World Tribal Day 2022: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का संदेश- आदिवासी ही मेरी पहचान, यही सच्चाई

आज जब मैं आपसे इस मंच के माध्यम से मुखातिब हो रहा हूं तो बता दूं कि मेरे लिए मेरी आदिवासी की पहचान सबसे महत्वपूर्ण है, यही मेरी सच्चाई है. आज हम एक ढंग से अपने समाज की पंचायत में खड़े होकर बोल रहे हैं

By Prabhat Khabar News Desk | August 10, 2022 6:55 AM

साथियों जोहार

आज के इस शुभ अवसर पर सर्वप्रथम मैं बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हो, राणा पूंजा, तेलंगा खरिया, पोटो हो, फूलो-झानो, पा तोगान संगमा, जतरा भगत, कोमारम भीम, भीमा नायक, कंटा भील, बुधु भगत जैसे वीर नायकों को नमन करता हूं. हम आदिवासियों की कहानी लंबे संघर्ष एवं कुर्बानियों की कहानी है.

संघर्षों की मूर्ति हम अपने महापुरुषों और वीरांगनाओं पर गर्व करते हैं. विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मैं बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेदकर एवं डॉ जयपाल सिंह मुंडा को भी विशेष रूप से याद करना चाहूंगा. आपके प्रयासों से आदिवासी समाज के हितों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान हो पाये.

आज जब मैं आपसे इस मंच के माध्यम से मुखातिब हो रहा हूं तो बता दूं कि मेरे लिए मेरी आदिवासी की पहचान सबसे महत्वपूर्ण है, यही मेरी सच्चाई है. आज हम एक ढंग से अपने समाज की पंचायत में खड़े होकर बोल रहे हैं. आज हम अपनी बात करने के लिए खड़े हुए हैं. यह सच है कि संविधान में अनेकों प्रावधान किये गये हैं, जिससे आदिवासी समाज के जीवन-स्तर में बदलाव आ सके.

परंतु, बाद के नीति-निर्माताओं की बेरुखी का नतीजा है कि देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग आदिवासी है. आज आदिवासी समाज के समक्ष अपनी पहचान को लेकर संकट खड़ा हो गया है. क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा-संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया उसी विविधता को आज के नीति-निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं? संवैधानिक प्रावधान सिर्फ चर्चा का विषय बन के रह गये हैं.

हम आदिवासियों के लिए अपनी जमीन-अपनी संस्कृति-अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है. विकास के नये अवतार से इन सभी चीजों को खतरा है. आखिर एक संस्कृति को हम कैसे मरने दे सकते हैं? विभिन्न जनजातीय भाषा बोलने वालों के पास न तो संख्या बल और न ही धन बल. उदाहरण के लिए हिंदू संस्कृति के लिए असुर हम आदिवासी ही हैं.

इसके बारे में बहुसंख्यक संस्कृति में घृणा का भाव लिखा गया है, मूर्तियों के माध्यम से द्वेष दर्शाया गया है, आखिर उसका बचाव कैसे सुनिश्चित होगा, इस पर हमें सोचना होगा. धन-बल होता तो हम जैन/पारसी समुदाय की तरह अपनी संस्कृति को बचा पाते. ऐसे में विविधता से भरे इस समूह पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. आदिवासी कौम एक स्वाभिमानी कौम है, मेहनत करके खाने वाली कौम है, ये किसी से भीख नहीं मांगती है.

हम भगवान बिरसा, एकलव्य, राणा पूंजा की कौम हैं, जिन्हें कोई झुका नहीं सकता, कोई डरा नहीं सकता, कोई हरा नहीं सकता. हम उस कौम के लोग हैं जो गुरु की तस्वीर से हुनर सीख लेते हैं. हम सामने से वार करने वाले लोग हैं, सीने पर वार झेलने वाले लोग हैं. हम इस देश के मूलवासी हैं. हमारे पूर्वजों ने ही जंगल बचाया, जानवर बचाया, पहाड़ बचाया ? हां, आज यह समाज यह सोचने को मजबूर है कि जिस जंगल-जमीन की उसने रक्षा की आज उसे छीनने का बहुत तेज प्रयास हो रहा है.

