राज्य गठन के लेकर वर्ष 2020 तक इलाज के लिए आये मरीजों पर एक विस्तृत अध्ययन कराया है. इसमें कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये हैं. पिछले 20 वर्षों में इलाज के लिए आनेवाले कुल मरीजों की तुलना में पुरुषों का आंकड़ा घटा है. वर्ष 2000 में कुल मरीजों में 72.87 मरीज पुरुष होते थे, जो 2020 में करीब 66 फीसदी तक पहुंच गये. वहीं महिला मरीजों के आंकड़ों में करीब सात फीसदी की वृद्धि हुई है.

विशेषज्ञ इस आंकड़े का दो रूप में विश्लेषण करते हैं. उनका कहना है कि मनोचिकित्सा को लेकर जो भ्रांतियां थीं, वह कम हुई हैं. इस कारण महिलाएं अब इलाज के लिए मनोचिकित्सा संस्थान तक आने लगी हैं. दूसरा तथ्य यह भी है कि महिलाओं में तनाव बढ़ा है. उनकी जीवनशैली भी बदली है. यह बात भी सही है कि पिछले 20 वर्षों में संस्थान में इलाज के लिए आनेवाले लोगों की संख्या में करीब सात गुणा वृद्धि हुई है. वर्ष 2000 में इलाज के लिए 15126 मरीज आये थे, लेकिन 2020 में यह संख्या एक लाख से पार हो गयी है. यह अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ अमूल रंजन सिंह की देखरेख में पीएचडी स्कॉलर रीना मिंज ने किया है.

ऐसे करें खुद को दुरुस्त

  • मानसिक स्वास्थ्य सेवा को दुरुस्त करने की जरूरत

  • वैसे सेक्टर को चिन्हित करें, जहां ज्यादा मामले आ रहे हैं

  • जिला स्तर पर मनोरोग के इलाज की व्यवस्था हो

  • नशा मनोरोग का बड़ा कारण है, इस पर रोक की योजना बने

  • इस पेशे से जुड़े लोगों के क्षमता विकास पर जोर देना होगा

  • पारिवारिक व्यवस्था को दुरुस्त करने की है जरूरत

  • मानसिक रोग का इलाज करनेवाले पेशेवरों की संख्या बढ़ानी होगी

  • अलग-अलग शॉर्ट टर्म कोर्स चलाये जायें

अधिकतर मरीजों की शिक्षा प्राथमिक

अध्ययन के अनुसार 20 वर्ष पहले इलाज कराने आनेवाले ज्यादा मरीज अशिक्षित होते थे. यानी कुल मरीजों में इनका आंकड़ा करीब प्रतिशत 57 था. वहीं 2020 में सबसे अधिक इलाज कराने आनेवाले मरीजों की शिक्षा प्राथमिक रही है, जिनका प्रतिशत करीब 52 रहा. वहीं करीब 17 फीसदी अशिक्षित और 12 फीसदी इंटर पास इलाज के लिए पहुंचे. करीब दो फीसदी स्नातक और तीन फीसदी प्रोफेशनल शिक्षा वाले भी 2020 में इलाज लिये आये.

शहर में पुरुष हो रहे ज्यादा मनोरोगी

शहरी क्षेत्र में मनोरोगियों की संख्या बढ़ रही है. वर्ष 2000 में कुल मरीज में करीब 57.3 शहरी पुरुष थे, जो 2020 में बढ़कर 64.42 फीसदी हो चुका है. वहीं, शहरी क्षेत्र से इलाज के लिए आनेवाली महिलाओं का प्रतिशत गिरा है. वर्ष 2000 में कुल मरीज में 42.7 फीसदी शहरी महिलाएं होती थीं, जो अब 36.88 फीसदी तक पहुंच गयी हैं. वहीं ग्रामीण क्षेत्र में वर्ष 2000 में कुल मरीज में महिलाओं का आंकड़ा 16 से बढ़कर 31.9 फीसदी हो चुका है.

मध्यम आय वर्ग वालों पर ज्यादा दबाव

अध्ययन से पता चलता है कि मध्यम आय वर्ग वाले ज्यादा दबाव में हैं. आर्थिक कारणों से उनकी मानसिक परेशानी ज्यादा बढ़ रही है. 20 वर्ष पहले इलाज के लिए आनेवालों में मध्यम आय वर्ग के मात्र 36 फीसदी ही लोग थे. अब यह बढ़कर करीब 64 फीसदी हो चुका है. वहीं निम्न आय वर्ग वाले मात्र 35 फीसदी मरीज ही इलाज के लिए आये थे. उच्च आय वर्ग वाले मरीजों का आंकड़ा सिर्फ एक प्रतिशत था. विशेषज्ञ मानते हैं कि मध्य आय वर्ग पर कई तरह के दबाव हैं, जिसका असर अध्ययन में दिखता है.

इलाज के लिए 40 से 60 वर्ष की महिलाएं ज्यादा आयीं

संस्थान में 20 वर्षों में इलाज के लिए सबसे ज्यादा 40-60 वर्ष की उम्र की महिलाएं आयीं. वर्ष 2000 में इस उम्र सीमा की मात्र 13 फीसदी महिलाएं ही इलाज के लिए आयी थीं, जो 2020 में करीब 45 फीसदी तक पहुंच गया. वहीं पुरुषों में इस उम्र सीमा वाले मरीजों का प्रतिशत करीब 11 फीसदी बढ़ा. पुरुषों में सबसे अधिक मानसिक बीमारी 25-40 वर्ष की उम्र सीमा में पायी गयी. वहीं महिलाओं में यह एज ग्रुप 41 से 60 साल का था. अध्ययन करने वाली पीएचडी स्कॉलर रीना मिंज लिखती हैं कि इस उम्र में मुख्य रूप से सामाजिक और आर्थिक कारणों से ही मनोरोग होता है. कई लोगों में पारिवारिक कारणों से मानसिक परेशानी बढ़ जाती है.

