World Mental Health Day: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस वर्ष (2022) के विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का थीम मेंटल हेल्थ इन एन अनइक्वल वर्ल्ड (असमान विश्व में मानसिक स्वास्थ्य) रखा है. लोगों में मानसिक परेशानी बढ़ रही है. लेकिन, परेशानी का इलाज करनेवाले प्रोफेशनल्स (पेशेवर) की संख्या बहुत ही कम है. झारखंड में सरकारी दो-दो मनोचिकित्सा संस्थान हैं. इसके बावजूद यहां मनोचिकित्सकों की काफी कमी है.
24 जिलों के लिए मात्र 90 चिकित्सक हैं. इसमें 50 रांची में ही निजी या सरकारी संस्थानों में काम कर रहे हैं. यहां की 3.29 करोड़ आबादी के लिए मात्र 90 मनोचिकित्सक हैं. मतलब एक लाख की आबादी पर मात्र एक मनोचिकित्सक भी नहीं पड़ते हैं. ऐसे में जरूरत पड़ने पर यहां की बड़ी आबादी को मनोचिकित्सकीय सलाह नहीं मिल पायेगी. इस पेशे से जुड़े लोग समय-समय पर इस मुद्दे को उठाते रहे हैं. लेकिन, कोई ठोस उपाय अभी तक नहीं हो पाये हैं. यही कारण है कि अब सरकार मानसिक बीमारी से बचने के उपाय पर बात करने लगी है.
राज्य सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए चालू वित्तीय वर्ष में मात्र 2.15 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. यह रिनपास को मिलनेवाली वित्तीय सहायता से अलग है. बीते साल इसके लिए 2.20 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था. इस वर्ष राज्य सरकार ने प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी-सीएचसी) में पदस्थापित चिकित्सकों को मनोचिकित्सा का प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है. सीआइपी के साथ करार हुआ है.
सीआइपी के सह प्राध्यापक डॉ निशांत गोयल कहते हैं कि अब केवल भारत सरकार मानसिक बीमारी के इलाज की बात नहीं कर रही है. मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की बात हो रही है. मानसिक स्वास्थ्य कैसे दुरुस्त रहेगा, इस पर काम हो रहा है. संस्थान के चिकित्सक स्कूल से लेकर गांव-गांव में जाकर लोगों को मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की टिप्स दे रहे हैं. इसके लिए सीआइपी ने कई संस्था के एमओयू भी किया है.
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एक दिनचर्या बनाकर काम करें
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स्वस्थ खान-पान का ध्यान रखें
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अपने सगे संबंधियों के साथ सकारात्मक व्यवहार रखें
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जिनके परिजनों में मानसिक बीमारी का इतिहास रहा हो, वे नशे की लत से दूर रहने की कोशिश करें
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सोने और उठने के समय का एक रूटीन बनायें
झारखंड की कुल आबादी का करीब 11.1 फीसदी लोगों में मनोरोग के लक्षण हैं. ऐसा भारत सरकार के नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे ऑफ इंडिया के आंकड़े में कहा गया है. वहीं, देश का औसत कुल आबादी का 10.6 फीसदी है. एक लाख पर करीब तीन हजार को डिप्रेसिव डिसआर्डर की समस्या है. 3500 में एंजाइटी और करीब पांच हजार में इंटेलेक्चुअल डिसअबैलिटी की समस्या है. आबादी के करीब 2.6 फीसदी लोगों को अल्कोहल की लत है. 2018 में हर दिन करीब 3.60 लोगों का आत्महत्या करने की दर थी, 2019 में यह बढ़ कर 4.5 हो गयी है. 2020 में यह 5.5 हो गयी है. डायन प्रथा से हंटिंग के मामले में झारखंड सबसे ऊपर है.
हर व्यक्ति के जीवन को सफल और सुगम बनाने के लिए मानसिक स्वास्थ्य आवश्यक है. कोविड-19 के बाद कई गुना ज्यादा तनाव, डिप्रेशन जैसी तकलीफों में इजाफा देखा गया है. जो हमारे मस्तिष्क के रसायनों के उलटफेर का परिणाम है. इसलिए अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना जरूरी है. शुद्ध भोजन, पर्याप्त नींद, दैनिक जीवन में व्यायाम अपनायें. अपने परिवार से नजदीकियां बढ़ायें. तकलीफ बढ़ने पर मनोचिकित्सक के पराशर्म लेने में संकोच न करें. मानसिक स्वास्थ्य के बिना कोई स्वास्थ्य नहीं.
झारखंड में केवल चिकित्सकों की ही नहीं, प्रोफेशनल्स की भी कमी है. 90 मनोचिकित्सकों के अतिरिक्त 60 अन्य प्रोफेशनल्स हैं. इसमें साइकोलॉजिस्ट, साइको सोशल वर्कर तथा साइकेट्रिक नर्स शामिल हैं. झारखंड में मनोरोगियों की संख्या बढ़ रही है. उस तुलना में प्रोफेशनल्स नहीं बढ़ रहे हैं. सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रावधान बढ़ाना चाहिए.
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रांची में दो मनोचिकित्सा संस्थान हैं. एक राज्य सरकार का संस्थान रिनपास है. दूसरा भारत सरकार की देखरेख में चलने वाला संस्थान सीआइपी है. दोनों संस्थानों में हर साल करीब दो लाख मरीज इलाज के लिए आते हैं. दोनों संस्थानों को मिला कर करीब दो दर्जन स्थायी चिकित्सक हैं. बीते साल करीब 80 हजार मरीजों का इलाज ओपीडी में सीआइपी ने किया था. वहीं, रिनपास में करीब एक लाख मरीज इलाज के लिए आये. चिकित्सकों की कमी के कारण मरीजों का इलाज भी प्रभावित होता है. सीआइपी में छात्रों और अस्थायी चिकित्सकों से काम चलाया जा रहा है. इसके बावजूद दोनों संस्थानों ने हाल में कई विशेषज्ञ क्लिनिक की शुरुआत की है. इसका फायदा मरीज उठा रहे हैं.
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2021- 79114
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2020- 58601
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2019- 98789
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2018- 92901
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2017- 88178
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2016- 84647
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2015- 77431
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2014- 73501
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2013- 74062
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2012- 70827
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2011- 69071