रांची: आज अंतरराष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस है. इस दिन का उद्देश्य उन लोगों को प्रोत्साहित करना है, जो इस बीमारी के साथ जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस बीमारी से जूझते रहने के बावजूद जीने की काफी उम्मीदें होती हैं. उनकी उम्मीदों को पंख लगाने के लिए कई संस्थाएं भी काम कर रही हैं. ये संस्थाएं समय-समय पर रक्तदान शिविर लगाती हैं और थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की मदद करती हैं.
बच्चों में कम हो जाता है खून बनना
विशेषज्ञ कहते हैं कि थैलेसीमिया अनुवांशिक बीमारी है. इसमें बच्चों में खून बनना कम हो जाता है. थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे के शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से खत्म होती हैं. इससे शरीर में नये सेल नहीं बन पाते. इस वजह से खून की कमी हो जाती है. यही कारण है कि 15-25 दिनों पर उन्हें ब्लड की जरूरत पड़ती है.
सदर अस्पताल में थैलेसीमिया डे केयर वार्ड
सदर अस्पताल में थैलेसीमिया डे केयर वार्ड संचालित है. यहां हर जिले से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे आते हैं. थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को 25 जुलाई 2018 से 13 अप्रैल 2023 तक 14318 यूनिट रक्त चढ़ाया जा चुका है. यहां प्रतिदिन 10-15 पीड़ित बच्चे पहुंचते हैं. यह आंकड़ा किसी दिन ज्यादा भी जो जाता है.
हर महीने दो-तीन यूनिट ब्लड की जरूरत
झालदा निवासी नरेंद्र नाथ महतो की 13 वर्षीया बेटी थैलेसीमिया पीड़ित है. हर महीने दो-तीन बार ब्लड की जरूरत पड़ती है. वह कहते हैं : शुरुआत में निजी अस्पताल में इलाज के दौरान काफी पैसे खर्च हो गये. पहले झालदा से ही दोस्तों को रक्तदान के लिए लेकर आना पड़ता था. कई बार खुद भी रक्तदान किया. हालांकि अब सदर अस्पताल में फोन करके आने से जल्द ही इलाज हो जाता है. लोगों से आग्रह है कि थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के लिए रक्तदान करें.
रक्तदान करें और इन बच्चों को नया जीवन दें
बनहोरा निवासी संजय टोप्पो कहते हैं : मेरे दोनों बेटे थैलेसीमिया से पीड़ित हैं. जब छह माह के थे, तभी इस बीमारी के बारे में पता चला. पहले एक महीने में ब्लड चढ़ाना पड़ता था, अब 15-20 में दो-तीन यूनिट ब्लड चढ़ाना पड़ रहा है. इस कारण काफी परेशानी होती है. यदि लोग आगे बढ़कर थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के लिए रक्तदान करें, तो अभिभावकों को हिम्मत मिलेगी. लोगों से अपील है कि रक्तदान करें और इन बच्चों को नया जीवन दें.
पहली बार वर्ष 1994 में हुई थी शुरुआत
पहली बार वर्ष 1994 में थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन ने टीआइएफ के संस्थापक पैनोस एंगलजोस के बेटे जॉर्ज एंगलजोस की याद में इस दिवस की शुरुआत की थी. इसी बीमारी से जॉर्ज की जान चली गयी थी.