Save River: झारखंड के 24 जिलों में छोटी-बड़ी करीब 196 नदियां हैं. इनमें से करीब 72 फीसदी (141 नदियां) ऐसी हैं, जो गर्मी का मौसम आते ही सूखने लगती हैं. किसी भी राज्य या क्षेत्र के लिए यह गंभीर संकट है. दरअसल, झारखंड की अधिकांश नदियां बरसाती हैं. बारिश के मौसम में तो ये नदियां लबालब भरी रहती हैं, लेकिन गर्मी का मौसम आते-आते इनकी धाराएं सूखने लगती हैं. उन क्षेत्रों में पेयजल का संकट बढ़ जाता है.
इसकी कई वजहें हैं. एक तो झारखंड में वर्षा जल के संरक्षण पर गंभीरता से काम नहीं हुआ. नदियों में लगातार कूड़ा-कचरा डाला जा रहा है. बदले मौसम का असर भी नदियों पर पड़ रहा है. दूसरी ओर, नदियों के संरक्षण पर राज्य सरकार का बिल्कुल ही ध्यान नहीं होता, क्योंकि इसकी जिम्मेदारी ही तय नहीं है. नतीजा यह होता है कि खेती-बाड़ी के दौरान पानी का संकट उत्पन्न हो जाता है.
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प्रभात खबर ने वर्ष 2016 में एक सर्वेक्षण कराया था, जिसमें पता चला था कि झारखंड की 72 फीसदी नदियां गर्मी आते ही सूख जाती हैं. पलामू, लातेहार, देवघर, दुमका, गुमला, चतरा, बोकारो, खूंटी और गिरिडीह की सारी नदियां सूख गयीं थीं. नदियों में कूड़ा-कचरा डाले जाने की वजह से झारखंड की कई नदियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है.
सदैव बहने वाली नदी का नाम है सदाबह. लेकिन, अब गर्मियों के मौसम में यह नदी भी सूख जाती है. दशकों तक किसी ने अमानत नदी को सूखते नहीं देखा था, लेकिन सर्वे में पता चला कि यह नदी भी गर्मी में सूख जाती है. ये नदियां पलामू जिला में बहती हैं. पलामू की एक और प्रमुख नदी है- कोयल. प्रशासन और आम लोग दोनों इसे प्रदूषित कर रहे हैं. शहर का कचरा इसके तट पर डंप होता है. नालों के जरिये शहर की सारी गंदगी इसी नदी में प्रवाहित करक दी जाती है.
पलामू प्रमंडल के तीन जिलों पलामू, गढ़वा और लातेहार में कुल 30 नदियां बहती हैं. इनमें से कम से कम 26 मार्च आते-आते ही सूख जाती हैं. मई में तो सभी 30 नदियों का पानी खत्म हो जाता है. इसी तरह दक्षिण छोटानगपुर के गुमला जिले की 13 नदियां सूख जाती हैं. शंख, उत्तरी कोयल, पारस, नागफेनी जैसी प्रमुख नदियों में मार्च के बाद सिर्फ रेत ही नजर आती है. रांची से सटे खूंटी जिले की सभी 3 नदियां सूख जाती हैं.
बात उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल की करें, तो चतरा जिले की नदियों की स्थिति बहुत बुरी है. इस जिले की 17 की 17 नदियां सूख जाती हैं. कोडरमा की 15 में से 3 नदियों को छोड़कर सबका पानी खत्म हो जाता है. संताल परगना के पाकुड़ जिला की नदियों का अस्तित्व लगभग खत्म होता जा रहा है. दो दशक पूर्व राजमहल की पहाड़ियों के बीच बसे इस जिले में 15099.46 हेक्टेयर में घने जंगलों की वजह से पर्यावरण अनुकूल था. अब हालात बदल गये हैं.
झारखंड के कई इलाकों को खूबसूरत जलप्रपातों के लिए जाना जाता है. मानसून यानी बरसात के मौसम में तो इनकी खूबसूरती देखते ही बनती है, लेकिन जब गर्मी आती है, तो इनकी धारा थम जाती है, क्योंकि नदियां सूखने लगती हैं. राजधानी रांची के अनगड़ा का जोन्हा जलप्रपात जो बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने पर अप्रैल के अंत में सूखता था, अब मार्च में ही सूखने लगा है. हुंडरू फॉल का पानी भी खत्म हो जाता है.
विशेष बताते हैं कि दो-ढाई दशक पहले हालात बहुत खराब नहीं थे. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद बड़े पैमाने पर नदी तट पर अतिक्रमण हुआ है. साथ ही नदियों में प्रदूषण भी बढ़ा है. अतिक्रमण की वजह से ही रांची की हरमू नदी का अस्तित्व मिटने की कगार पर पहुंच गया था. सरकार ने इसके सौंदर्यीकरण का प्रयास किया, लेकिन नदी की जलधारा अब तक वापस नहीं लौटी. दामोदर नदी में भी प्रदूषण बढ़ा है.
स्वर्णरेखा और दामोदर जैसी झारखंड की प्रमुख नदियों में का पानी प्रदूषित होता है. सरकार की ओर से रोक के बावजूद कोयला कंपनियों और ऊर्जा संयंत्रों से दामोदर और उसकी सहायक नदियों में कचरा डाला जाता है, जिसकी वजह से दोनों नदियां प्रदूषित हो रही हैं. दामोदर की सबसे बड़ी सहायक नदी कोनार की स्थिति भी खराब है.