शादीशुदा पुरुषों में मानसिक रोग घटा, महिलाओं में बढ़ा

अध्ययन के अनुसार शादीशुदा पुरुषों में मानसिक रोग घट रहा है, जबकि महिलाओं में बढ़ रहा है. महिलाओं पर पारिवारिक दबाव ज्यादा दिखता है. वर्ष 2000 में कुल मरीज में 88 फीसदी शादीशुदा पुरुष होते थे, वहीं महिलाओं का प्रतिशत करीब 32 था. 2020 में शादीशुदा महिलाओं का आंकड़ा 46.3 ्रफीसदी हो गया, जबकि पुरुषों का घटकर 74 फीसदी के करीब रह गया है. वर्ष 2000 में 1817 शादीशुदा पुरुष मरीज इलाज के लिए आये थे, वहीं 2020 में करीब 51854 पुरुष मरीज आये. वर्ष 2000 में इलाज के लिए आयीं शादीशुदा महिलाओं की संख्या 3888 थी, जो वर्ष 2020 में बढ़कर 18149 पहुंच गयी.

नीचे स्तर तक मरीजों के इलाज की व्यवस्था हो : डॉ अमूल रंजन

रिनपास के पूर्व निदेशक डॉ अमूल रंजन सिंह कहते हैं : यह अपने आप में नये तरह का अध्ययन है. इसमें 20 वर्षों के मरीजों का आकलन कई दृष्टिकोण से किया गया है. कई नये तथ्य आये हैं. महिला मरीजों का बढ़ता प्रतिशत, मध्यम वर्ग पर दबाव दिख रहा है. इस तरह का अध्ययन नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. जरूरत है कि मनोरोग को गंभीरता से लिया जाये. नीचे स्तर तक मरीजों के इलाज की व्यवस्था हो. उन्होंने कहा कि मरीजों की बढ़ती संख्या का कारण सिर्फ मनोरोग नहीं है. अब चिकित्सा व्यवस्था बेहतर हो गयी है. मनोरोग को लेकर जो भ्रांतियां थी, वह दूर हो रही हैं. अब लोग बेधड़क इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. छोटी-छोटी समस्या का इलाज खोजने लगे हैं. यहीं कारण है कि मनोरोगियों की संख्या भी बढ़ी है.

झारखंड बनने के बाद इस तरह बदली तस्वीर

केस – वर्ष 2000 – वर्ष 2020

  • पुरुष मरीज – 72.87% – 66 %

  • महिला मरीज – 27.13 % – 34 %

  • 20 वर्ष तक के पुरुष मरीज – 19% – 09%

  • 21-40 वर्ष के पुरुष मरीज – 42% – 39%

  • 41-60 वर्ष के पुरुष मरीज – 38% – 49%

  • 60 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुष मरीज – 01% – 03%

  • 20 वर्ष तक की महिला मरीज – 34% – 20%

  • 21-40 वर्ष की महिला मरीज – 51% – 28%

  • 41-60 वर्ष की महिला मरीज – 13% – 45%

  • 60 वर्ष से अधिक अधिक उम्र की महिला मरीज – 02% – 07%

  • विवाहित पुरुष – 88% – 74%

  • अविवाहित पुरुष – 68% – 53.7%

  • विवाहित महिला – 12% – 26%

  • अविवाहित महिला – 32% – 46.3%

  • शहरी क्षेत्र से आने वाले पुरुष – 57.3% – 64.42%

  • शहरी क्षेत्र से आनेवाली महिलाएं – 42.7% – 36.88%

  • ग्रामीण क्षेत्र से आनेवाले पुरुष – 83% – 68.1%

  • ग्रामीण क्षेत्र से आनेवाली महिला – 16.9% – 31.9%

  • अशिक्षित मरीज – 57.37% – 12.79%

  • प्राइमरी व मिडिल स्कूल पास – 29.27% – 52.49%

  • सेकेंडरी – 7.82% – 17%

  • इंटर – 2.67% – 12.2%

  • स्नातक – 2.11% – 2.26%

  • प्रोफेशनल – 0.58% – 2.36%

  • कम आय वाले – 63.1% – 35.26%

  • अधिक आय वाले – 0.06% 0.98%

किस तरह की बीमारी के कितने प्रतिशत रोगी

बीमारी का नाम – वर्ष 2000 – वर्ष 2020

  • आर्गेनिक सिम्प्टोमेटिक मेंटल डिसऑर्डर – 2.8% – 10%

  • नशे के आदी – 31.6% – 34.35%

  • सिजोफ्रेनिया – 12.6% – 7.16%

  • मूड डिसऑर्डर – 15.36% – 12.35%

  • न्यूरोटिक स्ट्रेस – 20.8% – 10.5%

  • बिहेवियर बीमारी – 0.5% – 2.6%

  • एडल्ट पर्सनालिटी बिहेवियर – 0.63% – 01%

  • मेंटल रिटायरडेशन – 20% – 16.10%

  • साइकोलॉजिकल डेवलपमेंट – 2.35% – 0.77%

  • इमोशनल डिसऑर्डर – 04% – 1.7%

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