जानवर बचाओ, जंगल बचाओ सब बोलते हैं पर आदिवासी बचाओ कोई नहीं बोलता. अरे आदिवासी बचाओ. जंगल-जानवर सब बच जायेगा. सभी की नजर हमारी जमीन पर है. हमारे जमीन पर ही जंगल है, लोहा है, कोयला है पर हमारे पास न तो आरा मशीन है और न ही फैक्ट्री.

कुछ लोगों को तो आदिवासी शब्द से भी चिढ़ है. वे हमें वनवासी कह कर पुकारना चाहते हैं. आज जरूरत है कि एक आम देशवासी के अंदर आदिवासी समाज के प्रति संवेदना जगायी जाये. जरूरत है आम जन के अंदर आदिवासी समाज के प्रति सम्मान एवं सहयोग की भावना पैदा करने की.

आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है. हमें जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बांट कर बताया जाता है. जबकि सबकी संस्कृति एक है. खून एक है,तो समाज भी एक होना चाहिए. हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए. हमें अपने 200-250 वर्ष पूर्व के इतिहास को याद करना होगा. हमें यह याद रखना होगा कि आज जो भी जमीन हमारे पास है वह समाज के शहीदों की देन है.

बिरसा मुंडा, भीमा नायक, कंटा भील, सिद्धो-कान्हो सभी महापुरुषों ने आदिवासी अस्मिता की रक्षा के लिए जान न्यौछावर कर दिये थे. भगवान बिरसा मुंडा ने क्या कहा था? उन्होंने जल-जंगल-जमीन पर अधिकार की बात की थी. अबुआ राज की बात की थी. गांव की सरकार की बात की थी.

दिक्कत है कि हम अपने आदर्शों के बारे में जानते ही नहीं हैं. हमारी नयी पीढ़ी को इस बारे में सोचना होगा.आप एक संथाली युवक से पूछिये राणा पुंजा कौन थे? वो बोलेगा राणा सांगा? वैसे ही आप एक भील युवक से पूछिये बुधु भगत कौन थे? वह उत्तर नहीं दे पायेगा. सच्चाई है कि देश का आदिवासी समाज एक होकर सोच ही नहीं रहा है. हमें अपने आप को पहचानने की जरूरत है. जातिवाद-पार्टीवाद-क्षेत्रवाद से ऊपर उठना होगा.

आपस में हमेशा मिलकर है रहना, यह हमने ही सबों को बताया है. कितनी व्यापक है आदिवासी विचारधारा, इसे सिर्फ आप हमारे अभिवादन में प्रयुक्त होने वाले शब्द से जान सकते हैं. जोहार बोल कर हम प्रकृति की जय बोल रहे हैं, सभी के जय की बात कर रहे हैं. मैं तो चाहता हूं कि सभी लोग आदिवासी-गैर आदिवासी अभिवादन के लिए जोहार शब्द का प्रयोग करें.

आदिवासी समाज के समक्ष सबसे बड़ी समस्या क्रेडिट की उपलब्धता की रहती है तथा हम अपने आदिवासी लोगों को साहूकारों-महाजनों के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं. मिशन मोड में कार्यक्रम चलाकर हम किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवा रहे हैं. छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए राशि उपलब्ध करवाने हेतु गुरुजी-स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना लेकर आ रहे हैं. मैं अपने समाज को जानता हूं, अपने झारखंडी लोगों को समझता हूं, मुझे पता है कि बैंक से लोन प्राप्त करना मेरे युवा साथियों के लिए कितना कठिनाईपूर्ण रहता है.

बैंक की स्थिति तो यह है कि हेमंत सोरेन भी लोन लेने जाये तो उसे पहली दफा नकार देंगे. कहेंगे कि आपकी जमीन सीएनएटी/एसपीटी के अंतर्गत आती है. हमारे युवा हुनरमंद होते हुए भी मजदूरी करने को विवश हैं. गाड़ी चलाने आता है पर चूंकि उसके पास पैसा नहीं है, इसलिए वह सिर्फ ड्राइवर बन पाता है. गाना गाने आता है पर उसके पास रिकॉर्डिंग करवाने के लिए पैसा नहीं है. बाल काटने आता है पर वह अपना सैलून नहीं खोल पाता है. वेल्डिंग करने आता है पर वह अपना वर्कशॉप नहीं खोल पाता है. हमने स्थिति को बदलने की ठानी. अब गाड़ी चलाने जानने वाला गाड़ी का मालिक बन रहा है.

मेरी सोच साफ थी. समाज का विकास करना है तो नौकरी देने वाले लोगों को खड़ा करना होगा. अपने लोग आगे बढ़ेंगे तो झारखंड के लोगों को आगे बढ़ायेंगे और इसी कारण से आज मैं कहता हूं कि मैंने जिस भरोसे से इस योजना को लागू किया, उसकी सफलता आपके हाथों में है. आप आज छोटा व्यापार प्रारंभ किये हैं आगे आपको अपनी मेहनत से इसे बड़ा करना है.

आप अच्छा करेंगे तो आस-पास के चार-पांच और युवक/युवती भी इस योजना का लाभ लेने के लिए आगे बढ़ेंगे. मैं यहीं पर रुकने वाला नहीं हूं. नये साथियों को व्यापार के गुर सिखाने का भी व्यवस्था कर रहे हैं. लोन भी उपलब्ध करवायेंगे और व्यापार को आगे बढ़ाने में भी आपकी सरकार मदद करेगी.

आदिवासी संस्कृति को जीवित रखने के लिए हम भाषा के शिक्षक बहाल कर रहे हैं. झारखंड के युवकों को विश्वस्तरीय शिक्ष के अवसर प्रदान करने हेतु प्रारंभ किये गये मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा पारदेशीय छात्रवृत्ति योजना का लाभ लेकर, पहले बैच के छात्र/छात्रा आज ब्रिटेन के संस्थान में अध्ययनरत हैं. पढ़ेगा तब तो आगे बढ़ेगा.

मैं इस मंच से भारत सरकार से मांग करता हूं कि पूरे देश में इस दिन नौ अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित करे. वन अधिकार के जो पट्टे खारिज किये गये हैं हम फिर से इसका रिव्यू करेंगे एवं जो भी लंबित हैं उसे तीन महीने के अंदर पूरा करेंगे.महाजनों से महंगे ब्याज पर लिया गया कर्ज अब आपको वापस नहीं करना है.

इसकी शिकायत मिलने पर महाजन पर कार्रवाई होगी.आदिवासी परिवार में किसी की भी शादी के अवसर पर एवं मृत्यु होने पर उन्हें 100 किलोग्राम चावल तथा 10 किलो दाल दिया जायेगा. इससे सामूहिक भोज के लिए अब उन्हें कर्ज नहीं लेना पड़ेगा. साथ ही मेरी अपील होगी कि सामूहिक भोज करने के लिए कर्ज लेने से बचें. कर्ज लेना भी हो तो बैंक से लें.

हमने ट्राइबल यूनिवर्सिटी के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया है. इसके माध्यम से मुख्य रूप से आदिवासी भाषा संस्कृति, लोक कल्याण, शोध से सम्बंधित विषय को बढ़ावा दिया जायेगा. उम्मीद है कि इससे आदिवासी समाज एवं झारखंड से जुड़े प्राचीन ज्ञान को संरक्षित रखने के साथ-साथ इनकी विशिष्ट समस्याओं के समाधान को भी बल मिलेगा.अंत में मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने हमारे ऊपर विश्वास जताया.

इन सबके बीच हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारे पुरखों द्वारा दी गयी कुर्बानियां हम पर कर्ज हैं और यह कर्ज तभी उतरेगा जब निर्माण के पुनीत कार्य में हम सभी लोग बढ़-चढ़ कर अपना योगदान दें. आदिवासी मुख्यमंत्री होने के अपने मायने हैं. झारखंड ही नहीं देश के दूसरे हिस्से के आदिवासियों का भी जो प्यार मुझे मिलता है, जो उम्मीद मुझसे है उससे मैं भली-भांति परिचित हूं. आइये हम अपने एकजुटता एवं आगे बढ़ने के संकल्प को जय हिंद के नारे से शक्ति दें.

जय हिंद…जय झारखंड…धन्यवाद…जोहार…साथियों जोहार…

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